साल 2018 विदा होने वाला है और 2019 के स्वागत की तैयारी चल रही है, लेकिन देश के हर बेरोजगार की आंखों में यही सवाल है कि क्या 2019 में नौकरी मिलेगी? वादा था कि हर हाथ को रोजगार मिलेगा, पर साल 2018 में ये वादा अधूरा रह गया. नौकरियां पैदा तो हुईं पर जरूरत से काफी कम. एक अदद नौकरी के लिए नौजवानों को कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है उसे दिल्ली पुलिस के एमटीएस यानी मल्टी टास्किंग स्टाफ परीक्षा में उमड़ी परीक्षार्थियों की भीड़ से समझा जा सकता है.
बेरोजगारी का कुछ ऐसा आलम
एमटीएस परीक्षा के लिए जरूरी योग्यता है मैट्रिक पास और लाइन में लगे हैं लाखों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्र. ये है देश में बेरोजगारी का आलम. वैकेंसी है मोची की, धोबी की, माली की, नाई की, सफाईकर्मी की, रसोइये की और इम्तिहान दे रहे हैं बीए, बी कॉम, एमबीए और एमटेक के छात्र. बेकारी का इससे बदनाम चेहरा भला और क्या हो सकता है. एमटीएस के खाली पड़े 750 पदों की और आवेदन किया है 7.5 लाख परीक्षार्थियों ने. आवदेकों में ज्यादातर संख्या ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की है. उनमें भी हजारों छात्र ऐसे हैं जो बीटेक, एमसीए और एमबीए जैसी प्रोफेशनल डिग्री ले चुके हैं. परीक्षार्थियों का कहना है कि नौकरी नहीं है इसलिए शादी नहीं हो रही, ऐसे में पकौड़े बेचने से तो अच्छा है कि कुक या चपरासी ही बन जाएं. दिल्ली पुलिस में एमटीएस के लिए दिल्ली में 17 दिसंबर से 9 जनवरी तक अलग अलक चरणों में लिखित परीक्षाएं हो रही हैं. इनमें भाग लेने के लिए बिहार-यूपी से लेकर तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, पंजाब और जम्मू कश्मीर तक तक के हजारों क्वालिफाइड छात्र दिल्ली पहुंचे हुए हैं. इनका कहना है कि बड़ी बड़ी डिग्री लेने के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही ऐसे में क्या चारा है.
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देश में बेरोजगारी का आलम इतना भयानक हो चुका है कि इसी साल यूपी में चपरासी के 62 पदों के लिए 1 लाख से ज्यादा उम्मीदवार पहुंच गए थे. चपरासी के पद के लिए जरूरी योग्यता थी पांचवीं पास, जबकि परीक्षार्थियों में करीब 4 हजार छात्र पीएचडी थे, 28 हजार पोस्ट ग्रेजुएट छात्र थे और करीब 50 हजार ग्रेजुएट छात्र थे.
हाल ही में राजस्थान में चपरासी के लिए वैकेंसी निकली. इसमें 393 पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों का इंटरव्यू हुआ. इंजीनियर, वकील और चार्टर्ड एकाउंटेंट भी इस परीक्षा में शरीक हुए. मुंबई पुलिस ने 1,100 कॉन्स्टेबल के लिए बहाली निकाली तो 2 लाख से भी ज्यादा उम्मीदवार परीक्षा देने पहुंच गए. उनमें डॉक्टर, वकील और इंजीनियर भी शामिल थे.
स्टार्ट अप इंडिया का कुछ ऐसा रहा हाल
केंद्र की सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी ने देश में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए स्टार्ट अप इंडिया और स्किल इंडिया जैसी महत्वकांक्षी योजनाएं शुरू की थीं. मकसद था देश के ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को स्किल्ड बनाना ताकि वो खुद का स्टार्ट अप शुरू कर सकें. पर इससे देश में बेकारी की समस्या कितनी सुलझी?
दरअसल देश में स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 2015 में मुद्रा योजना की शुरुआत की थी. उसके तहत करीब 12 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को लोन दिया गया पर ज्यादातर मामलों में ये रकम जरूरत से काफी कम थी. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, साल 2017-18 में 4.81 करोड़ लोगों को करीब 2 लाख 54 हजार करोड़ का लोन दिया गया. यानी औसतन हर लाभार्थी को करीब 53 हजार रुपए का कर्ज मिला. 3 मई 2018 तक 12 करोड़ 61 लाख लोगों को कर्ज दिया गया. इनमें सिर्फ 1.3 फीसदी लोगों को 5 लाख या ज्यादा का लोन मिला. मतलब ये कि स्टार्ट अप इंडिया के लिए आगे आने वाले करीब 99 फीसदी लोगों को इतनी रकम भी नहीं मिल पाई कि वो कोई नया धंधा शुरू कर सकें. ऐसे में बतौर कर्ज मिली रकम भी उनके लिए किसी काम की नहीं रही.
