15 August Independence Day: 15 अगस्त एक ऐसा दिन जो हर भारतीय के लिए ऐतिहासिक दिन है.इस दिन हमे अंग्रेजों के अत्याचार से आजादी मिली है. भारत एक संप्रभू राष्ट्र बना. ये आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली है. भारत के हर हिंदूस्तानी के मन में ब्रिटिशों के अत्याचारों से आजादी की जंग चल रही थी. इस आजादी के लिए हर हिंदूस्तानी ने अपना-अपनी योगदान दिया था.लेकिन आजादी के साथ-साथ एक दर्द भी भारत को मिला. वो दर्द था भारत-पाकिस्तान का बटवारा.भारत को दो हिस्सों में अंग्रेजों ने बांट दिया. लेकिन देश प्रेम तो हिंदूस्तानियों के दिलों में ज्वाला की तरह दहक रहा था.
कई ऐसे कवि, शायर रहे जिनकी कविताओं को पढ़कर एक अलग ही जोश आता है. उन्हीं शायर में एक हैं इकबाल जिनकी कविताओं में ही क्रांति नजर आती है. जब बाक इकबाल की हो तो उनकी ये कविता कैसे भूल सकते हैं.बचपन से हमारे 'जुबान से बैठा सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा'.
सारे जहा से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा
ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा
पर्बत वो सब से ऊंचा हम-साया आसमां का
वो संतरी हमारा वो पासबां हमारा
गोदी में खेलती हैं इस की हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिन के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा
ऐ आब-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
कौन थे इकबाल?
मुहम्मद इकबाल मसऊदी अविभाजित भारत के एक प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक थे. उनकी उर्दू और फारसी को आधुनिक समय में खूब पसंद किया जाता है. वीकिपीडिया के अनुसार, इकबाल के दादा कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट (वर्तमान में पाकिस्तान) में रहने लगे. इकबाल की सबसे फेमस कविता तराना हिन्द जिसके 'सारे जहां से अच्छा' के नाम से जाना जाता है. उनकी प्रमुख रचनाए असरार-ए-खुदी, रुमुज-ए-बेखुदी, और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिंद शामिल है.
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