गोवा में बीजेपी के लिये आम आदमी पार्टी सिरदर्द बनती जा रही है। राज्य में पार्टी के अंदर फूट और चुनौतियों के कारण बीजेपी के सामने राज्य के चुनावों में समस्य़ाएं हैं। राज्य के इसाई वोटरों का भी मोह बीजेपी से भंग हुआ है।
भाजपा के लिए मुश्किल पैदा करने वाले सुभाष वेलिंगकर ने अपने सियासी चालों के वजह से भी सिरदर्ध बने हुए हैं। राज्य के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर पार्टी और जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वर्तमान रक्षामंत्री और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ही गोवा में बीजेपी की वापसी की उम्मीद हैं।
बीजेपी नेताओं के हाल के बयानों को देखें तो ऐसा लगता है कि मनोहर पर्रिकर को बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री भले ही बना दिया हो लेकिन गोवा से अलग नहीं कर सकती है। चुनाव में भी उनकी भूमिका प्रमुख थी।
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पांच साल पहले पर्रिकर ने खनन में हो रहे भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था और मनोहर पर्रिकर जैसे नेता को मुख्.यमंत्री पद का दावेदार मनोनीत कर राज्य में सत्ता हासिल की थी। लेकिन पांच साल बीतने के बाद बीजेपी की स्थिति खराब हुई है। खनन अब भी बड़ा मुद्दा है और बीजेपी से जनता को मोह भी भंग हुआ है। इधर आम आदमी पार्टी भी भ्रष्टाचार और खनन को मुद्दा बना रही है।
लक्षमीकांत पारसेकर राज्य में जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में असफल रहे हैं। यही वजह है कि गोवा बीजपी के प्रभारी और केद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो मनोहर पर्रिकर दोबारा राज्य की राजनीति में आ सकते हैं।
बीजेपी को लगता है कि गोवा जनता में मनोहर पर्रिकर को लेकर अब भी भरोसा है और यही वजह है कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने भी एक चुनावी रैली के दौरान कहा कि पर्रिकर को राज्य की अगली सरकार का मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ही होंगे।
देखा जाए तो चुनावों की घोषणा के बाद पर्रिकर दिल्ली से ज्यादा गोवा में समय बिता रहे हैं। अमित शाह ने कहा था कि पर्रिकर दिल्ली रहेंगे यो फिर गोवा में इस पर फैसला चुनावों के बाद ही तय होगा।
आम आदमी के राज्य की राजनीति में आने के बाद बीजेपी को पर्रिकर की कमी खलने लगी है। आप ने एल्विस गोम्स को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है और बीजेपी को चुनौती भी मिल रही है कि वो अपना सीण उम्मीदवार घोषित करें।
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पर्रिकर की साफ धवि को लेकर भी जनता के बीच में संदेह जैसी स्थिति नहीं है। पारसेकर जनता को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं ये बात बीजेपी को अच्छी तरह से मालूम हो चुका है। लेकिन उन्हें चुनाव के ठीक पहले हटाने का मतलब था कि जनता में गलत संदेश जाना और विपक्षी दलों को चुनाव में एक नया हथियार भी मिल जाता।
एक और वजह ये भी है कि पर्रिकर की पकड़ गोवा की राजनीति में अच्छी होने के साथ ही उन्हें सीएम का दावेदार बनाने से चुनावी हार की स्थिति में आंच प्रधानमंत्री मोदी पर नहीं आएगी। ये चुनाव ऐसे वक्त में हो रहा है जब कुछ दिन पहले ही मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था।
पर्रिकर गोवा की राजनीति में फिर जाएंगे इसका संकेत इस बात से भी मिलता है जब एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मैंने कभी किसी चीज़ के लिये ना नहीं कहा, पार्टी ने जो भी काम और जिम्मेदारी दी उसे किया।"
राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि राज्य में बीजेपी ने दूसरी पंक्ति का नेता ही तैयार नहीं किया है, इसलिये पर्रिकर गोवा बीजेपी की मजबूरी भी हैं। इसके अलावा उनकी छवि भी साफ है।
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Source : News Nation Bureau