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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के मुताबिक, देश में बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी हो चुकी है. 2017 में 1 करोड़ 40 लोग नौकरी ढूंढ रहे थे. 2018 में आंकड़ा बढ़कर 2 करोड़ 95 लाख हो गया. श्रम क्षेत्र में सालाना 1.20 करोड़ नये लोग जुड़ रहे हैं. विश्व बैंक ने कहा है कि भारत को बेरोजागारी से निपटने के लिए हर साल करीब 81 लाख नौकरियां पैदा करनी होंगी, लेकिन ये नौकरियां आएंगी कहां से?
देश में सबसे ज्यादा नौकरियां मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पैदा होती हैं, पर मेक इन इंडिया कार्यक्रम के बावजूद इस सेक्टर में कोई बड़ा पॉजीटिव असर सामने नहीं आया है. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट, हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर में रोजगार के अवसर होते हैं, पर जमीनी हालात ये हैं कि देश में करीब 14 लाख डॉक्टरों की कमी है. 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6000 पद खाली पड़े हैं. IIT, IIM और NIT में भी 6500 पद खाली पड़े हैं. इंजीनियरिंग कॉलेज में 27 फीसदी शिक्षकों की कमी है. स्कूलों में पढ़ाने के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है. इन खाली पदों को भरा जाए तो देश में करीब 25 से 30 लाख लोगों की बेरोजगारी दूर हो जाएगी, पर जरूरत के लिहाज से ये भी काफी कम होगा. ऐसे में छोटे और मंझोले उद्योगों से उम्मीद बंधती है, पर नोटबंदी और जीएसटी के बाद इनकी हालत भी अभी तक दुरुस्त नहीं हो पाई है.
कृषि क्षेत्र की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा रोजगार के मौके पैदा करता है. देश की अर्थव्यवस्था में करीब 16 फीसदी का योगदान देने वाला कृषि क्षेत्र करीब 51 फीसदी लोगों को रोजगार देता है, पर किसानों की हालत लगातार बिगड़ रही है. उन्हें खुद ही कर्जमाफी के डोज की जरूरत पड़ रही है. ऐसे में एग्रीकल्चर सेक्टर में नये साल में रोजगार बढ़ने की संभावना कम ही है.
उधर सरकार का कहना है कड़े आर्थिक सुधारों के बावजूद बीते कुछ वक्त में देश में रोजगार के लाखों अवसर पैदा किए गए हैं. दावा है कि सितंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच 31 लाख नौकरियां पैदा की गईं. ओला और ऊबर जैसी कैब सर्विस के जरिये 10 लोगों को रोजगार मिले, पर नौकरियों की गिनती के पुराने तरीके की वजह से ये आंकड़े शामिल नहीं हुए.
2019 में युवाओं को मिलेगी खुशखबरी
तमाम नाउम्मीदियों के बीच रोजगार की तलाश में भटकते युवाओं के लिए कुछ अच्छी खबरें भी हैं. मसलन, 2019 में आईटी और स्टार्ट अप कंपनियां 5 लाख से ज्यादा भर्तियां कर सकती हैं. इसके तहत युवाओं को पहले की तुलना में अच्छी सेलरी मिलने की भी उम्मीद है. हैदराबाद में आईटी कंपनियां 5 लाख तक का सालाना पैकेज ऑफर कर रही हैं. चुनावी साल को देखते हुए 2019 में 10 लाख नई नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है.
चुनावी साल को देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने युवाओं को लुभाने के लिए अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर रखी है. बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए नये साल में केंद्र सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लागू कर सकती है. इसके तहत देश के 10 करोड़ लोगों को हर महीने दो से ढाई हजार रुपए एकमुश्त मिल सकते हैं. उधर कांग्रेस भी साल में 100 दिन के व्हाइट कॉलर जॉब की योजना के साथ नये साल में नौजवानों को लुभाने के लिए तैयार है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि किसकी पोटली से नौजवानों के लिए कितनी नौकरियां निकलती हैं.
Source : NITU KUMARI