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FIITJEE संवार रहा स्टूडेंट्स का भविष्य, नए भारत की शिक्षा का समावेश

कच्चे हीरे खदानों से प्राप्त होते हैं, जिन्हें आकर्षक और कीमती बनाने के लिए साफ कर, तराशा और पॉलिश किया जाता है। इस तरह कच्चे हीरे से तैयार हीरे बनाने की प्रक्रिया 'मेटामोफोसिस' कहलाती है।

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Sunder Singh
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BACHHE
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कच्चे हीरे खदानों से प्राप्त होते हैं, जिन्हें आकर्षक और कीमती बनाने के लिए साफ कर, तराशा और पॉलिश किया जाता है। इस तरह कच्चे हीरे से तैयार हीरे बनाने की प्रक्रिया 'मेटामोफोसिस' कहलाती है। 'मेटामोर्फोसिस' का अर्थ है किसी चीज़ के रूप और उसकी संरचना में पूरी तरह से बदलाव लाना। इसी तरह बच्चे भी कच्चे हीरे की तरह होते हैं। जिनमें अपार क्षमता छिपी होती है, इस क्षमता को पहचान कर, इसे बढ़ावा देना और उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता के उपयोग में सक्षम बनाना जरूरी होता है।

भारत में कोचिंग शिक्षा में अग्रणी फिटजी, अपने कई प्रोग्रामों एवं इनोवेशन्स के साथ शिक्षा में बड़े बदलाव लाया है। यह एकमात्र संगठन है जो अपने सिस्टम ऐकडेमिक कल्ट मेटामोर्फोसिस' के माध्यम से हर छात्र की क्षमता को पहचान कर उसमें आवश्यकतानुसार बदलाव और सुधार लाता है। इस सिस्टम के जरिए, छात्रों में छिपी क्षमता को पहचाना जाता है, उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता के उपयोग के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है। हो सकता है कि हर छात्र दुनिया में सर्वश्रेष्ठ सफलता हासिल न कर सके, लेकिन उनकी प्रतिभा को पहचान कर सही मार्गदर्शन दिया जा सकता है ताकि वे अपनी क्षमता का 400 फीसदी सदुपयोग कर सकें।

एकेडमिक कल्ट मेटामोर्फोसिस शिक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक रूप से डिजाइन की गई पढ़ाने के तरीके शामिल हैं, जो छात्रों की क्षमता को पहचान कर उन्हें मार्गदर्शन देते हैं और उन्हें बेहतर बनाते हैं, ताकि वे अपनी एकेडमिक, करियर और जीवन यात्रा में सफलता हासिल कर सकें। फिटजी के पढ़ाने के तरीके और कोर्स मटीरियल को वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किया गया है, जो छात्रों को व्यवस्थित एवं सुनियोजित रूप से तैयारी करने में मदद करते हैं।आज देश भर में बहुत से कोचिंग संस्थान चल रहे हैं, लेकिन इनमें से ज़्यादातर 

संस्थान विनियमित या पेशेवर नहीं है, उनके पास पढ़ाने के आधुनिक एवं उचित तरीकों का अभाव है। ऐसे में इनके कोर्स मटीरियल के औचित्य को लेकर आशंका बनी रहती है। इन संस्थानों के पास कोई डायग्नॉस्टिक सिस्टम नहीं होता, जिससे वे छात्रों की क्षमता को समझ सकें। इसलिए वे ऐसे छात्रों को एडमिशन दे देते हैं, जिनके पास कुछ परीक्षाओं के लिए सही क्षमता या एप्टीट्यूड नहीं होता। जिसके परिणामस्वरूप छात्र असफल हो जाते हैं और कुछ छात्र तो खतरनाक कदम तक उठा लेते हैं। अगर संस्थान के पास छात्रों को पढ़ाने के सही तरीके न हों, तो छात्रों में सही कौशल और प्रतिभा को विकसित करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि हर छात्र की अपनी अलग क्षमता होती है। वे टाईम मैनेजमेन्ट के तरीके नहीं अपना पाते, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है। और यही पर फिटजी के तरीके कारगर साबित हुए हैं।

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