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साइबर अपराधियों ने बताया ऐसे करते थे डिजिटल अरेस्ट, किस तरह से लोगों को लगाते चूना

साइबर अपराधियों ने कबूला कि सीबीआई की फर्जी टीम बनाकर लोगों को देते थे झांसा, ऐसे बनाते थे शिकार 

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Mohit Saxena
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आजकल ऑनलाइन फ्रॉड बढ़ता जा रहा है. साइबर अपराधी अक्सर लोगों को फोन पर गच्चा देकर धोखाधड़ी का शिकार बनाते हैं. यह लीक डेटा से उपभोक्ता को चूना लगाते हैं. ऑनलाइन ही नहीं ऑफ लाइन शॉपिंग से भी लोगों के मोबाइल नंबर साइबर अपराधियों तक पहुंच जाते हैं. यह खुलासा खुद आगरा में डिजिटल अरेस्ट करने वाली फर्जी सीबीआई की टीम ने पूछताछ में बताया. आगरा की साइबर थाना पुलिस ने डिजिटल अरेस्ट के आरोप में मोहम्मद राजा रफीक (नई दिल्ली), मोहम्मद दानिश व मोहम्मद कादिर (बड़ौत, बागपत) व मोहम्मद सुहेल अकरम (असोम) को गिरफ्तार था. उन्होंने बताया कि एक दिन में शातिरों के खाते में 2.87 करोड़ रुपये की रकम सामने आई थी.

अपराध की दु​निया में कदम रखा

मोहम्मद सुहेल अकरम कंप्यूटर में बीटेक है. पुलिस के अनुसार, सुहेल ने अपनी पढ़ाई को पूरा करने के बाद नौकरी भी की थी. मगर वेतन कम होने के कारण अपराध की दु​निया में कदम रखा. सुहेल के अनुसार, सुबह से शाम तक लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं. लोग कुछ भी खरीदने के लिए  गूगल पर सर्च जरूर करते हैं. 

ये लोग डेटा को चुरा लेते थे. आजकल हर कोई सोशल मीडिया पर नया खरीदने ​के लिए सर्च करते है. नई चीजें खरीदने पर शेयर करता है. कोई कार तो कोई बाइक. यह सभी चीजें कंपनी से पता हो जाती हैं. वाहनों की सर्विस किसने कराई, उसका डेटा मिल जाता है. बीमा किसने कराया, इसका डेटा भी लीक हो जाता है. 

शातिरों ने पुलिस को बताया कि परचून की दुकान खोलने के लिए भी महंगाई के इस दौर में पांच से दस लाख रुपये चाहिए. मगर उन्होंने सिर्फ एक कमरा लिया था. यहां पर मेज-कुर्सी लगाकर पीछे सीबीआई का लोगो फिट कर दिया. टेबल पर लैपटॉप लेकर काम करते थे. कहीं पहचाने न जाएं ऐसे में दस से पंद्रह डॉलर में तीन माह के लिए वर्चुअल नंबर ऑनलाइन लेते थे. इसके साथ व्हाट्स एप आरंभ करते थे. सोशल मीडिया पर आईपीएस लिखते ही तमाम अफसरों की तस्वीरें सामने आ जाती हैं. ये चोरी के मोबाइल खरीदते हैं. इसके बाद रकम ट्रांसफर कराने को लेकर खाते चाहिए. यह बस्तियों में जाते हैं, सरकारी योजना बताकर खाते खुलवाते हैं. इनका प्रयोग करते हैं. 

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