कोविड-19 महामारी (Corona Pandemic) के कारण छह राज्यों ने अपने विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित कराने को लेकर आपत्ति जताई है, हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRD Ministry) ने कहा कि यूजीसी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना है और विश्वसनीयता व रोजगार अवसरों के लिहाज से छात्रों का शैक्षणिक मूल्यांकन अहम है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पिछले हफ्ते अपने संशोधित दिशा-निर्देश में उच्च शिक्षण संस्थानों को निर्देश दिया था कि अंतिम वर्ष की परीक्षा जुलाई 2020 के बजाए सितंबर 2020 में आयोजित की जाएगी.
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यूजीसी द्वारा अप्रैल में जारी दिशा-निर्देश में जुलाई 2020 में परीक्षा कराने को कहा गया था. पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और दिल्ली ने कोविड-19 की स्थिति के मद्देनजर परीक्षा कराने को लेकर आपत्ति जाहिर की थी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “दिशा-निर्देश में यह नहीं कहा गया है कि परीक्षा तत्काल कराई जानी है, परीक्षाएं सितंबर के अंत तक पूरी करानी हैं. इस समयावधि में जब भी व्यावहारिक हो राज्य परीक्षा कार्यक्रम पूरा कर सकते हैं. इसके साथ ही परीक्षा ऑनलाइन या ऑफलाइन या फिर दोनों के मिले-जुले स्वरूप में ली जा सकती है.
यूजीसी दिशा-निर्देश बाध्यकारी प्रकृति के हैं.” अधिकारी ने कहा, “किसी भी शिक्षा प्रणाली में छात्रों का शैक्षणिक मूल्यांकन बेहद महत्वपूर्ण मील का पत्थर होता है. परीक्षा में प्रदर्शन से विश्वास आता है और छात्रों को संतुष्टि मिलती है,इसके साथ ही यह वैश्विक स्वीकार्यता के लिये आवश्यक क्षमता, प्रदर्शन और विश्वसनीयता का प्रतिबिंब है.” मानव संसाधन मंत्रालय इस हफ्ते राज्यों के शिक्षा सचिवों से मुलाकात कर सकता है जिससे अंतिम वर्ष के छात्रों के आकलन में एकरूपता सुनिश्चित हो सके.
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अधिकारी ने कहा, “यूजीसी अधिनियम के मुताबिक, आयोग के निर्देश बाध्यकारी हैं. फिलहाल परीक्षा कराने की योजना काफी हद तक अपनी जगह कायम है. मंत्रालय राज्यों की चिंताओं पर चर्चा करने और व्यावहारिक समाधान पर काम करने के लिये तैयार है लेकिन शैक्षणिक विश्वसनीयता से समझौता नहीं किया जा सकता.” उन्होंने कहा कि दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों ने अंतिम वर्ष की परीक्षा कराने का विकल्प चुना और ऑनलाइन परीक्षा कराने जैसे विकल्प अपनाए.
Source : Bhasha