दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में प्रदर्शन होने से चुनाव पर इसका असर पड़ सकता है. जहां कांग्रेस (Congress) ने सीएए विरोधी रुख अपना रखा है, वहीं केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) सीएए का समर्थन कर रही है. वहीं दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपना कोई स्पष्ट रुख नहीं रखा है. इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सिर्फ शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं. तटस्थ रुख को त्यागते हुए केजरीवाल ने बुधवार को दिल्ली में अस्थिरता के लिए भाजपा (BJP) पर आरोप लगाया.
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केजरीवाल ने ट्वीट किया, "आपको दिल्ली में भड़की हिंसा के पीछे की राजनीति समझने की जरूरत है. जहां एक पार्टी अपने काम के दम पर चुनाव लड़ने जा रही है, तो दंगों से किस पार्टी को लाभ होना है, दिल्ली की जनता बहुत समझदार है."
राष्ट्रीय राजधानी के कुछ पॉश इलाकों में दंगा और हिंसक प्रदर्शनों से अराजकता फैल गई है. इस डर से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होने जा रहे चुनाव में भाजपा को उसके राम बाण 'कट्टर राष्ट्रवाद' के साथ लाभ मिल सकता है.
जहां पारंपरिक आप मतदाता दिल्ली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से खुश हो सकती है, वहीं आप रविवार को दिल्ली की सड़कों पर हुई हिंसा से मध्यम वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती है. आप और उसके कार्यकर्ता शांत हैं और प्रदर्शनों में सामने नहीं आ रहे हैं और यहां तक कि ओखला से आप विधायक भी रविवार के बाद से कहीं नहीं देखे गए.
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दिल्ली ने लोकसभा में जहां भाजपा को वरीयता दी, वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी. साल 2013 में विधानसभा चुनाव में भी आप ने जीत दर्ज की थी और उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप कर दिया था, वहीं 2015 में विधानसभा चुनाव में आप ने 70 में से 67 सीटों पर कब्जा किया. हालांकि सीएए तथा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद आगामी चुनाव काफी संवेदनशील हो गया है.
भाजपा प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने आप विधायक अमानतुल्ला खान पर जामिया और उसके पड़ोसी न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में आगजनी का आरोप लगाते हुए आईएएनएस से कहा, "हम इसे चुनाव के आईने से नहीं देखते. हम देश पर इसके दुष्प्रभाव और इसकी नीतियों को लेकर चिंतित हैं."
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जहां सीएए के विरोध में विभिन्न मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चल रहे प्रदर्शन टीवी पर लाइव दिखाए जा रहे हैं, तो भाजपा ज्यादा परेशान नहीं होगी, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के मुद्दे से उसे दिल्ली में लाभ मिल सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी. दिल्ली में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता वाले कम से कम 10 विधानसभा क्षेत्र हैं.
Source : आईएएनएस