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Hindi Diwas Poems: हिंदी दिवस पर रामधारी दिनकर की ये कविता को कैसे भूल सकते हैं

हिंदी के बढ़ावा देने के लिहाज से हिंदी दिवस को मनाया जाता है, भारत के साहित्य में अगर आप देखेंगे तो एक से बढ़कर कवि रहे हैं. जिसकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती है.

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Priya Gupta
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Hindi Diwas Poems

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Hindi Diwas Poems: हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. ये दिन मातृ भाषा को समर्पित है. इस दिन को मनाने के लिए पीछे भी एक कहानी है, दरअसल 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था. इसकी अहमियत के मद्देनजर और हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सुझाव पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

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हिंदी के बढ़ावा देने के लिहाज से हिंदी दिवस को मनाया जाता है, भारत के साहित्य में अगर आप देखेंगे तो एक से बढ़कर कवि रहे हैं. जिसकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती है. वैसे तो हिंदी साहित्य में कई महान कवि रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा फेमस और पढ़ी जान के जाने वाले राम धारी दिनकर की कविताएं कैसे भूल सकते हैं. इसके अलावा इस दिवस पर देश भर के विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में हिंदी कविता प्रतियोगिता, वाद-विवाद व भाषण प्रतियोगिता, निबंध लेखन, पोस्टर व कला प्रतियोगिता, कविता गोष्ठी आदि का आयोजन किया जाता है. इस दिन आप रामधारी दिनकर की कविताओं को पढ़कर प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं.

रामधारी दिनकर की कविताएं



वर्षों तक वन में घूम घूम, बाधा विघ्नों को चूम चूम

सह धूप घाम पानी पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर

सौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या होता है

मैत्री की राह दिखाने को, सब को सुमार्ग पर लाने को

दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को

भगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाये

दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो

तो दे दो केवल पांच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम

हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पे असी ना उठाएंगे

दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की न ले सका

उलटे हरि को बांधने चला, जो था असाध्य साधने चला

जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप विस्तार किया

डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित हो कर बोले

जंजीर बढ़ा अब साध मुझे, हां हां दुर्योधन बांध मुझे

ये देख गगन मुझमें लय है, ये देख पवन मुझमें लय है

मुझमें विलीन झनकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल

अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें

भूतल अटल पाताल देख, गत और अनागत काल देख

ये देख जगत का आदि सृजन, ये देख महाभारत का रन

मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान कहां इसमें तू है

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अंबर का कुंतल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख

मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख

सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं

जिह्वा से काढ़ती ज्वाला सघन, सांसों से पाता जन्म पवन

पर जाती मेरी दृष्टि जिधर, हंसने लगती है सृष्टि उधर

मैं जभी मूंदता हूं लोचन, छा जाता चारों और मरण

बांधने मुझे तू आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है

यदि मुझे बांधना चाहे मन, पहले तू बांध अनंत गगन

सूने को साध ना सकता है, वो मुझे बांध कब सकता है

हित वचन नहीं तुने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना

तो ले अब मैं भी जाता हूं, अंतिम संकल्प सुनाता हूं

याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा

टकरायेंगे नक्षत्र निखर, बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर

फन शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुंह खोलेगा

दुर्योधन रण ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा

भाई पर भाई टूटेंगे, विष बाण बूंद से छूटेंगे

सौभाग्य मनुज के फूटेंगे, वायस शृगाल सुख लूटेंगे

आखिर तू भूशायी होगा, हिंसा का पर्दायी होगा

थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े

केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र विदुर सुख पाते थे

कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय, दोनों पुकारते थे जय, जय।

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