दिल्ली पुलिस (Delhi Police) जिसके ऊपर राजधानी और यहां के रहायशियों की सुरक्षा का जिम्मेदारी है, वो अपने काम में काफी लापरवाही करती है. जी हां, इस बात का खुलासा एक अंग्रेजी अखबार ने किया है. जिसके मुताबिक केवल 10 फीसदी स्नैचिंग के मामलों में FIR दर्ज करती है. 1 जनवरी से 15 दिसंबर, 2019 के बीच स्नैचिंग की घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए दिल्ली पुलिस को शहर भर में 55,556 कॉल आए, लेकिन हिंदुस्तान द्वारा विश्लेषण किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि के दौरान राजधानी में केवल 5,898 स्नैचिंग के मामले दर्ज किए गए. यानि कि 10 फीसदी के आस-पास ऐसे मामलों में FIR दर्ज की हैं.
कॉल पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) के लॉग में हैं और बड़े पैमाने पर निवासियों के लिए "100" डायल करते हैं - उनमें से कई मोटरबाइक सवार पुरुषों द्वारा चेन, सेलफोन और बैग छीनने की रिपोर्ट होती है.
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डेटा से पता चलता है कि इनमें से केवल 10.6% मामलों को दिल्ली पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में परिवर्तित किया है, जो कि भारतीय दंड संहिता की धारा 356 के तहत जघन्य सड़क अपराध के रूप में माना जाता है, छीनने के मामलों में अनिवार्य है.
पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित कई विशेषज्ञों ने इस विचरण को "परेशान करने वाला" के रूप में वर्णित किया, और इसे यह छिपाने के प्रयास के रूप में देखा कि दिल्ली की सड़कें कितनी असुरक्षित हैं.
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पिछले एक साल में कई घटनाओं ने राजधानी में छीनने के खतरे को उजागर किया है. दिल्ली की सड़कों पर रिपोर्ट किए गए मामलों में से कई ने सुर्खियां बटोरीं, और उनमें से कुछ में, 13 जुलाई 2019 को डिफेंस कॉलोनी में एक, एक 22 वर्षीय व्यक्ति को एक स्नैचिंग प्रयास का विरोध करने के लिए मार डाला गया. किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया था.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत देशभर के शहरों में घटित अपराधों में 38.8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दिल्ली इस सूची में शीर्ष स्थान पर है.
इसके बाद 8.9 फीसदी अपराध के साथ बेंगलुरू का स्थान है और तीसरे स्थान पर मुंबई है, जहां देश की 7.7 फीसदी आपराधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में 2016 में एक साल पहले के मुकाबले 2.6 फीसदी अपराध के मामलों में इजाफा हुआ. बलात्कार, हत्या, अपहरण और बलवा जैसे संज्ञेय अपराधों के कुल 48,31,515 मामले देशभर में दर्ज किए गए. इनमें 29,75,711 मामले आईपीसी के तहत आने वाले अपराध की श्रेणी के थे. 18,55,804 मामले विशेष व स्थानीय कानून से संबंधित अपराध की श्रेणी में दर्ज किए गए थे. 2015 में देशभर में कुल 47,10,676 संज्ञेय अपराध के मामले सामने आए थे. राज्यों में उत्तर प्रदेश में आईपीसी के तहत आपराधिक मामले सबसे ज्यादा 9.5 फीसदी दर्ज किए गए. दूसरे व तीसरे स्थान पर मध्यप्रदेश में 8.9 फीसदी और महाराष्ट्र में 8.8 फीसदी मामले दर्ज किए गए. केरल में देशभर के कुल आपराधिक मामलों में 8.7 फीसदी मामले दर्ज किए गए.
HIGHLIGHTS
- दिल्ली पुलिस केवल 10 फीसदी मामलों में करती है FIR.
- राजधानी की रक्षा करने वाली पुलिस की लापरवाही.
- कई घटनाओं ने राजधानी में छीनने के खतरे को उजागर किया है.