हरियाणा : कांग्रेस के लिए हुड्डा साबित हुए 'ओल्ड इज गोल्ड', नतीजे और बेहतर होते अगर...

कांग्रेस में पांच वर्षो से ज्यादा समय से अशोक तंवर प्रदेश अध्यक्ष रहे. उनके नेतृत्व में हुए 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य में करारी हार झेलनी पड़ी थी

author-image
Sushil Kumar
New Update
हरियाणा : कांग्रेस के लिए हुड्डा साबित हुए 'ओल्ड इज गोल्ड', नतीजे और बेहतर होते अगर...

भूपेंद्र सिंह हुड्डा( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

Advertisment

हरियाणा विधानसभा चुनाव में 72 वर्षीय भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के लिए 'ओल्ड इज गोल्ड साबित हुए. उन्होंने सिर फुटौव्वल की परिस्थितियों से गुजरती कांग्रेस को आखिरी समय में इस कदर खड़ा किया कि वह भाजपा और बहुमत के आंकड़े के बीच आकर खड़ी हो गई. सूत्र बताते हैं कि पार्टी अगर हुड्डा पर पहले से भरोसा जताती तो कांग्रेस के लिए नतीजे और बेहतर हो सकते थे. दरअसल, कांग्रेस में पांच वर्षो से ज्यादा समय से अशोक तंवर प्रदेश अध्यक्ष रहे. उनके नेतृत्व में हुए 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य में करारी हार झेलनी पड़ी थी.

इसको लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनकी रह-रहकर तकरार होती रही. यह लड़ाई कई मौकों पर सार्वजनिक भी हुई. रार इस कदर बढ़ी कि खुद को कांग्रेस में हाशिये पर देखकर हुड्डा अलग पार्टी बनाने पर भी विचार करने लगे थे. राहुल गांधी का भरोसेमंद होने के कारण अशोक तंवर शुरुआती समय में भारी पड़ते रहे, मगर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद स्थितियां तेजी से बदलनी शुरू हुईं. हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. फिर सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने और संगठन के फैसलों में अहमद पटेल के प्रभावी होने के बाद पार्टी में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मजबूत होने लगे.

इस बीच पहले तो पार्टी हित की दुहाई देकर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने हुड्डा और तंवर में सुलह कराने की कोशिश की, मगर बात न बनने पर कड़ा फैसला लेते हुए सितंबर में प्रदेश अध्यक्ष की कमान अशोक तंवर से लेकर कुमारी शैलजा को दे दी, वहीं हुड्डा को इलेक्शन कमेटी का इंचार्ज बना दिया. बाद में बागी हुए अशोक तंवर ने अक्टूबर में पार्टी को अलविदा कह दिया. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अशोक तंवर के पार्टी छोड़ने के बाद हुड्डा पर खुद को साबित करने का दबाव हुआ. उनकी प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लग गई थी. हुड्डा को पता था कि अगर कांग्रेस की बुरी स्थिति हुई तो फिर ठीकरा उन्हीं के सिर पर फूटेगा.

हुड्डा यह भी जानते थे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बेटे सहित हार चुके हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव मेंउनकी स्थिति 'करो या मरो' की रही. यही वजह है कि उन्होंने अपने पूरे अनुभव को इस चुनाव में झोंक दिया. अपनी गढ़ी सांपला किलोई सीट के साथ पार्टी के अन्य उम्मीदवारों की सीटों पर भी चुनाव प्रबंधन का काम उन्होंने अपने हाथ में ले लिया. हुड्डा ने कांग्रेस के सभी नए और पुराने नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. टिकट पाने से चूके भाजपा के बागियों से भी 'बैकडोर' से संपर्क करने के लिए उन्होंने पूरी टीम लगा दी. आखिरकार, हुड्डा की मेहनत रंग लाई और पिछली बार की सिर्फ 15 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार 31 यानी दोगुनी से ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही.

congress Bhupendra Singh Hudda Haryana Assembly Election Result 2019 Haryana Assembly Election Results
Advertisment
Advertisment
Advertisment