Islamic Ideology: पाकिस्तान के एक प्रमुख इस्लामिक स्कॉलर, डॉ. रागिब हुसैन नईमी ने हाल ही में मुस्लिम धार्मिक समूहों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा है कि ये समूह इस्लामिक कानून को अपने तरीके से बदलकर पेश कर रहे हैं, जिससे लोगों को गुमराह किया जा रहा है. डॉ. नईमी ने विशेष रूप से मौत की सजा के फतवे की आलोचना की है, जिसे उन्होंने शरिया के खिलाफ और गैर-कानूनी करार दिया है. डॉ. नईमी, जो काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (CII) के चेयरमैन हैं, ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कुरान के अपमान पर मौत की सजा का कोई प्रावधान इस्लामिक कानून में नहीं है.
क्या है असली सजा
इसके बजाय, उन्होंने बताया कि इस्लाम में कुरान के अपमान पर आजीवन कारावास की सजा निर्धारित की गई है. अगर किसी ने पैगंबर के परिवार या उनके सहयोगियों के खिलाफ अपशब्द कहे, तो उसे सात साल की सजा हो सकती है. डॉ. नईमी ने यह भी कहा कि कि इस्लामिक कानून के अनुसार, मौत की सजा केवल तब दी जाती है जब कोई व्यक्ति इस्लाम के पैगंबरों के लिए अपशब्द इस्तेमाल करता है या उनका अपमान करता है. लेकिन धार्मिक समूहों द्वारा ईशनिंदा के आरोप में लोगों को मारने का फतवा जारी करना पूरी तरह से गलत है.उनका कहना है कि ये समूह राजनीतिक लाभ के लिए भावनाओं को भड़का रहे हैं और कानून के साथ खेल रहे हैं.
डॉ. नईमी को मिली थी धमकी
डॉ. नईमी ने अपने अनुभव को बारे में बताते हुए कहा कि जब उन्होंने पाकिस्तान के चीफ जस्टिस के खिलाफ जारी किए गए मौत के फतवे को हराम करार दिया, तो उन्हें 500 से अधिक धमकियां मिलीं. इनमें से कई धमकियों में अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने कहा कि किसी को मारने के लिए फतवा जारी करना न केवल असंवैधानिक और गैर-कानूनी है, बल्कि शरिया के भी खिलाफ है. डॉ. नईमी ने इस्लामिक कानून के सही अर्थों को स्पष्ट करने की कोशिश की है और धार्मिक समूहों की गलतफहमियों को सामने रखा है. उनका मानना है कि इस्लामिक कानून को सही तरीके से समझना और लागू करना सभी के लिए जरूरी है ताकि धार्मिक मुद्दों को लेकर कोई गलतफहमी न हो और कानून का सही पालन हो सके.
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