केरल में मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन का यह बयान सच होता दिख रहा है कि भारतीय जनता पार्टी, जिसने 2016 के विधानसभा चुनावों में केरल में एक सीट जीती थी, इस बार अपना खाता तक नहीं खोल पाएगी. केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भले ही जीत सुनिश्चित न कर पाई हो, लेकिन उसने तीन निर्वाचन क्षेत्रों में कड़ी लड़ाई लड़ी. साल 2016 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ.राजगोपाल ने तिरुवंतपुरम जिले में नेमोम विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल की थी, जिससे भाजपा को राज्य में पहली बार सीट मिली. रविवार को मतगणना शुरू होने के साथ ही भाजपा तीन सीटों - नेमोम, पलक्कड़ और त्रिशूर में आगे चल रही थी.
नेमोम में, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन पिछले कुछ राउंड तक बढ़त बनाए हुए थे, मगर पिछली बार राजगोपाल से हारने वाले पूर्व माकपा विधायक वी.सिवनकुट्टी ने उन्हें पीछे कर दिया. इस प्रक्रिया में, बडागरा के कांग्रेस सांसद के. मुरलीधरन, जिन्हें भाजपा को अपनी जीत से रोकने की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा गया था, तीसरे स्थान पर रहे. शिवनकुट्टी ने 5,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की.
लेकिन पलक्कड़ में 'मेट्रोमैन' ई.श्रीधरन का नुकसान सबसे बड़ा रहा. मतगणना शुरू होने के कुछ समय बाद उन्होंने बढ़त ली थी, लेकिन अंतिम कुछ राउंड में पिछड़ गए और अंतत: उनके कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी और युवा कांग्रेस अध्यक्ष शफी परम्बिल ने 3,840 मतों के अंतर से जीत की हैट्रिक पूरी की.
मलयालम सुपरस्टार सुरेश गोपी, इस समय राज्यसभा के मनोनित सदस्य हैं, जिन्होंने त्रिशूर में भी कड़ा संघर्ष किया और कुछ ही समय में, अग्रणी रहे, लेकिन अंत में उन्हें दोनों पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों को कुछ भितरघात देकर तीसरे स्थान पर चले गए. अब, सभी की निगाहें भाजपा के वोट शेयर पर टिकी हैं और निश्चित रूप से राज्य प्रमुख की बड़ी भूमिका होती है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन दो निर्वाचन क्षेत्रों में लड़े. वह मंजेश्वरम में दूसरे स्थान पर और कोन्नी में तीसरे स्थान पर रहे.
विजयन सरकार 2.0 को खलेगी अनुभवी माकपा मंत्रियों की कमी
केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन, जिन्होंने रविवार को वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार का नेतृत्व करते हुए सत्ता बनाए रखकर इतिहास रच दिया, वह जब अपनी टीम का चयन करने के लिए बैठेंगे तो उनके पास अपनी पार्टी के अनुभवी दिग्गजों की कमी खलेगी. दरअसल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने आदर्श नियम बनाया कि जिनके पास लगातार दो कार्यकाल का अनुभव है, उन्हें इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतारना है. इसलिए पांच अनुभवी मंत्री - थॉमस इस्साक (वित्त), ए.के. बालन (कानून), जी. सुधाकरन (सार्वजनिक निर्माण), सी. रवींद्रनाथ (शिक्षा), और ई.पी. जयराजन (उद्योग) टिकट पाने में विफल रहे.
28 अन्य पार्टी विधायकों को भी फिर से नामित नहीं किया गया था. हालांकि जीतने वाले उम्मीदवारों में राज्यमंत्री कडकम्पल्ली सुरेंद्रन (पर्यटन), एम.एम. मणि (विद्युत), ए.सी.मोइदीन (स्थानीय स्वशासन), टी.पी. रामकृष्णन (एक्साइज) और के.के. शैलजा (स्वास्थ्य) शामिल रहे. एकमात्र, मत्स्य मंत्री जे. मर्कुट्टी चुनाव हार गए.
Source : News Nation Bureau