मॉब लिंचिंग को लेकर एक बार फिर संसद से सड़क तक माहौल गर्म है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से आई मोदी सरकार के कुछ साल ही बीते थे कि उत्तर प्रदेश के दादरी में भीड़ के उन्माद के शिकार अखलाक की मौत के बाद मॉब लिंचिंग जैसा शब्द लोगों के जुबान पर चढ़ गया. मोदी सरकार 2.0 में भी ऐसे मामलों को लेकर देश में माहौल बनाया जा रहा है. अब नया मामला मध्य प्रदेश से है जहां राज्य प्रशासनिक सेवा के मुस्लिम अफसर नियाज खान को हिंसक भीड़ का डर सताने लगा है. इसी डर की वजह से वो अपना नाम बदलना चाह रहे हैं. नियाज खान ने अपने मुस्लिम होने की पीड़ा सोशल मीडिया पर जाहिर की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि वो अपने लिए एक नया नाम ढूंढ रहे हैं ताकि वो अपनी मुस्लिम पहचान छिपा सकें. खुद को नफरत की तलवार से बचाने के लिए यह जरूरी है.
वहीं शबाना ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा, 'हमारे मुल्क की अच्छाई के लिए जरूरी है कि हम इसकी बुराइयां भी बताएं. अगर हम बुराइयां बताएंगे ही नहीं, तो हालात में सुधार कैसे लाएंगे? लेकिन वातावरण इस तरह का बन रहा है कि अगर आपने खासकर सरकार की आलोचना की तो आपको फौरन राष्ट्रविरोधी कह दिया जाता है. हमें इससे डरना नहीं चाहिए और इनके सर्टिफिकेट की किसी को जरूरत भी नहीं है.'
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मॉब लिंचिंग से जुड़े मामले भले ही राज्य सरकारों की कानून व्यवस्था से जुड़ा हुआ है लेकिन विपक्ष और मोदी विरोधी इसे ऐसे पेश करते हैं जैसे कि इसके लिए केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार ही जिम्मेदार है. आइए जानें मॉब लिंचिंग को रोकन के लिए अब तक केंद्र और राज्य सरकारों ने क्या-क्या किया है..
25 जून 2019 को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मॉबलिंचिंग मामले में कार्रवाई को लेकर लोकसभा में ये बयान दिया था.
- ‘पुलिस’ और लोक व्यवस्था’ भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के विषय हैं और राज्य सरकारें अपराध की रोकथाम करने, पता लगाने, पंजीकरण करने और जांच करने तथा अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियो के माध्यम से अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए जिम्मेदार हैं.
- एनसीआरबी देश में भीड़ द्वारा हत्या ककए जाने के संबंध में विशिष्ट आकंडे नहीं रखता है.
- गृह मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को कानून व्यवस्था बनाए रखने और जो भी व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेता है, उसे कानून के अनुसार तुरंत दंडित किया जाना सुनियोजित करने के संबंध में समय-समय पर परामशी पत्र जारी किये हैं.
- गृह मंत्रालय ने दिनांक 09.08.2016 को सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को कानून को अपने हाथों में लेने वाले उपद्रववयों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई करने के परामशी पत्र जारी किया है और दिनाकं 04.07.2018 को भी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को परामशी पत्र जारी ककया गया था जिसमें उन्हें हिंसा भड़काने की सम्भावना वाले झूठे समाचारों और अफवाहों के प्रचार पर नजर रखने और उन्हें प्रभावी रूप से रोकने के लिए सभी आवचयक उपाय करने तथा कानून को अपने हाथों में लेने वाले व्यक्तियों से दृढ़ता से निपटाने के लिए परामर्श दिया गया.
- देश में भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा उपाय करने के सम्बन्ध में राज्य सरकार/संघ राज्य प्रशासनों को दिनांक 23.07.2018 और 25.09.2018 को परामशी पत्र जारी किए गये थे.
- ऑडियो विजुअल मीडिया के माध्यम से सरकार ने भी भीड़ द्वारा हत्या के खतरे को रोकने के लिए जन जागरूकता पैदा की है.
- सरकार ने भीड़ द्वारा दहंसा फैलाने और हत्या करने की संभावना वाली झूठी खबरें और अफवाहें फैलाने से रोकने हेतु कदम उठाने के प्रनत भी सेवा प्रदाताओं को संवेदनशील बनाया है.
सितंबर 2018 : ऐसी घटनाओं पर उन्हें कानून के कोप का सामना करना पड़ेगाः सुप्रीम कोर्ट
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा कि वे गोरक्षा के नाम पर हिंसा और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं पर अंकुश के लिए उसके निर्देशों पर अमल किया जाए और लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि ऐसी घटनाओं पर उन्हें कानून के कोप का सामना करना पड़ेगा.
- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि उसके 17 जुलाई के फैसले में दिए गए निर्देशों पर अमल के बारे में दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, तेलंगाना और मेघालय सहित आठ राज्यों को अभी अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी है.
- इस फैसले में न्यायालय ने स्वंयभू गोरक्षकों की हिंसा और भीड़ द्वारा लोगों को पीट कर मार डालने की घटनाओं से सख्ती से निबटने के बारे में निर्देश दिए गए थे.
