यूक्रेन( Ukraine) में युद्ध ने भारतीय मेडिकल छात्रों की दुर्दशा और विदेशों में उनकी बढ़ती उपस्थिति पर सबका ध्यान केंद्रित किया है. यूक्रेन-रूस( Ukraine-Russia) युद्ध के बीच ये खबर आई कि वहां हजारों भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, जिन्हें निकालना भारत सरकार के लिए भी टेढ़ी ऊंगली करना साबित हो रहा है. इसकी वजह ये बताई गई कि यूक्रेन में भारतीय छात्र अलग-अलग इलाकों में हैं और इनमें से ज्यादा तर MBBS के छात्र हैं. इसी कड़ी में ये सवाल उठना लाज़मी है कि आखिरकार इतने सारे छात्र मेडिकल की पढाई करने को क्यों जाते हैं फॉरेन. क्या विदेश की स्थिति भारत से अच्छी है या भारत के छात्रों को यहां पढाई करना पसंद नहीं. चलिए जानते हैं इसके पीछे की वजह.
यह भी पढ़ें- JEE (Main) अप्रैल-मई में दो सत्रों में होगी आयोजित
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार परीक्षा देने वाले मेडिकल ग्रेजुएट्स की संख्या 2015 में 12,116 से बढ़कर 2020 में 35,774 हो गई. यहां तक कि भारत ने इसी अवधि के दौरान लगभग 30,000 नई मेडिकल सीटें जोड़ीं. सबसे ज्यादा छात्रों की संख्या चीन, रूस, यूक्रेन, किर्गिस्तान, फिलीपींस और कजाकिस्तान में देखा गया. यूक्रेन में शिक्षा व्यवस्था काफी बेहतर है. यहां एडमिशन मिलने में भी कोई खास परेशानी नहीं उठानी पड़ती. यूक्रेन में पढ़ाई करने के लिए कोई ख़ास मुसीबत नहीं उठानी पड़ती. हालांकि यूक्रेन का संबंध पूरी दुनिया के साथ अच्छा ही रहा है. इसलिए भारतीय छात्रों को एडमिशन मिलते है यूक्रेन में एंट्री मिल जाती है. बता दें कि फिलीपींस से डिग्री हासिल करने वाले भारतीय मेडिकल स्नातकों में 2015 के बाद से लगभग दस गुना वृद्धि हुई है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव( Sujata Raao) ने कहा: “यह बाजार की ताकत है. बढ़ती आबादी और बीमारी के दोहरे बोझ के तहत चिकित्सा देखभाल की बढ़ती मांग - संचारी और गैर-संचारी. भारत में, हमने अग्रिम योजना बनाकर बहुत तेजी से विस्तार नहीं किया और नीति, कुल मिलाकर, बढ़ती मांग के प्रति प्रतिक्रियाशील रही है."उनका कहना है कि एक उपाय यह है कि चिकित्सा शिक्षा की लागत को नियंत्रित किया जाए. उन्होंने कहा कि "केंद्र और राज्य सरकारों, संस्थानों, परोपकारी और हितधारकों के समर्थन से सभी कॉलेजों / संस्थानों में फीस की कैपिंग की आवश्यकता है, ताकि मेडिकल ग्रेजुएशन को अधिक मानवीय और आगे बढ़ने के योग्य बनाया जा सके."
यह भी पढ़ें- प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाई राह, अब विश्वविद्यालयों में सीटों की समस्या होगी खत्म
जानकरों के मुताबिक चीन के केवल 13% मेडिकल स्नातकों ने 2020 में परीक्षा पास की और 16% यूक्रेनी मेडिकल कॉलेजों से उत्तीर्ण हुए. यूक्रेन में अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबलें ज्यादा महंगाई नहीं है. भारत में एमबीबीएस की डिग्री लेने के दौरान 1 करोड़ से अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है. जबकि यूक्रेन में 5-6 सालों की पढ़ाई पर 25-30 लाख का ही खर्च आता है. कम फीस में विदेशी पढ़ाई हर किसी को अपनी ओर खींचेगी. यही नहीं, यूक्रेन की डिग्री को इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता भी मिली हुई है. ऐसे में यूरोपीय देशों में अगर कोई काम करना चाहे, तो वो वहां भी अपना करियर बना सकता है.
युद्ध से प्रभावित होंगे लाखों विदेशी छात्र
यूक्रेन पर रूस के हमले से सब कुछ खत्म हो रहा है. बात युद्ध तक आ पहुंची है. इस युद्ध की वजह से यूक्रेन का पूरा ढांचा चरमरा सकता है. शिक्षा के रास्ते बंद कर दिये गए हैं. दुनिया के सभी देशों के लोग यूक्रेन छोड़कर अपने-अपने घर लौट रहे हैं. भारत सरकार भी अपने लोगों, छात्रों को लाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हो चुकी है. यूक्रेन से सभी चतर अपने घर वापस आ भी गए हैं. कहा जा सकता है कि ये युद्ध आने वाले समय की शिक्षा पर भी बुरा असर डाल सकता है.
HIGHLIGHTS
- भारतीय मेडिकल छात्रों की दुर्दशा और विदेशों में उनकी बढ़ती उपस्थिति पर सबका ध्यान केंद्रित
- यूक्रेन-रूस में हजारों भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं
- जिन्हें निकालना भारत सरकार के लिए भी टेढ़ी ऊंगली करना साबित हो रहा है
- मेडिकल ग्रेजुएट्स की संख्या 2015 में 12,116 से बढ़कर 2020 में 35,774 हो गई