उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को मद्रास उच्च न्यायालय से कहा मेडिकल के 2020-21 के शैक्षणिक सत्र में स्नातक, स्नातकोत्तर और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटे में तमिलनाडु सरकार द्वारा छोड़ी गयी सीटों में 50 फीसदी आरक्षण का लाभ राज्य के ओबीसी छात्रों को नहीं देने के केन्द्र के निर्णय के खिलाफ लंबित याचिकाओं पर शीघ्र फैसला किया जाये. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुये कहा कि उच्च न्यायलाय को शीर्ष अदालत में एक अन्य मामला लंबित होने के बावजूद राज्य सरकार तथा अन्य की याचिकाओं पर निर्णय करना चाहिए.
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पीठ ने कहा, ‘‘उसके समक्ष याचिकाओं में दी गयी सभी दलीलों पर उच्च न्यायालय को फैसला करना चाहिए.’’ इसके साथ ही पीठ ने उच्च न्यायालय से इसे देखने का अनुरोध किया. इससे पहले, दो जुलाई को तमिलनाडु सरकार ने एक आवेदन दायर कर शीर्ष अदालत से अनुरोध किया था कि उच्च न्यायालय को अपने यहां लंबित याचिकाओं का शीघ्र निबटारा करने का निर्देश दे. इस आवेदन में तमिलनाडु सरकार ने उच्च न्यायालय के 22 जून के आदेश को चुनौती दी है. उच्च न्यायालय ने इस आदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण विवाद पर अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया था.
अदालत ने इस मामले की सुनवाई नौ जुलाई के लिये स्थगित करते हुये कहा था कि इसी तरह की याचिका आठ जुलाई को शीर्ष अदालत में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है. शीर्ष अदालत में यह मामला आठ जुलाई के लिये सूचीबद्ध था लेकिन उसने इसे स्थगित कर दिया है. उच्च न्यायालय ने राज्य की याचिका पर नौ जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है. राज्य सरकार, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, मार्क्सवादी पार्टी, तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी और कम्युनिस्ट पार्टी ने 11 जून को शीर्ष अदालत से कोई राहत नहीं मिलने पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.
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शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर विचार करने से इंकार करते हुये उनसे कहा था कि राहत के लिये वे मद्रास उच्च न्यायालय जायें. उच्च न्यायालय ने केन्द्र की इस दलील का संज्ञान लेते हुये कोई भी अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया था कि 1986 से ही शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार मेडिकल में प्रवेश के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर सीटों के कोटे में कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया गया है. केन्द्र के वकील ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि दस साल बाद इसमें सुधार किया गया था और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया था.
ओबीसी के आरक्षण के लिये 2015 में भी याचिकायें दायर की गयीं थीं जो शीर्ष अदालत में अभी भी लंबित हैं. राज्य सरकार और विभिन्न राजनीतिक दल चाहते हैं कि तमिलनाडु के कानून के अनुसार ओबीसी के लिये 50 फीसदी आरक्षण प्रदान किया जाये. याचिका में आरोप लगाया गया है कि केन्द्र ने 2006 के कानून के तहत भी अन्य पिछड़े वर्गों के लिये 27 फीसदी स्थान आरक्षित करने की अपनी नीति का अनुपालन नहीं किया है.
Source : Bhasha