Azamgarh Election : आजमगढ़ में सियासी समीकरण को लेकर यहां के उम्मीदवार भी उलझन में है. उन्हें भी उम्मीद है कि इस बार चुनावी जीत हासिल करना उतना आसान नहीं है. भले ही आजमगढ़ के मतदाताओं के बीच इस बार विकास भी बड़ा मुद्दा है लेकिन जातिगत राजनीति भी अपनी जगह बरकरार है. सभी दलों में समीकरण साधने वालों की उम्मीदवारी से सपा के 'गढ़ में माहौल थोड़ा बदला-बदला है. सपा, बसपा के लिए प्रदर्शन दोहराना चुनौती विधायक शाह आलम गुड्डू जमाली, बंदना सिंह के बगैर चुनाव लडऩे से बसपा के लिए परिस्थितयां न सिर्फ बदली हैं, बल्कि राज्य विश्वविद्यालय, एयरपोर्ट, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, सुदृढ़ स्वास्थ सेवाएं, मुफ्त राशन चर्चा के केंद्र में है. हालांकि महंगाई, बेरोजगारी का मलाल भी है. हालांकि यहां के मतदाता विकास के साथ-साथ यहां की समस्याएं को लेकर भी दर्द बयां कर रहे है. कुल मिलाकर पिछली बार दस सीटों में से नौ सीटें जीतने वाली सपा, बसपा के लिए प्रदर्शन दोहराना चुनौती है तो पिछले चुनाव में वोटों में उछाल तक सिमटी भाजपा के लिए सीटें बढ़ाना है.
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सभी प्रत्याशियों में दिख रहा दम
आजमगढ़ सदर से सपा प्रत्याशी दुर्गा यादव प्रत्याशी हैं. आठ बार के विधायक व पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव फिर से मैदान में हैं. 30 फीसद सवर्ण मतदाता वाली सीट पर कांग्रेस ने प्रवीण सिंह, भाजपा ने अखिलेश मिश्र व बसपा ने सुशील सिंह को उतारा है. 21 प्रतिशत एससी, 12 फीसद मुस्लिम भी परिणाम पर असर डालेंगे. हालांकि इस चुनाव में भाजपा प्रत्य़ाशी अखिलेश मिश्र भले ही जीत को लेकर आशान्वित दिखें, लेकिन सुशील सिंह और प्रवीण सिंह को भी कम आंकना भूल होगी.
आसान नहीं मुबारकपुर विधानसभा सीट
बसपा विधायक शाह आलम गुड्डू जमाली इस बार ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम के प्रत्याशी हैं. 30 प्रतिशत पिछड़े मतदाता वाली सीट पर सपा के स्थानीय अखिलेश यादव मामूली वोटों से हारते थे, लेकिन बसपा से अब्दुस्सलाम, कांग्रेस से परवीन मंदे ने लड़ाई को उलझा दिया है. उलझी जंग में भाजपा के अरविंद जायसवाल जीजान से जुटे हैं. यहां 27 फीसद सवर्ण, 24 फीसद अनुसूचित व 16 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं. हालांकि इतना तय है कि जो सियासी समीकरण को साधने में सफल होंगे जीत उनकी ही तय होगी.