केरल (Kerala) में अगले महीने होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख समाप्त होने के बाद अब कुल 957 उम्मीदवार मैदान में हैं. 140 सदस्यीय विधानसभा के लिए इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 2,74,46,039 मतदाता करेंगे. केरल में विधानसभा चुनाव के लिए 6 अप्रैल को वोटिंग होगी. राज्य में वैसे तो चुनावी जंग 2 प्रतिद्वंद्वी मोर्चा, सत्तारूढ़ सीपीआई-एम के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच है, लेकिन मैदान में भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) भी है.
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मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की अगुवाई में वाम दल अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. उनकी कोशिश है कि वे पहली ऐसी सरकार बनें जो सत्ता में रहते हुए दोबारा लौटे. वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सत्ता हासिल करने के लिए जी-जान से जुटी है. उधर भाजपा के लिए तो उस सीट को बरकरार रखना ही बड़ी चुनौती है, जो उसने पिछले चुनाव में जीती थी. हालांकि भाजपा का कहना है कि वो इस बार बेहतर प्रदर्शन करेंगे.
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विजयन को दिसंबर 2020 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों जैसे परिणामों की उम्मीद है. जैसे कि 2015 के स्थानीय निकाय चुनावों में बढ़त हासिल करने के बाद विधानसभा में भी अच्छी जीत पाने में कामयाब रहे थे. वहीं यूडीएफ को 2019 के लोकसभा चुनावों जैसे नतीजों की उम्मीद है, जब उसने राज्य की 20 में से 19 सीटें जीत ली थीं.
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2016 के चुनावों में वाम दलों ने 43.48 फीसदी वोट शेयर लेते हुए 91 सीटें जीतीं थीं. वहीं यूडीएफ ने 38.81 प्रतिशत वोट लेकर 47 सीटें पाईं थी. वहीं भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट और 14.96 प्रतिशत वोट आए थे. वहीं एक सीट पर पी.सी. जॉर्ज जीते थे जिनकी पार्टी किसी राजनीतिक मोर्चे से जुड़ी नहीं है.
HIGHLIGHTS
- केरल विधानसभा चुनाव में उतरे 957 उम्मीदवार
- 2.74 करोड़ मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला
- केरल चुनाव के लिए 6 अप्रैल को होगी वोटिंग