तीन राज्यों में हार के बाद पार्टी को संकट में छोड़ विदेश यात्रा पर निकलेंगे राहुल गांधी, कांग्रेस के अंदर उठे सवाल

राहुल गांधी नौ दिसंबर से इं​डोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम की यात्रा पर रहने वाले हैं। राहुल का ये दौरा ऐसे समय पर हो रहा है, जब हाल ही में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करारी हार का सामना करना पड़ा है.

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Mohit Saxena
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rahul gandhi( Photo Credit : social media)

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हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हिंदी पट्टी वाले तीन राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. इन राज्यों में भाजपा ने भारी अंतर से जीत दर्ज की है. इस बीच खबर सामने आई है कि 9 दिसंबर से राहुल गांधी विदेश यात्रा पर​ निकलने वाले हैं. वे इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम की यात्रा पर होंगे. राहुल का ये दौरा ऐसा वक्त पर हो रहा है, जब हाल ही में तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को करारी हार सामना करना पड़ा है. इसके साथ संसद का शीतकालीन सत्र भी जारी है. 

खुद कांग्रेस नेता दबी जुबान में सवाल उठा रहे हैं. ऐसे मौके पर राहुल गांधी को हार के कारणों पर मंथन करना चाहिए. अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ की गलतियों पर चर्चा होनी चाहिए. इस समय वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को अकेला छोड़ विदेश यात्रा पर निकले रहे हैं. सवाल उठ रहे हैं कि इन तीन नेताओं के कारण मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को करारी हार​ मिली है. 

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तीनों सीएम पर ऐसे आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने आलाकमान को अंधेरे में रखा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की तस्वीर दिखाई. बताया जा रहा है कि 3 दिसंबर को फैसले वाले दिन जश्न मनाने के लिए दिल्ली के बंगाली बाजार में सैकड़ों किलो लड्डू की खरीददारी की गई. मगर दुर्भाग्य से जश्न मातम में बदल गया. 

कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे हैं. मगर सबको मालूम है कि वे हर बड़े फैसले को लेकर राहुल गांधी पर निर्भर हैं. इस हार पर पार्टी के अंदर एक सख्त मैसेज देने की आवश्यकता थी, मगर राहुल गांधी 9 से 14 दिसंबर तक विदेश यात्रा पर रहेंगे. पार्टी का कहना है कि खड़गे और राहुल को कांग्रेस विधायी दल के नेताओं के साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रमुखों का इस्तीफा मांगने में देरी नहीं करनी चाहिए. 

देरी होने पर पार्टी के अंदर गलत मैसेज जाएगा. इससे विषय की गंभीरता पर असर पड़ेगा. इस मौके पर कांग्रेस को आत्ममंथन के बाद बड़े बदलाव की जरूरत थी. हार के विशलेषकों का कहना है कि देरी की वजह से दोषियों को बचने का मौका मिलेगा और शीर्ष नेताओं की कार्यशैली पर भी असर पड़ेगा. 

कांग्रेस को सब चलता है कि अप्रोच को छोड़ना चाहिए. ऐसा ही एक उदाहरण 2003 और 2013 का है जब गहलोत चुनाव हारे. मगर उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया गया. ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी 2003 में हुआ, जब हार के बावजूद दिग्विजय सिंह को कांग्रेस महासचिव बनाया गया. बीते साल पंजाब विधानसभा चुनाव में हार के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस वर्किंग कमेटी में स्थान दिया गया. 

Source : News Nation Bureau

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