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केरल में स्कूल से लेकर रिश्तेदारों तक सुरक्षित नहीं है बच्चे, यौन शोषण के मामले में चौंका देने वाला सुलासा

रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. यह घटनाएं न केवल घरों में बल्कि स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर भी हो रही हैं, जिससे बच्चों को हर जगह असुरक्षित महसूस हो रहा है.

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Priya Gupta
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sexual abuse of children

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Children Crime: भारत में बाल शोषण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, और खासकर केरल में यह समस्या गंभीर होती जा रही है.हाल ही में केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में बाल शोषण के मामलों में के बारे में बताया है, जिसमें मामले काफी बढ़े हैं.  रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. यह घटनाएं न केवल घरों में बल्कि स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर भी हो रही हैं, जिससे बच्चों को हर जगह असुरक्षित महसूस हो रहा है.

जागरूकता की है जरूरी

केरल में बाल अधिकार पैनल की रिपोर्ट में बताया गया है कि 21 प्रतिशत मामले बच्चों के घरों में और 4 प्रतिशत मामले स्कूलों में दर्ज किए गए हैं. इसके अलावा, अन्य स्थानों जैसे सार्वजनिक स्थानों, वाहनों, होटलों, धार्मिक संस्थानों और दोस्तों के घरों में भी शोषण के मामले सामने आए हैं. इस बढ़ते खतरे को देखते हुए, बाल अधिकार पैनल ने माता-पिता, शिक्षकों और पुलिस अधिकारियों को बच्चों के साथ दुर्व्यवहार के प्रति जागरूक करने की जरूरत जताई है.

रिपोर्ट में विश्लेषण किए गए 4,663 POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) मामलों में से 21 प्रतिशत यानी 988 मामले बच्चों के घरों में, 15 प्रतिशत यानी 725 मामले आरोपियों के घरों में और 20 प्रतिशत यानी 935 मामले सार्वजनिक स्थानों पर हुए थे. इसके अलावा, 173 मामले स्कूलों में, 139 मामले गाड़ियों में, 146 मामले अलग-अलग सार्वजनिक जगहों पर और 166 मामले अलग-अलग इलाकों में दर्ज किए गए हैं. होटलों, दोस्तों के घरों, धार्मिक संस्थानों, अस्पतालों और बाल देखभाल संस्थानों में भी कई शोषण के मामले सामने आए हैं.

तिरुवनंतपुरम जिले में सबसे ज्यादा मामले

साल 2023 में, केरल में कुल 4,663 POCSO मामले दर्ज किए गए, जो पिछले सालों की तुलना में अधिक हैं. 2021 में जहां 3,322 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2022 में यह संख्या बढ़कर 4,583 तक पहुंच गई थी. इसके साथ ही, यह भी देखा गया कि कुछ स्थानों पर मामले अधिक थे, जैसे तिरुवनंतपुरम जिले में सबसे ज्यादा मामले सामने आए, जबकि पथानामथिट्टा जिले में सबसे कम मामले दर्ज किए गए.

पड़ोसी, रिश्तेदारों के साथ भी बच्चे सुरक्षित नहीं

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन अपराधों के आरोपी बच्चों के परिचित, पड़ोसी, रिश्तेदार, दोस्त, रोमांटिक पार्टनर, शिक्षक, अजनबी और यहां तक कि वाहन चालक भी थे. इनमें से 873 मामले ऐसे थे, जिनमें आरोपियों और पीड़ितों के बीच परिचय था, जबकि 631 मामले पड़ोसी और 439 मामले परिवार के सदस्य से संबंधित थे। यह दर्शाता है कि अधिकांश मामलों में आरोपी और पीड़ित के बीच कोई न कोई व्यक्तिगत संबंध था.

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