दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप' की जीत में आश्चर्यजनक जैसा कुछ भी नहीं. प्रधानमंत्री मोदी से ज्यादा दिल्ली चुनाव गृहमंत्री अमित शाह के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था. जयप्रकाश नड्डा ने पार्टी के अध्यक्ष पद को भले संभाल लिया लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने बीजेपी का नेतृत्व खुद संभाल रखा था. पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद उन्हें एक जीत चाहिए थी लेकिन ये संभव नहीं हो पाया. झारखंड में हार हुई और जिसकी कल्पना नहीं कर सकते थे ऐसा महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र भी हाथ से चला गया. देश की राजधानी में 'आप' का झंडा लहराया और आर्थिक राजधानी में शिवसेना का मुख्यमंत्री विराजमान है. यह तीर कलेजे को चीरनेवाला है.
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लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद बीजेपी एक के बाद एक राज्यों को गवां रही है. चार महीने पहले दिल्ली में सभी सात सीटों पर बीजेपी की जो जीत हुई वो प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा था. मोदी या बीजेपी के सामने किसी बड़ी पार्टी या बड़े नेता की चुनौती नहीं थी.
इस कारण से बीजेपी की एकतरफा जीत हुई. लेकिन विधानसभा चुनाव में एक तरफ राज्य में मजबूत नेतृत्व था और उसके सामने मोदी-शाह की ‘हवाबाज’ नीति असफल हो गई, ऐसी तस्वीर सामने आई.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे देखने पर ये बात सामने आती है कि अकेले केजरीवाल पूरी केंद्र सरकार और शक्तिशाली बीजेपी पर भारी पड़े हैं. केजरीवाल को हराने के लिए बीजेपी ने देशभर से ढाई सौ सांसद, दो चार सौ विधायक, मुख्यमंत्री और अन्य राज्यों के मंत्रियों सहित पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल को मैदान में उतार दिया था. लेकिन इस फौज को आखिरकार दिल्ली के मैदान में पराजय का मुंह देखना पड़ा. यह अहंकार, आत्ममुग्धता और ‘हम करें वही कानून’ की वृत्ति की हार है.
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दिल्ली विधानसभा में किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए इसको लेकर हमेशा की तरह बीजेपी के होश उड़ गए. हर बार की तरह यहां भी हिंदू-मुसलमान, राष्ट्रवाद और देशद्रोह जैसे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रचार करते हुए वोट मांगे. लेकिन दिल्ली के मतदाताओं ने उनके इन मुद्दों को ठोकर मारते हुए पांच साल काम करनेवाले केजरीवाल को वोट दिया.
केजरीवाल ने गत 5 सालों में किए गए कामों को दिखाकर वोट मांगे. आमतौर पर हमारे चुनावों में ऐसा नहीं देखा जाता है. अमूमन भावनात्मक और धार्मिक मुद्दों पर ही जोर दिया जाता है. भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा की तरह दिल्ली में भी यही किया. नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी जैसे मुद्दों पर माहौल को गर्माया.
सीएए अर्थात नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में आंदोलनकारी बैठे. तब वहां बैठे लोगों का ये आंदोलन सिर्फ मुसलमानों का है ऐसा प्रचार करते हुए वोट पाने का प्रयास किया गया, जो कि सफल नहीं हो पाया. दिल्लीवासियों ने 'आप' की झोली में विजय का दान किया है. विधानसभा के 70 में से लगभग 60 सीटों पर 'आप' की जीत हुई. पिछली बार की तुलना में इस बार बीजेपी की सीटें बढ़ी हैं.
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वोटों का प्रतिशत भी थोड़ा बढ़ा है और कांग्रेस को मिलनेवाले वोटों में बड़ी गिरावट देखने को मिली है, ये सब बीजेपी के लिए शायद ‘संतोषजनक’ हो सकता है लेकिन आखिरकार केजरीवाल और उनके द्वारा गत 5 सालों में किए गए काम कथित राष्ट्रवाद और हिंदू-मुसलमानों के ध्रुवीकरण की जुमलेबाजी पर हावी पड़ गए. ये स्वीकार करना होगा कि केजरीवाल ने किए हुए कामों के बल पर ही पुन: सत्ता प्राप्त की है.
उन्होंने लोगों को भ्रमित नहीं किया और जो काम किया उसी के आधार पर वोट मांगे. केजरीवाल ने दिल्ली के स्कूलों में बड़ा काम किया. सरकारी स्कूलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाया. ये स्कूल और वहां की शिक्षा प्रणाली विश्वभर में आदर्श साबित हुई.
केजरीवाल ने स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा सुधार किया. उनकी मोहल्ला क्लिनिक योजना का लाभ गरीबों को मिला. भ्रष्टाचार शून्य पर आ पहुंचा. केजरीवाल का दिल्ली प्रदेश केंद्र शासित होने के कारण कानून-व्यवस्था, पुलिस और उद्योग उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते. उन्हें इसका लाभ ही हुआ. दिल्ली में कानून-व्यवस्था के बारह बज गए और उन्होंने इसका ठीकरा मोदी-शाह पर फोड़ा. लेकिन पानी तथा बिजली की बिल माफी का पूरा श्रेय उन्होंने लिया.
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बीजेपी हिंदू-मुसलमान और पाकिस्तान आदि चिल्लाते बैठी. ‘केजरीवाल एक नंबर के आतंकवादी हैं’, ऐसा बीजेपी ने घोषित कर दिया. लेकिन आखिरकार जीत केजरीवाल के 'आप' की हुई. 'स्वार्थियों' का पराभव हुआ. केजरीवाल की झाड़ू ने सबको साफ कर दिया. केजरीवाल का अभिनंदन!