राजस्थान विधानसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट कांग्रेस की तरफ से ताल ठोक रहे हैं. हालांकि गहलोत खेमा अभी भी प्रदेश में काफी मजबूत है, जिससे पायलट को रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है, लेकिन सचिन पायलट मजबूती से डटे हैं. चेहरा बदलने से कुछ तरीके भी बदले हैं. दूसरी ओर, भाजपा में वसुंधरा राजे का एकछत्र राज है और ज्यादा से ज्यादा उन्हें संघ या ओम माथुर खेमे की ओर से यदा-कदा चुनौती मिल जाती है. राज्य में चेहरे के तौर पर वहीं स्थापित हैं. अब दोनों पार्टियों में टिकट देने के समय यहीं खेमेबंदी सामने आ रही है. वसुंधरा तो जैसे-तैसे संघ और ओम माथुर को समझा सकती हैं, लेकिन सचिन पायलट के लिए यह काम उतना आसान नहीं होगा. उन्हें गहलोत और सीपी जोशी खेमे को खुश करके ही चलना होगा.
राहुल गांधी ने सचिन पायलट को काफी समय पहले प्रदेश की कमान सौंप दी थी, तब गहलोत उनके साथ गुजरात समेत अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावाें में व्यस्त थे. इस दौरान सचिन पायलट ने पूरे प्रदेश का दौरा कर अपनी मजबूती कायम करने की कोशिश की. कुछ हद तक वह कामयाब भी हुए, लेकिन बीच-बीच में उन्हें सीपी जोशी और गहलोत खेमे की पेशबंदी से दो-चार होना पड़ा. कई बार अशोक गहलोत ने खुद मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर दी. दोनों खेमों की तरफ से बयानबाजी भी होती रही। बीच-बीच में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दखल भी देना पड़ा.
बाद में राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सुशोभित होने के बाद उन्होंने जनार्दन द्विवेदी की जगह अशोक गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंप दी. तब से यह माना जाने लगा कि आलाकमान गहलोत को राष्ट्रीय राजनीति में लाएगा और प्रदेश की कमान सचिन पायलट के जिम्मे ही रहेगी, लेकिन बीच-बीच में अशोक गहलोत अब भी कई बार अपनी लिप्सा को जाहिर करते रहे. हालांकि प्रदेश में चुनाव की घोषणा से पहले राहुल गांधी के कहने पर एक रैली में सचिन पायलट और अशोक गहलोत एक ही स्कूटर से पहुंचे. इस दौरान अशोक गहलोत ने यह भी कहा कि सचिन पायलट अच्छी तरह स्कूटर चलाते हैं. तब से यह माना जाने लगा है कि अब पायलट के सामने कोई बाधा नहीं है, लेकिन अब यह उनकी कायर्कुशलता पर निर्भर है कि वह सीपी जोशी और अशोक गहलोत खेमे को कैसे खुश कर पाते हैं.
दूसरी ओर, भाजपा की बात करें तो जीत कायम रहने तक वसुंधरा का दबदबा भी कायम है. जैसे ही सीटों की संख्या विपक्ष में बैठने लायक हुई, उनकी ताकत कमतर होती जाएगी। फिलहाल पार्टी वसुंधरा पर ही दांव लगा रही है. जैसे ही वह कमजोर हुईं, ओम माथुर और संघ का खेमा उन्हें और कमजोर करेगा.
Source : News Nation Bureau