भारत के मेघालय में स्थित खासी जनजाति अपने अनोखे सामाजिक ढांचे के लिए जानी जाती है. यह जनजाति महिला प्रधान है, यानी यहां की सभी संपत्ति मां के नाम पर होती है और फिर यह बेटी को ट्रांसफर कर दी जाती है. इस प्रकार, महिलाएं न केवल घर की प्रमुख होती हैं, बल्कि समाज में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. खासी समुदाय में महिलाओं का वर्चस्व देखने को मिलता है. यहां की महिलाएं कई पुरुषों से विवाह कर सकती हैं, जबकि पुरुषों को अपने ससुराल में रहना पड़ता है. यह प्रथा न केवल महिलाओं को स्वतंत्रता देती है, बल्कि उनके लिए सम्मान और सुरक्षा का माहौल भी बनाती है.
जन्मोत्सव का अलग अंदाज
हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ पुरुषों ने इस प्रथा में बदलाव की मांग की है. उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते, बल्कि समानता का अधिकार चाहते हैं.बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, खासी जनजाति में बेटी के जन्म का जश्न धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि बेटे के जन्म पर उतनी खुशी नहीं होती. यह समाज इस बात पर जोर देता है कि महिलाएं परिवार और समाज के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं. यहां के बाजारों और दुकानों में भी महिलाओं की बहुलता है, जो यह दर्शाता है कि वे आर्थिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
विरासत की अनोखी व्यवस्था
बच्चों के नाम और सरनेम भी मां के नाम पर होते हैं, जो मातृ सत्ता की इस संस्कृति को और मजबूत करता है.खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे बड़ा हिस्सा मिलता है, जिसे "खातडुह" कहा जाता है. यह छोटी बेटी न केवल संपत्ति की देखभाल करती है, बल्कि माता-पिता और अविवाहित भाई-बहनों की जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखती है. इसके अलावा, उसका घर हर रिश्तेदार के लिए खुला रहता है, जो इस समुदाय में सहयोग और सामंजस्य को बढ़ावा देता है.
खेल और शिल्प
यहां की लड़कियां बचपन में जानवरों के अंगों से खेलती हैं और इन्हें आभूषण के रूप में भी उपयोग करती हैं. यह दिखाता है कि कैसे वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को छोटे-छोटे पहलुओं में भी शामिल करती हैं. इस प्रकार, खासी जनजाति का समाज न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि उन्हें मजबूत और आत्मनिर्भर भी बनाता है.