भारत नहीं इस देश से शुरू हुई थी 'मॅाब लिंचिंग', उतारा गया था 3500 लोगों को मौत के घाट

लिंचिंग का सबसे अधिक शिकार अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग हुए। सन् 1882-1968 के बीच 3,500 से अधिक लोग यहां मौत के घाट उतार दिए गए।

author-image
Vineeta Mandal
एडिट
New Update
भारत नहीं इस देश से शुरू हुई थी 'मॅाब लिंचिंग', उतारा गया था 3500 लोगों को मौत के घाट

भारत में बढ़ते मॉब लिंचिंग की घटनाएं (सांकेतिक चित्र)

Advertisment

'मॉब लिंचिंग' की घटनाएं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में हो रही हैं और इसके खिलाफ संसद से सड़क तक आवाज उठाई जा रही है। सड़क पर न्याय यानी भीड़ द्वारा मौत की सजा के लिए इस्तेमाल किए जा रहे अंग्रेजी के शब्द 'मॉब लिंचिंग' के अंश 'लिंचिंग' की उत्पत्ति कैसे हुई, इस पर कभी आपने गौर किया है?

'लिंचिंग' शब्द दरअसल विलियम लिंच के नाम से जुड़ा है। इस शख्स का जन्म अमेरिका के वर्जिनिया प्रांत में हुआ था। विलियम कैप्टन लिंच ने एक न्यायाधिकरण बना रखा था और उसका वह स्वघोषित जज था। उसका हर फैसला समाज में उन्माद फैलाने वाला होता था।

किसी भी आरोपी का पक्ष सुने बगैर और किसी भी न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी को सरेआम मौत की सजा दे दी जाती थी।

लिंचिंग का सबसे अधिक शिकार अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग हुए। सन् 1882-1968 के बीच 3,500 से अधिक लोग यहां मौत के घाट उतार दिए गए। ये अपने आप में एक रिकार्ड है।

कैप्टन विलियम लिंच का जन्म 1742 में हुआ था और मौत 1820 में। 'लिंचिंग' शब्द सन् 1780 में गढ़ा गया और इसका इस्तेमाल शुरू हुआ था। उस समय लिंचिंग सिर्फ अमेरिका तक सीमित था, पर समय के साथ यह कुप्रथा अन्य देशों में भी फैलती चली गई।

अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के भारत में आज 'लिंचिंग' का प्रयोग राजनीतिक हथियार के रूप में होने लगा है।

विगत कुछ दशकों में लिंचिंग की घटनाओं का भारत स्वयं भुक्तभोगी बन गया है। लिंचिंग की घटनाएं आज देश में बेरोक-टोक जारी हैं।

इस तरह के अपराधियों के खिलाफ सरकार के पास अलग से कोई कानून नहीं है। लग रहा है, अपराधी इसी का बेजा इस्तेमाल कर अपराध को अंजाम देने के बावजूद बच जाते हैं।

अमेरिका ने लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर सन् 1922 में लिंचिंग-रोधी कानून बनाया था। भारत में अब तक कई प्रशासनिक अधिकारी व उभरते राजनेता तक लिंचिंग के शिकार बन चुके है।

और पढ़ें: महाराष्ट्र: पुलिस ने कहा फेक न्यूज़ को रोकने लिए तथ्यों की जांच करें

बिहार में 1985 बैच के आईएएस अधिकारी 35 वर्षीय जी. कृष्णया जो गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी थे, उन्हें उन्मादी भीड़ का शिकार होना पड़ा था। पत्थर मार-मारकर उनकी हत्या 1994 में कर दी गई थी। जी. कृष्णया भारतीय प्रशासनिक सेवा के उम्दा अधिकारी थे।

वैसे, पत्थर मारकर हत्या करने का प्रचलन अरब के देशों में रहा है। वहीं दूसरी ओर दानापुर के भारतीय जनता पार्टी के नेता सत्य नारायण सिन्हा की हत्या सत्ताधारी पार्टी की लाठी पिलावन रैली के दौरान 2003 में कर दी गई थी। यह हत्या भी भीड़ को उकसाने का ही परिणाम था।

वहीं दूसरी ओर, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को देशभर में हजारों सिखों की हत्या कर दी गई। संभवत: भारत में लिंचिंग की यह सबसे बड़ी घटना थी।

इंदिरा की हत्या से उनके समर्थकों में फूटे आक्रोश का शिकार सिख समुदाय हुआ, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या उनके दो सिख सुरक्षा गार्डो-सतवंत और बेअंत सिंह ने की थी।

