इंटरनेशनल टेक्निकल इंस्टिट्यूट, विदेशी विश्वविद्यालय व बिजनेस स्कूल न केवल विश्व स्तरीय शिक्षा मुहैया करा रहे हैं, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय संस्थान अपने छात्रों को ग्लोबल जॉब के लिए भी तैयार कर रहे हैं. इनमें बड़ी संख्या में भारतीय युवा भी शामिल हैं. जहां एक ओर तकनीकी कोर्स के लिए रूस, चाइना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारतीय छात्रों की बड़ी पसंद है वहीं वर्क परमिट प्रोग्राम और ग्लोबल टेक्निकल जॉब के लिए बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों ने कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों की यूनिवर्सिटी का रुख किया है. कनाडा के इमीग्रेशन रिफ्यूजी एंड सिटीजनशिप डाटा के मुताबिक कनाडा में अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में साल 2015-16 और 2019-20 शैक्षणिक वर्षों के बीच लगभग 350 प्रतिशत की जबरदस्त की वृद्धि हुई है.
वहीं इंग्लैंड की हायर एजुकेशन स्टेटिसटिक्स एजेंसी (एचईएसए) डेटा के अनुसार, यूके में दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 220 प्रतिशत की वृद्धि हुई. हालांकि अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या में 2015-16 से 2019-20 के बीच 9 फीसद की गिरावट आई है. कनाडा के पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट प्रोग्राम (पीजीडब्ल्यूपीपी), अमेरिका के वैकल्पिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (ओपीटी) और ब्रिटेन के नए स्नातक मार्ग(जीआर) स्नातकोत्तर के बाद सकारात्मक कार्य प्लेसमेंट के अवसर प्रदान करते हैं. कनाडा अमेरिका और इंग्लैंड द्वारा भारतीय छात्रों को उपलब्ध कराया जाने वाला ग्लोबल जॉब और वर्क परमिट को लेकर भारतीय छात्रों में एक बड़ा आकर्षण है. गौरतलब है कि खासतौर पर वर्क परमिट के अवसरों के लिए अनुमोदन दरों में भारतीय छात्रों का उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड है. वास्तव में कनाडा के पोस्ट ग्रेजुएशन वर्क परमिट प्रोग्राम के लिए भारतीय आवेदकों ने पिछले पांच वर्षों में 95 प्रतिशत से अधिक अनुमोदन दर देखी गई है.
इंटरनेशनल स्टडीज के एक्सपर्ट करुन्न कंदोई ने बताया कि बिजनेस स्कूल और साइंस टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग एवं मैप से संबंधित पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा भारतीय छात्रों के सबसे लोकप्रिय देश हैं. उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में 44 प्रतिशत और कनाडा में 37 प्रतिशत भारतीय छात्रों ने बिजनेस और प्रबंधन अध्ययन का चयन किया है. वहीं एसटीईएम के लिए भारतीय छात्रों की पहली पसंद संयुक्त राज्य अमेरिका है. 2020-21 में अमेरिका में 78 प्रतिशत भारतीय छात्रों ने एसटीईएम में अध्ययन किया है. अमेरिका में पढ़ाई के लिए आने वाले शीर्ष 25 देशों में यह तीसरी सबसे अधिक दर थी.
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डी शर्मा के मुताबिक यह विदेशी विश्वविद्यालय अपने छात्रों को बेहतर एवं आधुनिक अकादमिक शिक्षा एवं इंटरनेशनल कल्चर तो प्रदान करते ही है. साथ ही अमेरिका कनाडा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के यह विश्वविद्यालय अपना आकर्षण बनाए रखने के लिए छात्रों को बेहतरीन रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि भारत पिछले दस वर्षों में वैश्विक प्रतिभा विकास को आगे बढ़ा रहा है और पिछले दो सालों में महामारी के दौरान आईं बाधाओं के बावजूद विदेशों में अध्ययन करने की प्रवृत्ति पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बनी हुई है.
कनाडा के एक प्रख्यात बिजनेस स्कूल से पढ़ाई कर चुके भारतीय छात्र भास्कर शर्मा के मुताबिक कई भारतीय छात्रों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दाखिले के बाद उस देश की परमानेंट रेजिडेंटशिप हासिल करना भी एक बड़ा लक्ष्य होता है. भास्कर के मुताबिक छात्रों को उनकी योग्यता के आधार पर कई बार विदेश में अपने लक्ष्य हासिल करना संभव लगता है. खासतौर पर तब जबकि किसी एक क्षेत्र में खास तरह के तकनीकी लोगों की आवश्यकता होती है. उदाहरण के तौर पर कनाडा के स्वास्थ्य विज्ञान और कुशल ट्रेडों के क्षेत्र एक महत्वपूर्ण श्रम की कमी का सामना कर रहे हैं, जबकि ब्रिटेन में, सूचना और संचार क्षेत्र में 5.5 प्रतिशत पर देश में उच्चतम रिक्ति दरों में से एक है.
गौरतलब है कि जहां भारतीय छात्र बिजनेस स्टडीज, इंजीनियरिंग व अन्य टेक्निकल एजुकेशन के लिए कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चाइना और इंग्लैंड जैसे देशों का रुख कर रहे हैं वहीं मेडिकल की पढ़ाई के लिए भी भारतीय छात्र विदेशों का रुख करते आए हैं, लेकिन हाल के ही समय में रूस यूक्रेन युद्ध के कारण ऐसे हजारों भारतीय छात्रों को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. दरअसल यूक्रेन में लगभग 18000 भारतीय छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे लेकिन रूस द्वारा किए गए हमले के उपरांत इन छात्रों को कोर्स बीच में ही अधूरा छोड़कर भारत वापस लौटना पड़ा है. मेडिकल टेक्नोलॉजी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पवन चौधरी का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारतीय विद्यार्थी किसी अन्य देश में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के विकल्प ढूंढ़ेंगे क्योंकि इन दोनों देशों के मेडिकल कोर्स के लिए बड़ी संख्या में भारतीय विद्यार्थी आते हैं. इस स्थिति में बांग्लादेश, नेपाल, स्पेन, जर्मनी, किर्गिस्तान और यूके जैसे देश जहां कोर्स का खर्च कम है विद्यार्थियों को आकर्षित कर सकते हैं.
HIGHLIGHTS
- कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों की यूनिवर्सिटी का रुख
- यूक्रेन में लगभग 18000 भारतीय छात्र एमबीबीएस पढ़ रहे थे
- बीते पांच सालों में लगभग 350 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि