कर्नाटक चुनाव में कुछ ही देर में फैसला हो जाएगा कि सत्ता का ऊंट किस करवट बैठा. क्या बीजेपी 38 साल का रिकॉर्ड तोड़कर दक्षिण के इकलौते राज्य में अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही, या फिर कांग्रेस ने उसके किले में सेंध लगा दी. कर्नाटक में राहुल गांधी ही नहीं, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है. खड़गे के लिए तो यह परीक्षा की घड़ी है. खड़गे कर्नाटक से ही हैं और कांग्रेस की कमान संभालने के बाद उनके गृह राज्य में पहली बार चुनाव हो रहे हैं. आइए बताते हैं कि कांग्रेस ने कर्नाटक में किस तरह के दांव खेले, कैसी रणनीति अपनाई और बीजेपी के हाथ से सत्ता छीनने के लिए कैसी-कैसी सियासी चालें चलीं.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023
कुल सीटें - 224
बहुमत के लिए जरूरी - 113
कुल उम्मीदवार - 2615
कुल मतदान - 73.19%
कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटें हैं. साधारण बहुमत के लिए 113 सीटें चाहिए. हालांकि सुरक्षित सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को यहां इससे ज्यादा सीटें हासिल करनी होंगी. कांग्रेस यहां पर कई बार 120 सीटों का आंकड़ा पार कर चुकी है. बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2008 में दिखा था, जब उसने 110 सीटें हासिल की थी. उसके बाद 2018 में उसे 104 सीटें मिलीं. नतीजा ये रहा कि दोनों ही बार उसे जोड़तोड़ का सहारा लेना पड़ा.
कर्नाटक विधानसभा पिछले चुनाव
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पार्टी 2018 2013 2008
बीजेपी 104 40 110
कांग्रेस 78 122 80
जेडीएस 37 40 28
कर्नाटक में इतिहास रहा है कि 1985 के बाद यहां कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बना पाई. उससे पहले केवल रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में जनता पार्टी ही दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब हो पाई थी. कर्नाटक के ये चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं. कर्नाटक से लोकसभा की 28 सीटें हैं. 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को यहां 25 सीटों पर जीत मिली थी. इसे देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस ने यहां अपना पूरा दम लगा दिया है.
कर्नाटक में प्रचार की कमान मुख्य रूप से तीन स्थानीय नेताओं के ही हाथ में रही. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया. कांग्रेस पार्टी ने इनके जरिए चुनाव में जाति समीकरण फिट करने की भी पूरी कोशिश की है. कर्नाटक के चुनावों में जाति एक बड़ा फैक्टर रहा है. पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए इन्हें कैश कराने की भरपूर कोशिश की है.
कर्नाटक में जाति पर दांव
जाति कांग्रेस बीजेपी JDS
लिंगायत 46 68 43
वोक्कालिगा 42 42 54
एससी 37 36 36
एसटी 18 17 14
अति पिछड़े 17 17 12
मुस्लिम 15 0 22
कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसकी छाप पार्टियों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों में भी दिखी है. कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के लगभग 45 फीसदी उम्मीदवार इन्ही दोनों समुदायों से हैं. उत्तरी कर्नाटक का अधिकतर इलाका लिंगायत बहुल है जबकि बेंगलुरू और दक्षिणी कर्नाटक में वोक्कालिगा की बहुतायत है. ओबीसी समुदाय तटीय कर्नाटक में ज्यादा हैं. कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उसने लिंगायत उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा 46 सीटें दी हैं. उसके बाद वोक्कालिगा को 42, एससी को 37 और एसटी को 18 सीटें दी हैं. कांग्रेस ने अति पिछड़ों पर भी बड़ा दांव खेला है. इनके उम्मीदवारों को 17 सीटें दी गई हैं. पार्टी ने 15 मुस्लिम प्रत्याशियों को भी मैदान में उतारा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे, डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की अलग अलग जाति भी उसके काम आई. खड़गे दलित समुदाय से हैं और कर्नाटक में दलितों की अच्छी खासी संख्या है. डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से हैं. राज्य में लिंगायतों के बाद वोक्कालिगा की सबसे ज्यादा संख्या है. पुराने मैसूर इलाके में शिवकुमार का होल्ड माना जाता है. इसी तरह सिद्धारमैया पिछड़ी कुरुबा समुदाय के नेता हैं.
कर्नाटक चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी. इस दौरान उन्होंने कर्नाटक को काफी समय दिया था. कर्नाटक में उनकी यात्रा के दौरान काफी भीड़ उमड़ी थी. अब ये भीड़ वोटों में कितना बदल पाई, ये तो कुछ देर में साफ होगा. कर्नाटक चुनाव में गांधी परिवार ने इस बार नई रणनीति अपनाई. उन्होंने राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया. राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी और यहां तक कि सोनिया गांधी भी चुनाव मैदान में उतरीं. सोनिया ने बीमार होने के बावजूद कर्नाटक में बीजेपी को टक्कर देने के लिए रैली की. राहुल गांधी ने बीजेपी खासकर मोदी पर हमला करने के लिए अपने पारंपरिक हथियारों से परहेज किया. अडानी और चीन घुसपैठ जैसे मुद्दों को दूर ही रखा. इसके उलट उन्होंने प्रचार के दौरान कर्नाटक के स्थानीय मुद्दों पर ही बात की. यहां तक कि प्रियंका और सोनिया गांधी ने भी अपने भाषणों का फोकस स्थानीय मुद्दों को ही रखा. कांग्रेस की प्रचार सामग्री में भी कर्नाटक की जनता से जुड़े महंगाई और बेरोजगारी जैसे मसलों पर जोर दिया गया. कांग्रेस पार्टी ने चुनाव में भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को भुनाने की भरपूर कोशिश की. घोषणापत्र में 5 गारंटी देकर उसने आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय को लुभाने की कोशिश की.
कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव के दौरान कुछ ऐसे मसलों को भी छेड़ दिया, जो बर्र के छत्ते की तरह साबित हुए. सबसे पहले उसने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल को बैन करने की बात कह दी. बीजेपी ने तुरंत इस मुद्दे को उठाया और हिंदुत्व से जोड़ते हुए पार्टी को घेर लिया. दूसरी गलती कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने की. कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस पार्टी पीएम मोदी को सीधे चुनौती न देने की रणनीति पर चल रही थी. लेकिन खड़गे द्वारा मोदी को जहरीला सांप बताने से यह रणनीति पटरी से उतरती दिखाई दी. बीजेपी ने इसे भी हथियार बना दिया. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस को तुरंत अपनी गलती का अहसास हो गया. खड़गे ने सफाई देकर और माफी मांगकर इसकी भरपाई करने की कोशिश की. यह सब चल ही रहा था, इस बीच खड़गे के बेटे प्रियांक ने पीएम मोदी को नालायक कह दिया. इस पर भी बीजेपी ने कांग्रेस को जमकर घेरा. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के भाषण में संप्रभुता शब्द को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया. हालांकि सोनिया ने ऐसा कुछ कहा नहीं था, लेकिन ट्रांसलेटर ने उनके शब्दों को हिंदी से अंग्रेजी में ट्रांसलेट करते समय गड़बड़ी कर दी. बीजेपी ने बैठे बिठाए इसे मुद्दा बना दिया. पीएम मोदी ने यहां तक आरोप लगा दिया कि कांग्रेस पार्टी कर्नाटक को भारत से अलग करने की साजिश रच रही है. बीजेपी इसे लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच गई. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भी सफाई देकर मामले को संभाल लिया. देखना होगा कि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ये बदली हुई रणनीति कितना कमाल कर पाई है.
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Source : News Nation Bureau