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Gujarat Elections 2022: चुनाव मैदान में हैं बोस्की, टायसन और सोट्टा भी, जानें कौन हैं ये

'बोस्की' की तरह और भी कई उम्मीदवार हैं, जो मतदाताओं के बीच अपने असल नाम के बजाय उपनाम से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं. दभोई से भारतीय जानता पार्टी के उम्मीदवार शैलेष उर्फ 'सोट्टा' मेहता एक और उदाहरण हैं.

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Nihar Saxena
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Gujarat

असल नाम से कहीं ज्यादा उपनाम से लोकप्रिय हैं कई उम्मीदवार.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अगर आप उन्हें उनके असल नाम 'जयंतभाई' कह कर बुलाएंगे, तो इस बात की संभावना बेहद कम है कि यह नेता पलट कर कोई प्रतिक्रिया भी दे. नेशनल कांग्रेस पार्टी के गुजरात प्रमुख जयंत पटेल 'बोस्की' उपनाम के इस कदर आदी हो चुके हैं कि इस नाम से पुकारते ही पलट जाएंगे, लेकिन यदि आप उन्हें असल नाम से पुकारेंगे तो कतई कोई जुंबिश नहीं होगी. 'बोस्की' नाम के इस कदर आदी हो चुके हैं कि चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग के समक्ष दाखिल किए जाने हलफनामे में वह इस नाम का भी उपयोग करते हैं. नंद जिले की उमरेठ सीट से विधानसभाचुनाव लड़ रहे इस एनसीपी नेता का जन्म यमन के बंदरगाह शहर अदन में हुआ था. उनके परिवार के यमन के सुल्तान से नजदीकी ताल्लुकात थे. बचपने में वह इस कदर गोलमटोल थे कि सुल्तान उन्हें प्यार से 'बोस्की' कह कह बुलाते थे. अरबी भाषा में 'बोस्की' का अर्थ होता गोलमटोल. धीरे-धीरे उनके परिवार वाले और दोस्त भी उन्हें 'बोस्की' नाम से पुकारने लगे. अब उनके विधानसभा क्षेत्र में भी यही नाम उनकी पहचान बन चुका है.

दभोई के सोट्टा
'बोस्की' की तरह और भी कई उम्मीदवार हैं, जो मतदाताओं के बीच अपने असल नाम के बजाय उपनाम से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं. दभोई से  भारतीय जानता पार्टी के उम्मीदवार शैलेष उर्फ 'सोट्टा' मेहता एक और उदाहरण हैं. इसकी पीछे भी बहुत रोचक किस्सा है. बात 1980 के दशक की है, जब वह कॉलेज में छात्रनेता हुआ करते थे. उनके आक्रामक भाषण से दोस्त-यार बेहद प्रभावित थे. बस उन्होंने 'सोट्टा' नाम से उन्हें पुकारना शुरू कर दिया, जिसका आम गुजराती बोल-चाल में अर्थ होता है प्रभावी. फिर राजनीतिक जीवन में यह नाम उनके साथ ही चिपका चला आया. 

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पदरा के मामा 
अगर आप पदरा तालुका जाएं और दीनू 'मामा' का पता पूछे तो लोग आसानी से दिनेश पटेल के घर तक छोड़ कर आ जाएंगे. पटेल अपनी समाज सेवा के लिए इलाके में लोकप्रिय हैं. वह गरीब परिवारों से आने वाली बेटियों की शादी के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं, जिसका वजह से उन्हें 'मामा' का संबोधन मिला. इसका अर्थ होता है 'मां का भाई'. धीरे-धीरे वह दीनू 'मामा' के नाम से ही इलाके में पुकारे जाने लगे. 

भत्थू यानी चावल प्रेमी
चंद्रकांत श्रीवास्तव को चावल बहुत पसंद था, बस इस पसंद ने उन्हें इलाके में 'भत्थू' उपनाम दिला दिया. 2017 में चंद्रकांत श्रीवास्तव ने राओपुरा से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था. उनके बारे में आम धारणा यह है कि बचपन में उन्हें चावल बहुत पसंद था. जिसे गुजराती भाषा में 'भात' कहते हैं. दादीमां उनके चावल प्रेम को देख 'भत्थू' के नाम से पुकार कर चिढ़ाती थीं, लेकिन यह उपनाम इस कदर उनके साथ जुड़ा कि आज भी लोग पीठ पीछे ही नहीं सामने भी इसी नाम से पुकारते हैं. 

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सीएम दादा
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र मटेल को प्यार से 'दादा' कहा जाता है. इसकी वजह यह है कि वह दादा भगवान के कट्टर अनुयायी हैं. दादा भगवान ने जैन धर्म में शुद्धिकरण को लेकर एक आंदोलन चलाया था, जिसे अक्रम विज्ञान आंदोलन कहते हैं. भूपेंद्र पटेल को जब 2010 में अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. उसी समय से उनके समर्थक 'दादा' के नाम से पुकारने लगे हैं, जो अभी तक उनके साथ जारी है. 

एलिसब्रिज से टायसन मैदान में
अहमदाबाद के पूर्व मेयर अमित पी शाह एलिसब्रिज सीट से विधानसभा चुनाव मैदान में हैं और लोग उन्हें प्यार से 'टायसन' कहते हैं. जनसामान्य से जुड़े मदद्दे उठाते वक्त या उस पर चर्चा करते वक्त वह हवा में मुक्का उछालते हैं. इसी आदत ने उन्हें यह उपनाम दिलाया है. उनके समर्थक दुनिया के महान हैवीवेट मुक्केबाज माइक टायसन से उनकी तुलना करते हैं. वह कहते हैं, 'मैं हीला-हवाली बर्दाश्त करने वाला शख्स नहीं हूं. मैं खरी-खरी बात कहता और करता हूं. सार्वजनिक जीवन में मुझे अधिकारियों से मिल जमीनी हकीकत से उन्हें रूबरू कराना होता है. 'टायसन' जैसे रवैये के लिए मेरे समर्थक मुझे पसंद करते हैं.'

HIGHLIGHTS

  • कई उम्मीदवार असल नाम के बजाय उपनाम से ज्यादा लोकप्रिय
  • इन उपनामों की कहानियां भी हैं बेहद रोचक और गहराई लिए हुए
  • उम्मीदवार अपने उपनाम का करते हैं हलफनामे में भी प्रयोग

Source : News Nation Bureau

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