अहिंसा और शांति की राह पर चलकर महात्मा गांधी ने भारत की आजादी लड़ी थी. देश में जब-जब हिंसा की घटनाएं तेज हुई है तब-तब शांति का दूत बनकर किसी ने हिंसक लोगों को मार्ग शांति का मार्ग दिखाया है. गौतम बुद्ध ने भी शांति का संदेश पूरे देश में फैलाया. वहीं जब हर देश आगे निकलने के लिए अपने से कमजोर देश पर जीत पाने के लिए युद्ध का मार्ग अपनाए हुए हैं तो ऐसे में दुनिया के बीत शांति स्थापित करना बेहद जरूरी है.
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आज यानि 21 सितंबर को पूरी दुनिया में 'विश्व शांति दिवस' (International Peace Day 2020) के रूप में मनाया जाता है. मुख्य रूप से विश्व स्तर पर शांति बनाए रखने के लिए इस दिवस को मनाए जाने पर मोहर लगी थी. 'विश्व शांति दिवस' के मौके पर दुनिया के हर देश में जगह-जगह सफेद कबूतरों को उड़ा कर शांति का संदेश दिया जाता है. यह कबूतर शांति के प्रतीक हैं जो 'पंचशील' के सिद्धांतों को दुनिया भर में फैलाते हैं. सफेद कबूतर उड़ाने की यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. कबूतर को शांत स्वभाव का पक्षी माना जाता है. यही वजह है कि इसे शांति और सदभाव का प्रतीक बनाया गया है.
'विश्व शांति दिवस' क्यों है महत्वपूर्ण-
सभी देशों और/या लोगों के बीच और उनके अंदर स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श है. विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक माध्यम है, जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिये इच्छा से सहयोग करते हैं, ताकि युद्ध को रोका जा सके. हालांकि कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विश्व शांति के लिए सभी व्यक्तियों के बीच सभी तरह की दुश्मनी के खात्मे के रूप में किया जाता है.
कई बौद्ध धर्मावलंबी मानते हैं कि विश्व शांति तभी हो सकती है, जब हम अपने मन के भीतर पहले शांति स्थापित करें. बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम ने कहा, "शांति भीतर से आती है। इसे इसके बिना न तलाशें." इसका मतलब यह है कि गुस्सा और मन की अन्य नकारात्मक अवस्थाएं युद्ध और लड़ाई के कारण हैं. बौद्धों का विश्वास है कि लोग केवल तभी शांति और सद्भाव के साथ जी सकते हैं, जब हम अपने मन से क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं को त्याग दें और प्यार और करुणा जैसी सकारात्मक भावनाएं पैदा करें.
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'विश्व शांति दिवस' का इतिहास
दुनिया के सभी देशों और लोगों के बीच शांति बनी रहे इसके लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1981 में 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस'/'विश्व शांति दिवस' मनाने की घोषणा की थी. पहली बार 1982 में 'विश्व शांति दिवस' दिवस मनाया गया. 1982 से लेकर 2001 तक सितंबर महीने के तीसरे मंगलवार को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता रहा, लेकिन 2002 से यह 21 सितंबर को मनाया जाने लगा.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति बनी रहे इसके लिए 5 मूल मंत्र दिए थे. ये 'पंचशील के सिद्धांत' के तौर पर भी जाने जाते हैं. इनके मुताबिक विश्व में शांति की स्थापना के लिए एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता बनाए रखने और सम्मान किए जाने की बात कही गई थी.
'विश्व शांति दिवस' की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (न्यूयॉर्क) में संयुक्त राष्ट्र शांति की घंटी बजाकर की जाती है. इस घंटी के एक तरफ लिखा हुआ है कि विश्व में शांति सदैव बनी रहे.
Source : News Nation Bureau