राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election) में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को धूल चटाने वाले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) वाकई राजनीति के जादूगर निकले. वैसे गहलोत जादूगर परिवार से आते हैं. 3 मई 1951 में जोधपुर में जन्मे गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह जादूगर थे. माना तो यह भी जाता है कि गहलोत ख़ुद भी जादू के बारे में जानते हैं. एक माह पहले ही चुनाव प्रचार के दौरान अशोक गहलोत ने कहा था, ‘इस बार के चुनाव में भी जादू चलेगा. हालांकि किसी को जादू दिख रहा है और किसी को नहीं दिख रहा है.’
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अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वह प्रखर वक्ता नहीं हैं, लेकिन बोलते हैं तो शब्द सटीक और निशाना अचूक होता है. चुनाव में बहुमत मिलने तक राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, क्योंकि राहुल गांधी अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बना चुके थे. माना जा रहा था कि गहलोत को राष्ट्रीय राजनीति में लाकर राहुल गांधी सचिन पायलट को प्रदेश की कमान सौंपेंगे लेकिन ऐन वक्त पर अशोक गहलोत ने ऐसा जादू किया कि पायलट को को-पायलट (CO-Pilot) बनने को मजबूर होना पड़ा और गहलोत राजस्थान के सिकंदर साबित हुए.
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अशोक गहलोत राजनीति में समाजसेवा के ज़रिए आए. 1971 में वे बांग्लादेशी शरणार्थियों के शिविर में काम करते देखे गए थे. इससे पहले गहलोत 1968 से 1972 के बीच गांधी सेवा प्रतिष्ठान के साथ भी काम कर चुके थे. बताया जाता है कि उनके सेवा भाव ने इंदिरा गांधी तक उनकी पहुंच बनाई. कहा तो यह भी जाता है कि जम्मू-कश्मीर के चुनावों में एक क्षेत्र के प्रभारी के रूप में उन्हें कुछ धनराशि दी गई, जिसका चुनाव के बाद गहलोत ने एक-एक रुपये का हिसाब दिया और बचे रुपये पार्टी फंड में जमा करा दिए.
जोधपुर विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष के चुनाव से की राजनीति की शुरुआत
अशोक गहलोत ने 1973 अपने जीवन का पहला चुनाव जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में लड़ा. हालांकि उसमें वे पराजित हो गए थे. तब वे लाल रंग की येजडी बाइक से चलते थे. गहलोत अर्थशास्त्र में एम.ए. के विद्यार्थी रहे थे. 1977 में वे पहली बार कांग्रेस से जोधपुर विधानसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए. पहली बार 1980 में वे जोधपुर से सांसद चुने गए और पांच बार संसद में जोधपुर का प्रतिनिधित्व किया. 1982 में पहली बार इंदिरा गांधी की मंत्रिपरिषद में उन्हें उपमंत्री बनाया गया था. तब शपथ लेने के लिए वे तिपहिया में बैठकर गए थे. 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें कपड़ा मंत्री बनाया गया. बाद में राव ने उन्हें पद से हटा दिया था. उसके बाद 1998 में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. तब से प्रदेश की जनता ने हर पांच साल में सरकार बदलने का सिलसिला शुरू किया. 2008 में वे फिर मुख्यमंत्री बने और अब 2018 में वे फिर से राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.
Source : Sunil Mishra