असम (Assam) में चीन चरणों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. यहां के कई स्थानीय मुद्दे ऐसे हैं जो किसी भी पार्टी के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं. ऐसा ही एक मुद्दा यहां के चाय बागान (Tea Estate) में काम करने वाले 10 लाख से अधिक मजदूरों का है जिन पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है. असम के 856 चाय बगानों में 10 लाख से अधिक चाय श्रमिक कार्यरत हैं. इस संगठित क्षेत्र के श्रमिक यहां भारत में उत्पादित कुल चाय का 55 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन करते हैं. 126 सदस्यीय सीट वाली असम विधानसभा में लगभग 25 से 30 सीटें ऐसी हैं, जहां चाय जनजाति समुदाय निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. असम विधानसभा में तीन चरणों के चुनाव होंगे 27 मार्च (47 सीटें), 1 अप्रैल (39 सीटें) और 6 अप्रैल (40 सीटें). परिणाम 2 मई को घोषित किए जाएंगे.
वेतन में वृद्धि पर अदालती पेंच फंसा
2016 में सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने चाय श्रमिकों के वेतन में 30 रुपये की वृद्धि की थी, और 20 फरवरी को राज्य सरकार ने 7,46,667 चाय बागान श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में 50 रुपये की वृद्धि कर 167 रुपये से 217 रुपये कर दिया. हालांकि चाय बागान श्रमिकों के लिए मजदूरी में 50 रुपये की बढ़ोतरी को लागू करने में देरी हो सकती है, क्योंकि इस संबंध में भारतीय चाय संघ (आईटीए) ने एक याचिका दायर की है.
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कार्रवाई पर लगी है अदालती रोक
असम में 90 प्रतिशत चाय सम्पदा रखने वाली आईटीए और 17 चाय कंपनियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति माइकल जोथाखुमा ने हाल ही में राज्य सरकार से आईटीए और चाय कंपनियों के खिलाफ तब तक कोई भी कठोर कार्रवाई न करने को कहा जब तक कि वेतन वृद्धि पर राज्य श्रम विभाग की अधिसूचना को चुनौती देने वाले मामले का निपटारा नहीं होता है. हाई कोर्ट ने इस तर्क को बरकरार रखा कि वेतन बढ़ोतरी 'अवैध' थी, क्योंकि कोई भी समिति या उप-समिति गठित नहीं की गई थी, जैसा कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 की प्रासंगिक धाराओं के तहत आवश्यक था. बहरहाल यह मामला 15 मार्च को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
कांग्रेस इसी मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ
चाय बगान श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में वृद्धि नहीं करने के लिए भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कांग्रेस, जो छह अन्य दलों के साथ विधानसभा चुनाव लड़ रही है, ने हाल ही में पांच 'गारंटी' की घोषणा की. पार्टी का कहना है कि सत्ता में आने पर इस गारंटी को पूरा किया जाएगा. साथ ही चाय श्रमिकों के दैनिक वेतन को मौजूदा 167 रुपये से बढ़ाकर 365 रुपये कर दिया जाएगा. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले असम में चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी को 350 रुपये तक संशोधित करने का वादा किया था.
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चुनावी वादे ही हो रहे छलावा
प्रसिद्ध राजनीतिक टिप्पणीकार सुशांता तालुकदार ने कहा कि चाय श्रमिकों की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय है और उन्हें उनके उचित वेतन और अन्य लाभों से वंचित रखा गया है. हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल उनके वेतन और विभिन्न लाभों को बढ़ाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनावों के बाद कुछ भी पूरा नहीं होता है. तालुकदार ने बताया, 'श्रमिकों को सशक्त किए बिना, चाय उद्योग फल-फूल नहीं सकता. यदि चाय उद्योग पनपता है, तो असम की अर्थव्यवस्था बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटने में मदद करेगी.' ऑल असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एटीटीएसए) ने 22 मार्च को सभी चाय बागानों को बंद करने की घोषणा की है.
समस्याओं से ग्रस्त हैं चाय बागान श्रमिक
एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज गोवाला ने कहा कि सभी सरकारें चाय श्रमिकों की समस्याओं का समाधान करने में विफल रही हैं. गोवाला ने बताया, 'चुनाव से पहले, हम लोगों को इस बात से अवगत कराएंगे कि किस तरह से भाजपा, पिछली असम गण परिषद और कांग्रेस सरकारों द्वारा चाय श्रमिकों के साथ अन्याय किया गया है.' विशेषज्ञों के अनुसार सरकारी प्रतिबंधों के अलावा कोविड-19 महामारी, देशव्यापी तालाबंदी के कारण उत्पादन में गिरावट आई है, जिससे बड़ी विदेशी मुद्रा आय का नुकसान हुआ क्योंकि भारत 30 से अधिक देशों में चाय का निर्यात करता है.
HIGHLIGHTS
- असम की 25 से 30 सीटों पर चाय जनजाति समुदाय की निर्णायक भूमिका
- असम के 856 चाय बगानों में 10 लाख से अधिक चाय श्रमिक कार्यरत
- कांग्रेस इसी मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ ठोंक रही है ताल