यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा का परिणाम बनकर तैयार हो गया है. लेकिन शासन से अनुमति नहीं मिलने के कारण तय नहीं हो पा रहा की किस दिन इसे घोषित किया जाएगा. सूत्रों के अनुसार सचिव नीना श्रीवास्तव और सभी पांचों क्षेत्रीय कार्यालयों के अपर सचिवों ने दिल्ली में डटकर परिणाम तैयार करा दिया है. जिस दिन तारीख तय होगी उसके कम से कम चौथे दिन रिजल्ट जारी किया जा सकेगा. यदि मंगलवार को तारीख जारी होती है तो 26 अप्रैल से पहले परिणाम घोषित होने की उम्मीद नहीं है. इस बार परिणाम में देरी का कोई ठोस कारण समझ नहीं आ रहा.
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बोर्ड ने इंटर में दो दर्जन से अधिक विषयों में दो प्रश्नपत्र की जगह एक पेपर कर दिया था. इसके चलते मूल्यांकन भी समय से पूरा हो गया. परिणाम में देरी के कारण परीक्षा में सम्मिलित 50 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं में बेचैनी बढ़ती जा रही है. पिछले साल 29 अप्रैल को बोर्ड परिणाम घोषित किए गए थे.
यूपी बोर्ड के रिजल्ट की तारीख करीब आने के साथ ही परीक्षा में सम्मिलित 50 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं की धड़कने बढ़ने लगी हैं. दो साल से परीक्षा के दौरान हो रही सख्ती ने परिणाम को लेकर चिंता और बढ़ा दी है. लेकिन परीक्षार्थियों को घबराने की जरूरत नहीं है. बोर्ड से जो संकेत मिल रहे हैं उसके अनुसार इस बार का परिणाम भी 2018 की तरह फील गुड रहने वाला है. पिछले साल सख्ती के कारण लोग परिणाम बहुत खराब होने की आशंका जता रहे थे.
हालांकि 29 अप्रैल 2018 को रिजल्ट घोषित हुआ तो उम्मीद से कहीं अधिक हाईस्कूल के 75.16 और इंटर के 72.43 प्रतिशत छात्र-छात्राएं सफल हो गए. परिणाम में सुधार के पीछे कई कारण है. पिछले ढाई दशक में बोर्ड के नियमों में व्यापक बदलाव का भी असर हुआ है.
1992 में जब सबसे खराब रिजल्ट आया था उस समय हाईस्कूल के छह विषयों में से किसी एक विषय में फेल होने पर परीक्षार्थी फेल हो जाता था. लेकिन अब छह में से पांच विषय में पास होने पर भी पास कर दिया जाता है. इस नियम से बड़ी संख्या में परीक्षार्थियों को राहत मिलने के आसार है. इसी प्रकार पहले कुल पांच नंबर का ग्रेस मार्क्स सिर्फ दो विषयों में मिलता था.
अब इंटर में 20 और हाईस्कूल में 18 नंबर का ग्रेस मार्क्स सभी विषयों में मिलाकर मिलता है. इसके चलते चार-पांच नंबर से फेल हो रहे छात्र आसानी से पास हो जाते हैं. सिर्फ दो विषयों में ग्रेस मार्क्स मिलने की बाध्यता नहीं होने के कारण भी बड़ी संख्या में परीक्षार्थियों को राहत मिलने की संभावना है.
छात्रहित में बोर्ड ने पिछले कुछ वर्षों में अपने नियमों में कई बदलाव किए हैं. प्रश्नपत्र का प्रारूप भी बदला है. जिसका लाभ सीधे तौर पर छात्र-छात्राओं को मिलता है. सख्ती के कारण सफलता प्रतिशत में कमी तो आएगी लेकिन 1992 जैसे हालात नहीं रहेंगे.
Source : News Nation Bureau