उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिड-डे मील बनाकर खिलाने वाली महिला रसोइयों के सामने मानदेय का संकट गहरा गया है. जो महिला रसोइए अपने हाथों से खाना बनाकर स्कूल में बच्चों का पेट भरती हैं, उनके बच्चे और परिवार के लोग पिछले कई महीने से मानदेय के इंतजार में फांकाकशी का शिकार हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश के 1,68,768 स्कूलों में 20 लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं, जिनके लिए 3 लाख 95 हजार से ज्यादा रसोइयां खाना बनाती हैं. गोरखपुर में कुल 322 परिषदीय स्कूलों में 7667 महिला रसोइयों की नियुक्ति की गई है.
पिछले सत्र तक इन महिला रसोइयों को 1500 रुपये प्रतिमाह मानदेय के रूप में दिया जाता था. इस वित्तीय वर्ष में अप्रैल से इनका मानदेय बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया गया, लेकिन अप्रैल से लेकर सितंबर खत्म होने तक इन रसोइयों के खाते में एक भी रुपये मानदेय के रूप में नहीं आ पाया है. न्यूज नेशन ने जब एक प्राथमिक स्कूल बड़गो में मिड डे मील बनाने वाली इन महिला रसोइयों से बात की तो कई महिलाएं फफक पड़ी और रोते हुए बताया कि उनका परिवार इस समय काफी दिक्कतों से जूझ रहा है. सैलरी नहीं मिलने की वजह से ना तो किसी का बीमारी में इलाज हो पा रहा है, ना ही घर का राशन आ रहा है और ना ही तीज त्योहार मन पा रहा है.
इस समय प्राथमिक विद्यालय सुबह 8:00 बजे खुलते हैं और दोपहर 2:00 बजे तक चलते हैं. अधिकतर स्कूलों में विद्यालय खोलने और बंद करने का काम महिला रसोइया ही करती हैं. मिड डे मील बनाने और खिलाने के बाद बर्तन धुलने से लेकर स्कूल की साफ सफाई तक करने का काम इन महिला रसोइयों के जिम्मे होता है. जहां एक दिहाड़ी मजदूर हर रोज 300 से 400 रुपये पाता है वहीं यह 70 रुपये से भी कम प्रतिदिन मिलने वाले मानदेय का 6 महीने से इंतजार कर रही हैं.
प्राथमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारी और बड़गो स्कूल के प्रधानाध्यापक राजेश धर दूबे का कहना है कि उन्होंने भी रसोइयों की समस्या को जिले के अधिकारियों से लेकर प्रदेश के अधिकारियों तक उठाया है, लेकिन अब तक मानदेय को लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं हो पाई है. इनका कहना है कि प्रदेश सरकार की मंशा प्राथमिक स्कूल के बच्चों का शिक्षा स्तर उठाने की है, लेकिन अधिकारियों की घोर लापरवाही की वजह से संसाधनों के अभाव में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति और बदतर होती जा रही है. आज भी प्राथमिक स्कूलों में ना तो बच्चों को किताबें मिल पाई हैं, ना ही ड्रेस के लिए उनके परिजनों के खातों में पैसे आ पाए हैं.
पिछले 6 महीने से मिड डे मील के लिए प्रति छात्र जो कन्वर्जन कास्ट 4.97 रुपये भेजे जाते थे वह भी अब तक उनको नहीं मिल पाया है. रसोइयों के साथ-साथ प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों ने भी सरकार से गुजारिश की है कि वह इनकी समस्या पर ध्यान देकर इसे सुलझाने का काम करें नहीं तो आने वाले दिनों में प्राथमिक विद्यालयों के रसोइयों के काम छोड़ने की वजह से बच्चों को मिड डे मील भी नसीब नहीं हो पाएगा.
Source : Deepak Shrivastava