Mukhtar Ansari Death: एक वक्त था जब यूपी में माफिया मुख्तार अंसारी का दबदबा था. उनकी ताकत के सामने बड़े-बड़े नेता झुका करते थे. जेल में रहकर भी उसकी चलती थी. मगर भाजपा सरकार आने के बाद से उसका रुतबा मिट्टी में मिल चुका था. आज दिल का दौरा पड़ने के कारण मुख्तार अंसारी की मौत हो गई. उनकी हालत गुरुवार को आठ बजे बाद खराब हो गई. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मुख्तार जेल की सलाखों के पीछे एक-एक दिन कठिनाई से काट रहे थे. न परिवार से मिल पा रहे थे और न ही किसी चीज की डिमांड कर पाते. बीते दिनों अस्पताल से मुख्तार को जेल ले जाने का वीडियो सामने आया है. यहां माफिया डॉन व्हीलचेयर पर नंगे पांव असहाय सा दिखाई दिया.
ऐसा बताया जा रहा है कि पंजाब के रोपड़ जेल से आने के बाद माफिया व्हीलचेयर में नहीं बैठता था. वह बीमारी का बहाना बनाने के लिए व्हीलचेयर पर बैठता था. 26 मार्च यानि मंगलवार को जब वह बीमार हुआ तो वह सिर नीचे किए व्हीलचेयर पर बैठा रहा. उसने कोर्ट में खाने में स्लो प्वाइजन देने का आरोप लगाया.
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मुख्तार अंसारी काफी तनाव में था
अतीक हत्याकांड के बाद मुख्तार अंसारी काफी तनाव में था. वह पेशी के वक्त कई जिलों की अदालत में सुरक्षा, जान का खतरे के साथ बीमारी बीमारी का हवाला देता था. वह दूसरी जेल में शिफ्ट होने की डिमांड करता रहा. पंजाब के रोपड़ जेल से अप्रैल 2021 में बांदा जेल लाया गया. वह यही पर कैद था. जेल अधीक्षक का कहना है कि हम जेल में हर कैदी को जेल मैनुअल के अनुसार व्यवस्थाएं देते हैं. मुख्तार खाने में धीमा जहर देने का आरोप लगा चुका था. हालांकि ऐसा संभव नहीं है, मुख्तार को खाना देने से पहले उसको एक सिपाही और डिप्टी जेलर चख्ता है. फिर उसे दिया जाता था.
आपको बता दें कि मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को यूपी के उत्तर प्रदेश में हुआ. वह एक सजायाफ्ता गैंगस्टर और राजनीतिज्ञ था. वह मऊ निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया. इसमें दो बार बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में शामिल हुए. मुख्तार अंसारी के दादा मुख्तार अहमद अंसारी थे. ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरुआती अध्यक्ष रहे. मुख्तार अंसारी के नाना मोहम्मद उस्मान थे. मोहम्मद उस्मान भारतीय सेना में ब्रिगेडियर रहे थे.
खुद का गिरोह तैयार किया
1990 के दशक के आरंभ में मुख्ताार अंसारी अपनी कथित आपराधिक गतिविधियों के लिए मशहूर था. मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर उसका दबदबा था. उसने 1995 के आसपास बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र संघ के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया. 1996 में विधायक बने और ब्रिजेश सिंह के प्रभुत्व को चुनौती देना शुरू कर दिया. ये दोनों पूर्वांचल क्षेत्र में मुख्य गिरोह के प्रतिद्वंद्वी बन गए. 2002 में सिंह ने कथित तौर पर अंसारी के काफिले पर घात लगाकर हमला किया था. इस गोलीबारी में अंसारी के तीन आदमी मारे गए. ब्रिजेश सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें मृत मान लिया गया. अंसारी पूर्वांचल में निर्विवाद गैंग लीडर बन गया. हालांकि, बाद में ब्रिजेश सिंह जीवित पाए गए और झगड़ा फिर से शुरू हो गया. अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए, सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया.
Source : News Nation Bureau