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यूनिवर्सिटीज में अब प्रोफेसर बनने के लिए नहीं PhD और NET की जरूरत, जानें UGC की नई योजना

शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाने वालों की कमी नहीं है. यूनिवर्सिटीज, कॉलेज और बड़े-बड़े संस्थानों में पढ़ाने की चाह हर कोई रखता है. यही वजह है कि लोग अपना करियर बनाने के लिए नेट और पीएचडी को चुनते हैं

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Mohit Sharma
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professor in universities in india

professor in universities in india( Photo Credit : FILE PIC)

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शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाने वालों की कमी नहीं है. यूनिवर्सिटीज, कॉलेज और बड़े-बड़े संस्थानों में पढ़ाने की चाह हर कोई रखता है. यही वजह है कि लोग अपना करियर बनाने के लिए नेट और पीएचडी को चुनते हैं. जो थोड़ी लंबी और मुश्किल प्रक्रिया है. नेट की पढ़ाई में जहां दिन रात की मेहनत की जरूरत होती है तो पीएचडी में शोधार्थी को कई सालों का निवेश करना होता है. हालांकि अपवाद हर जगह मौजूद हैं. लेकिन इस बीच हम आपके लिए एक बड़ी खबर लेकर आए हैं. दरअसल, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी यूजीसी ने हाल ही में बड़ा ऐलान किया है. यूजीसी के अनुसार अब यूजीसी ने प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. 

'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस' के नाम वाली योजना

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस का फायदा यह होगा कि छात्र अब बिना किसी एकेडमिक डिग्री के भी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में प्रोफेसर बन सकेंगे. इस योजना के अनुसार अब अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ दो साल तक क्लास ले सकेंगे वो भी बिना नेट पीएडी किए बिना. 'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस' के नाम वाली इस योजना में समाज सेवा, इंडस्ट्री, म्यूजिक और डांसिंग समेत कई क्षेत्रों के शामिल किया गया है. आपको बता दें कि यूजीसी से पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट भी इस योजना को लागू कर चुका है. जानकारी के अनुसार इस प्रक्रिया से यूनिवर्सिटीज व दूसरे संस्थानों में प्रोफेसर बनना काफी सरल हो जाएगा. इससे उन लोगों को सीधा लाभ होगा जो अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ तो हैं लेकिन पीएचडी और नेट किए बिना प्रोफेसर नहीं बन सकते. 

अगले महीने तक योजना का नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाएगा

यूजीसी ने हाल ही में हुई एक बैठक में यह अहम फैसला लिया. माना जा रहा है कि अगले महीने तक योजना का नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाएगा. इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से आए एक्सपर्ट्स को शोध पत्रों के प्रकाशन और दूसरी शर्तों की छूट दी जाएगी. हालांकि संस्थानों में ऐसे पदों की संख्या केवल 10 प्रतिशत तक ही रह सकती है.

Source : News Nation Bureau

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