- पीठ ने इन आठ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तीन दिन के भीतर अपने जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर देते हुए इस मामले में कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला की जनहित याचिका दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दी थी.
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- पीठ ने इन निर्देशों में से एक पर अमल के बारे में केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा था. इस निर्देश में केंद्र और सभी राज्यों को टेलीविजन, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मीडिया के माध्यम से गोरक्षा के नाम पर हत्या और भीड़ द्वारा लोगों की हत्या के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने के लिए कहा गया.
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह भीड़ की हिंसा के ख़िलाफ़ उसके फ़ैसले का व्यापक प्रचार करें. इसमें कहा गाया था कि वे इस सूचना को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करें ताकि लोगों को पता चले.
- सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई के अपने फ़ैसले में भीड़ की हिंसा को 'मोबोक्रेसी' बताते हुए कहा था कि देश के क़ानून को ख़त्म करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
जुलाई 2018
तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ ने लोकसभा में घोषणा करते हुए कहा था- मॉब लिंचिंग जैसे मामलों पर रिपोर्ट देने के लिए सरकार ने एक मंत्रिसमूह का गठन किया है और गृह सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया है, जो 15 दिन में अपनी रिपोर्ट देगी. गृहमंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर उनके (सिंह के) नेतृत्व में एक मंत्रिसमूह (जीओएम) भी बनाया गया है, जो जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट देगा.
मॉब लिंचिंग पर एमपी में बनेगा सख्त कानून
- मध्यप्रदेश सरकार गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा और भीड़ हत्या पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून बनाएगी.
- इसके तहत हिंसा से लेकर दोबारा अपराध करने वाले तक को जेल की सजा होगी.
- हिंसा एवं भीड़ हत्या करने वाले स्वयंभू गोरक्षकों को जेल जाना होगा.
- मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में 26 जून 2019 (बुधवार) को हुई कैबिनेट बैठक में गोवंश वध प्रतिषेध अधिनियम-2004 में संशोधन करने की मंजूरी दी गई. सरकार 8 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में अमलीजामा पहनाने के लिए इसे पेश करेगी.
सजा का प्रावधान
इस संशोधन के विधानसभा में पारित होकर कानून बनने के बाद यदि कोई शख्स अकेला गोरक्षा के नाम पर हिंसा करेगा तो उसे छह महीने से लेकर तीन साल की सजा और 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक का जुर्माना देना पड़ेगा. गाय के नाम पर भीड़ द्वारा हिंसा या हत्या की जाती है, तो उनकी सजा को बढ़ाकर न्यूनतम एक साल और अधिकतम पांच साल किया जाएगा. यदि अपराधी दोबारा अपराध करता है तो उसकी सजा दोगुनी कर दी जाएगी. संशोधन में उन लोगों को एक से तीन साल की सजा देने का प्रावधान किया जाएगा जो हिंसा के लिए लोगों को उकसाने का कार्य करेंगे. संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले गोरक्षकों को भी इसके तहत सजा दी जाएगी.
मॉब लिंचिंग पीड़ितों को मुआवजा देगी छत्तीसगढ़ सरकार
- छत्तीसगढ़ सरकार मॉब लिंचिंग यानी भीड़ जनित हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देगी.
- इसके लिए सरकार ने 2011 में बने पीड़ित क्षतिपूर्ति कानून में संशोधन किया है.
- इस तरह की घटना में जान गंवाने वालों के परिजनों को सरकार 3 लाख स्र्पये की सहायता देगी.
- गृह विभाग के अफसरों के पीड़ितों को अधिकतम तीन लाख से 25 हजार स्र्पये तक मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है. मानसिक पीड़ा,शैक्षणिक अवसर और जीविकोपार्जन की क्षति पर भी मुआवजा मिलेगा. नियमानुसार घटना के 30 दिन के भीतर पीड़ित को 25 फीसद अंतरिम राहत राशि दी जाएगी.
- मॉब लिंचिंग पीड़ित के अवयस्क (नाबालिग) होने की स्थिति में 50 फीसद अतिरिक्त राहत राशि दी जाएगी.
- पीड़ित के 80 फीसद दिव्यांग होने की स्थिति दो लाख स्र्पये का मुआवजा दिया जाएगा. यदि वह अव्यस्क है तो यह राशि तीन लाख स्र्पये हो जाएगी.
- भीड़ जनित हिंसा पीड़ितों के इलाज की भी व्यवस्था सरकार करेगी. पीड़ित को निशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी. शुल्क लेने की आवश्यकता भी पड़ी तो केवल वास्तविक मूल्य ही लिया जाएगा.
मॉब लिंचिंग पीड़ितों के लिए तय मुआवजा-
- जीवन क्षति- 3 लाख
- 80 फीसद या उससे अधिक दिव्यांगता- 2 लाख
- 40 से 80 फीसद तक दिव्यांगता- 1 लाख
- 40 फीसद से कम दिव्यांगता- 50 हजार
- मानसिक पीड़ा- 25 हजार
- पीड़ित का पुनर्वास- 1 लाख
- शैक्षणिक अवसरों की क्षति- 50 हजार
Source : SHANKRESH K