क्रिसमस डे बस कुछ ही दिन दूर है. क्रिसमस का नाम जैसे ही आता है लोगों के मन में चॉकलेट, मिठाइयां, पल्म केक, और नाम आता है क्रिसमस ट्री और सैंटा क्लॉज़ का. सांता का बच्चों के मन में एक लाल टोपी पहने दादा जी की तरह आगे बढ़ते और बच्चों को अपने लाल झोले से तोहफे और टॉफियां बाटने वाली छवी आती है. लेकिन कभी आपने सोचा है की असली के सांता कैसे बने डी सांता क्लॉज़. जो साल के अंत में आकर लोगों की विश सुनते उनको मनचाहे तोहफे देते, और क्रिसमस डे का गाना सुनाते हैं. आज भी कई देशों में क्रिसमस डे बड़े ही धूम -धाम से मनाया जाता है. अलग-अलग शहरों में अलग अलग तरह से क्रिसमस का ट्रेडिशन है. ईसाई धर्म में यह रिवाज है कि क्रिसमस की रात सांता क्लॉज बच्चों के लिए मोजों में गिफ्ट छिपा कर जाता है. इस दिन बच्चों को सैंटा का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से रहता है. चलिए आज आपको बताते हैं सांता की कहानी और क्रिसमस ट्री के पीछे का रहस्य जिसको लेकर हर साल लोगों के डीलों में उत्साह रहता है.
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ईसाई धर्म की कथाओं के अनुसार और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो , संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ. वे एक रईस परिवार से थे. उनके माता-पिता की मौत बचपन में ही हो गई. सेंट निकोलस बहुत दयावान व्यक्ति थे. उनकी प्रभु ईशु में भी बहुत आस्था थी. निकोलस की आदत थी की वो बिना बताये ही ज़रूरत मंद लोगों की मदद किया करते थे. वह एकदम चुपके से जाकर लोगों को तोहफे दे देते और वापस आ जाते. तोहफो को अचानक देखकर लोग खुश हो जाते थे.
एक बार सेंट निकोलस को कहीं से पता चला कि एक गरीब आदमी की तीन बेटियां है, लेकिन उस व्यक्ति के पास उनकी शादियों के लिए उसके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं है. ये बात जानने के बाद निकोलस ने इस शख्स की मदद करने की सोची और वह रात को उस आदमी की घर की छत में लगी चिमनी में से सोने से भरा बैग नीचे डाल दिया. उस दौरान इस गरीब शख्स ने अपना मोजा सुखाने के लिए चिमनी में लगाया हुआ था. उस व्यक्ति ने देखा कि इस मोजे में अचानक सोने से भरा बैग उसके घर में गिरा है और ऐसा उसके सामने तीन बार हुआ है. उसने आखिरी में निकोलस को ऐसा करते हुए देख लिया. निकोलस ने उससे कहा कि यह बात वो किसी को न बताए, और फिर चारों ओर फ़ैल गयी. तब से जैसे ही किसी को अचानक से कोई उपहार मिलता तो उसे लगता की सांता क्लॉज ने दिया है. इसी के बाद से क्रिसमस डे के दिन तोहफे और चॉकलेट्स देने का रिवाज़ शुरू हुआ.
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क्रिसमस ट्री का इतिहास-
ऐसी मान्यता है कि संत बोनिफेस ने इंग्लैंड छोड़ दिया था. ईश्वर का सन्देश सुनाने के लिए वह जर्मनी चले गए. वहां उन्होंने देखा कि कुछ लोग भगवान् को खुश करने के लिए एक ओक के पेड़ के नीचे, एक नन्हे बालक की बलि चढाने की तैयारी कर रहे थे. यह देखकर संत बोनिफेस को दुःख हुआ और वह गुस्सा गए. उन्होंने उस वृक्ष को कटवा दिया. उसकी जगह एक नया सदाबहार फर का पेड़ लगवाया. जो बर्फ़ पड़ने पर भी हरा- भरा रहता था. इस वृक्ष को संत बोनिफेस के अनुयाइयों ने सजाया. और यह christmas tree एक प्रतीक बन गया. इसी तरह क्रिसमस अलग कहानिया सुनाई गई हैं.
आज के समय का क्रिसमस ट्री का श्रेय जर्मन को दिया जाता है. 16 वीं सदी के दौरान जर्मन प्रोस्टेटंट क्रिस्चियन लोगों ने अपने घरों में फर का पेड़ लगाया था. उसे सेबों से सजाया. इस पेड़ को वे 24 दिसंबर की शाम यानि कि क्रिसमस की शाम को अपने घरों में ले जाते थे. इसको ईडन गार्डन का प्रतीक माना गया. यहाँ पेड़ सुख समृद्धि का एक चिन्ह माना गया क्योंकि इस पेड़ को सजाते ही लोगों के चेहरों पर मुस्कान आ जाती है.
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Source : Nandini Shukla