Toota Tara: फिल्मी दुनिया ने लोगों को हद से ज्यादा अंधा बना दिया है, इतना कि सच सुनने को तैयार ही नहीं है कोई. फिल्मों में अक्सर आपने देखा होगा कि टूटते तारे को देखकर विश मांगने से विश पूरी होती है. अब आलम ये है कि लोग अब आसमान में ऐसी खगोलिय घटनाओं को टूटता तारा देखकर विश मांगने लगते हैं. लेकिन साइंस की नजर से देखें तो ये पूरी तरह से अलग है. एस्ट्रोनॉमी की भाषा में ये कोई टूटता तारा नहीं ब्लिक पृथ्वी पर आने वाले उल्का पिंड हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल में आ जाते हैं लेकिन इनका आकार छोटा होता है कि वायुमंडल हमे इससे बचा लेता है.
उल्का पिंड से हुआ था डायनासोर का अंत!
पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हीं उल्का पिंड जलकर बिखर जाते हैं और तेज घर्षण की वजह से एक चमक उठती है जो आसमान में टूटते तारे बनकर नजर आते है. स्पेस में कई उल्का पिंड घूमते रहते हैं, कभी-कभी ये अपने रास्ते बदलकर पृथ्वी के ऑरबिट में आ जाते हैं. लेकिन शुक्र की बात ये है कि ये उल्का पिंड काफी छोटे होते हैं जिसे वायुमंडल बाहर ही जलाकर राख कर देता है, लेकिन अंदाजा लगाइए कि ये उल्का पिंड काफी बड़े हों तो वायुमंडल में आने के बाद भी ये धरती पर आ सकता है.
कई हजार साल पहले उल्का पिंड धरती पर गीरने के कारण ही डायनासोर की खात्मा हो गया. महाराष्ट्र के बुलढाना जिले की लोनार झील को लेकर भी कहा जाता है कि ये झील उल्का पिंड के गीरने से गड्ढा हो गया और पानी भरने की वजह से वहां एक झील बन गया.नासा से लेकर दुनिया की कई एजेंसियों ने इस पर रिसर्च किया हुआ है. जिससे पता चलता है कि उल्का पिंड से टकराने की वजह से ये झील बनी थी.
हमारी पृथ्वी के वायुमंडल (atmosphere) में 5 तरह के लेयर होते हैं जो धरती पर रहने वाले इंसानों को कई तरह के हानिकारक किरणों और तेज धूप से बचाता है. पृथ्वी के नॉर्थ और साउथ पोल से निकलने वाली मैगनेटिक वेब भी एक सुरक्षा कवच का काम करती है.
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