छात्रों ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर विश्वविद्यालयों की सालाना परीक्षाएं रद्द नहीं करने के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRD Ministry) के फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें परीक्षा का नहीं, बल्कि सामुदायकि स्तर पर संक्रमण फैलने का डर है. छात्रों ने ट्विटर समेत सोशल मीडिया मंचों और ऑनलाइन याचिकाओं के माध्यम से आपत्ति जताई और हैशटैग ‘‘स्टूडेंट लाइव्स मैटर’’ (छात्रों का जीवन मायने रखता है) का इस्तेमाल किया. 46,000 से अधिक छात्रों ने एक ऑनलाइन अपील पर हस्ताक्षर किए.
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इस याचिका में कहा गया है, ‘‘हम अंतिम वर्ष के छात्र सरकार की जांच किट नहीं हैं. हमें परीक्षाओं का डर नहीं है, बल्कि हमें सामुदायिक स्तर पर संक्रमण फैलने का भय है. हम परीक्षा केंद्रों में सामाजिक दूरी बनाए रख सकते हैं, लेकिन छात्रावासों में साझा शौचालयों और साझा भोजनालयों का क्या विकल्प है.’’ ‘चेंज डॉट ओआरजी’ पर इसी प्रकार की एक अन्य याचिका पर 75,000 छात्रों ने हस्ताक्षर किए हैं.
दिल्ली विश्वविद्वालय के हंसराज कॉलेज में शिक्षक मिथुराज धुसिया ने ट्वीट किया, ‘‘भारत कोविड-19 से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए देशों की सूची में तीसरे नंबर पर है. सितंबर तक चीजें और बिगड़ सकती हैं. इस मुश्किल समय में ऑनलाइन और ऑफलाइन परीक्षाएं संभव नहीं है. यह दु:ख की बात है कि गृह मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, यूजीसी और डीयू को छात्रों के भले का ध्यान नहीं है.’’
उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सितंबर के अंत तक आयोजित किए जाने के संबंध में सोमवार को घोषणा की. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के मुताबिक, सिंतबर में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं दे पाने में असमर्थ छात्रों को एक और मौका मिलेगा और विश्वविद्यालय ''जब उचित होगा तब'' विशेष परीक्षाएं आयोजित करेंगे.
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मंत्रालय का यह निर्णय केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से हरी झंडी दिए जाने के बाद आया है जिसमें उसने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तय मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत परीक्षाएं आयोजित करने की मंजूरी दी थी.
Source : Bhasha