हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री बनने के बाद के शुरुआती तेवर अब बीजेपी पर भारी पड़ सकते हैं. शुरुआती रुझानों में कांग्रेस हरियाणा में कड़ी टक्कर दे रही है. अगर बीजेपी हरियाणा का सूबा हारती है तो यह बीजेपी की हार के कहीं ज्यादा मनोहर लाल खट्टर की निजी पराजय होगी. जिस वक्त मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा की कमान सौंपी गई थी, तभी से उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान खड़े होने शुरू हो गए थे.
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थोपे गए सीएम
उन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी होने का आरोप सबसे बड़ा और तीखा था. हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी बगैर सीएम पद के संभावित उम्मीदवार के चुनाव मैदान में उतरी थी और किला फतह के बाद बीजेपी ने तमाम जद्दोजेहद के बाद मनोहर लाल खट्टर को सीएम घोषित किया था. बीजेपी ने सूबे की राजनीति में यह पहला प्रयोग किया था, जब परंपरागत सीएम उम्मीदवार की घोषणा के चुनाव लड़ा और जीता. यह अलग बात है कि मनोहर लाल खट्टर को लेकर अंदरखाने से लेकर बाहर तक सवालिया निशान लगते रहे.
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प्रशासनिक पकड़ ढीली
खैर, सीएम बनने के बाद जाट आंदोलन ने उनके नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता पर गहरा सवालिया निशान छोड़ा. उसके झटके से अभी खट्टर उबरे भी नहीं थे कि राम-रहीम प्रकरण ने रही सही कसर पूरी कर दी. इन दो प्रमुख घटनाओं से मनोहरलाल खट्टर की छवि को गहरा धक्का लगा. इसके बाद समय-समय पर मनोहर लाल खट्टर के उलटे बयानों ने बीजेपी की साख को गहरी चोट पहुंचाई. साझेदारों को नाराज कर सेल्फ गोल अलग से कर लिया. ऐसे में अगर रुझानों में बीजेपी अगर पीछे दिख रही है, तो इसके लिए मनोहरलाल खट्टर की छवि कहीं अधिक जिम्मेदार है.
HIGHLIGHTS
- बीजेपी की हार के कहीं ज्यादा मनोहर लाल खट्टर की निजी पराजय होगी.
- उनके नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता पर गहरा सवालिया निशान.
- खट्टर के उलटे बयानों ने बीजेपी की साख को गहरी चोट पहुंचाई.