महज चार महीने पहले चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले शिवसेना के 'राजकुमार' आदित्य ठाकरे के सिर पर ताज सजने का गौरव हासिल होने की पूरी संभावना है, क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी 'किंग मेकर' के रूप में उभरी है. 'मातोश्री' की अलिखित परंपराओं को ताक पर रखते हुए मुंबई के 'प्रथम परिवार' के 29 वर्षीय अविवाहित लाडले आदित्य न केवल चुनावी रण में कूदे, बल्कि जीते भी.
शुरुआत में, पार्टी का एक धड़ा चाहता था कि उन्हें 'नए चेहरे' के तौर पर अगले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाए, जबकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि उनके 'सेनापति' उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करें, ताकि "पार्टी के दिवंगत संस्थापक बाल ठाकरे का सपना पूरा हो. लेकिन सीट बंटवारे को लेकर सहयोगी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की त्योरी चढ़ गई. उसने 288 में से मात्र 124 सीटें देकर शिवसेना नेताओं की महत्वाकांक्षा को कुचलने का प्रयास किया और इस कारण शिवसेना के अंदर विरोध के स्वर उठने लगे थे.
पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे मगर महत्वाकांक्षा की बात को नकारते रहे या यूं कहें कि देवेंद्र फड़णवीस सरकार की दूसरी पारी में अपने बेटे के उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना तक को उन्होंने नकार दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान एक मौके पर सवाल किए जाने पर आदित्य ठाकरे ने बाल सुलभ भोलापन दिखाते हुए कहा था कि 'सीएम' (कॉमन मैन) यानी आम आदमी तो वह हैं ही. उन्होंने खुद को अपने निर्वाचन क्षेत्र का आम आदमी बताया था. मृदुभाषी और स्नातक डिग्रीधारी आदित्य ने साल 2010 में पार्टी की युवासेना की कमान संभाली थी और 2018 में वह शिवसेना नेता के रूप में पदोन्नत हुए.
रश्मि और उद्धव ठाकरे के बेटे, एक ठेठ मुंबईकर आदित्य ने स्कूली पढ़ाई माहिम इलाके के प्रतिष्ठित बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल में की. बाद में उन्होंने सेंट जेवियर कॉलेज से बीए (इतिहास) और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री ली.
आदित्य को कविता लिखने में भी रुचि है. उनकी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'माइ थॉट्स इन ह्वाइट एंड ब्लैक' (2007) प्रकाशित है. उन्होंने एक निजी संगीत अलबम 'उम्मीद' के लिए आठ गीत भी लिखे हैं.
इस साल लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद निकाली गई राज्यव्यापी 'महा जनआशीर्वाद यात्रा' ने आदित्य को चुनावी राजनीति में उतरने को प्रेरित किया. हालिया विधानसभा चुनाव में उन्होंने बड़ी सावधानी से अपने लिए वर्ली सीट चुनी. उन्हें हर वर्ग का समर्थन मिला. यहां तक कि उद्धव परिवार से नाराज चाचा यानी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार न उतार कर भतीजे को परोक्ष रूप से समर्थन दिया. परिवार और पार्टी में आदित्य ठाकरे की जीत का जश्न अगर बड़े पैमाने पर मनाया जाए, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
Source : आईएएनएस