इसके बाद वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों में उन्मादियों ने 'मॉब लिंचिंग' के नमूने पेश किए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री को वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहना पड़ा था, 'आपने राजधर्म नहीं निभाया।'

सन् 84 के दंगों में शामिल अपराधियों को आज तक सजा नहीं दी गई है। यह अपने आप में भारतीय न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।

लिंचिंग की घटनाओं पर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से प्रश्न पूछा गया था तो उन्होंने कहा था 'जब बड़े पेड़ गिरते हैं तो धरती कांप जाती है।' उनका आशय यह था कि इंदिरा जैसी शख्सियत की हत्या से देश हिल गया था।

वर्ष 2006 में महाराष्ट्र के भंडारा जिले में लिंचिंग की घटनाएं हुई थीं, जिसे खैरलांगी जनसंहार के नाम से जाना जाता है। यह घटना भी अपने आप में मानवता पर कलंक ही है। इसी साल दुष्कर्म के एक आरोपी को तेलंगाना के निजामाबाद जिले में पत्थर मार-मारकर हत्या कर दी गई थी।

और पढ़ें: अलवर लिंचिंग: पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का खुलासा, रकबर ख़ान के हाथ पैर की टूटी थी हड्डी, शरीर पर 12 चोट के निशान

2015 में नगालैंड के डिमापुर में लिंचिंग की घटना में एक दुष्कर्म के आरोपी को जेल का गेट तोड़कर 700 लोगों की भीड़ ने बाहर निकालकर निर्वस्त्र कर घसीटते हुए पूरे शहर में घुमाया और लाठी-डंडों से पीटकर उनकी हत्या कर दी।

सख्त लिंचिंग रोधी कानून के अभाव में व राजनीतिक संरक्षण के चलते अपराधी नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद दोषमुक्त हो जाते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या वह राजनीतिक दल लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाएगा, जो राजनीतिक दलों द्वारा संरक्षित व पोषित है।

हाल के वर्षो में देश में लिंचिंग की वारदात में तेजी से वृध्दि हुई है। वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में एक ओर जहां अखलाक को लिंचिंग का शिकार होना पड़ा, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के अलवर में पहले पहलू खान, उसके बाद हाल ही में रकबर को गोरक्षकों के उन्माद का शिकार होना पड़ा।

ऐसी और भी कई घटनाएं हुई हैं। लिंचिंग की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। लिंचिंग मानवता के खिलाफ है और इसे न्यायिक व्यवस्था के अधीन लाने पर ही लोगों को न्याय मिल पाएगा।

भारतीय संस्कृति पूरी दुनिया में शांति, अहिंसा और भाईचारा के लिए जानी जाती है। पश्चिमी देश हमारी संस्कृति से प्रेरणा लेते हैं। भारतीय दर्शन इस भौतिकवादी युग में भी लोगों को जीने की राह दिखाता है। हाल के लिंचिंग की घटनाएं भारतीय दर्शन व न्यायिक व्यवस्था पर सवालिया प्रश्न खड़ा कर दिया है।

आज की तारीख में कोई भी सभ्य समाज विलियम लिंच की उन्मादी हरकत को स्वीकार नहीं कर सकता। आज इस संसार में विलियम लिंच तो नहीं है, पर उसकी उन्मादी सोच वाले मुट्ठीभर लोग समाज में आज भी उन्माद फैला रहे हैं।

आज सरकार को चाहिए कि मानवता की रक्षा के लिए लिंचिंग-रोधी कानून शीघ्र से शीघ्र बनाकर निर्दोष लोगों की रक्षा करे और मानवता एवं पशुता के बीच की दूरी को बनाए रखे।

अफवाह और झूठी खबर सोशल मीडिया के माध्यम से तेजी से फैलती है। इसमें ह्वाट्सएप की भूमिका अहम है।

इसमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनेताओं को अपनी बौद्धिकता का परिचय देने की जरूरत है। साथ ही देश में लिंचिंग-रोधी कानून बनाने के लिए आवाज बुलंद करने की जरूरत है।

पिछले दिनों देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आवश्यकता हुई तो हुई तो लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए कानून भी लाया जाएगा। लिंचिंग बर्बरतापूर्ण कृत्य है। इसलिए सरकार अगर इसपर रोक लगाने को लेकर गंभीरता दिखाते हुए कानून बनाती है तो यह सराहनीय कदम होगा।

और पढ़ें: हरियाणा में मॉब लिंचिंग का शिकार एक और युवक, मवेशी चुराने के शक पर पीट पीटकर हत्या

Source : IANS

INDIA America Mob lynching Lynching Cases Of Mob Lynching mob lynching in india
Advertisment
Advertisment
Advertisment