महाराष्ट्र में राजनीति का ऊंट एक बड़ी करवट ले सकता है. पुत्रमोह में फंस उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य को मुख्यमंत्री पद पर सुशोभित कराने के लिए अपने परंपरागत साथी बीजेपी को किनारे लगा सकते हैं. राज्य में गठबंधन सरकार में छोटे भाई बतौर निरूपित शिवसेना ने इस बार वर्ली सीट से आदित्य ठाकरे को उतारा था. ठाकरे परिवार से आदित्य पहले शख्स हैं, जो सक्रिय राजनीति में उतरने के साथ ही चुनावी समर में हाथ आजमाने उतरे. अब जब 2014 के मुकाबले बीजेपी-शिवसेना की सीट और वोट शेयर कम होता दिख रहा है शिवसेना अपने संस्थापक बाला साहब ठाकरे से किया 'राज्य में शिवसेना का सीएम' होने का वादा पूरा करने के लिए मोल-तोल पर उतर सकती है.
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संजय राउत के बयान में छिपे निहितार्थ
शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत का बयान इस मामले में आने वाले तूफान की आहट करार दिया जा सकता है. शिवसेना, बीजेपी आलाकमान से पार्टी का सीएम यानी आदित्य की सूबे के मुखिया बतौर ताजपोशी का आग्रह कर सकती है. इस कड़ी में संजय राउत ने रुझानों के बाद कहा, 'नंबर इतने बुरे भी नहीं हैं. ऐसा होता है कभी-कभी.' इसके साथ ही संजय राउत यह कहना भी नहीं भूले कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन बरकरार रहेगा और चुनाव पूर्व हुए 50-50 समझौते पर अमल करते हुए ही सरकार बनाई जाएगी. इसका एक अर्थ यह भी निकलता ही कि ढाई-ढाई साल के लिए राज्य का सीएम पद दोनों के पास रहे.
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एनसीपी-कांग्रेस से भी हाथ मिला सकती है शिवसेना
अंदरखाने से खबर आ रही है कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने के लिए एनसीपी-कांग्रेस से भी हाथ मिला सकती है. उसकी एक वजह तो यही है कि भले ही दोनों ने गठबंधन की मजबूरी के चलते साथ-साथ चुनाव लड़ा हो, लेकिन टिकट बंटवारे के समय से ही बीजेपी-शिवसेना में दरार साफ देखी जा सकती थी. इसमें भी नारायण राणे के वर्चस्व वाली सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार ने खाई को साफतौर पर चौड़ा करने का ही काम किया. ऐसे माहौल में अब जब महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में नाममात्र नजर आ रही है, एक नया समीकरण आकार ले रहा है.
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बीजेपी की कम सीटें दे रहीं शिवसेना को ताकत
गौरतलब है कि 2014 में बीजेपी 122 सीटों पर जीत हासिल कर स्पष्ट विजेता बनकर उभरी थी, जबकि शिवसेना 63 सीटों पर जीती थी. 2019 में परिदृश्य बदला हुआ है. कम से कम, रुझान तो यही संकेत कर रहे हैं. बीजेपी 100 से कम पर सिमटती नजर आ रही है, जबकि शिवसेना अपने प्रदर्शन को दोहराती नजर आ रही है. इधर शरद पवार की एनसीपी 52 सीटों पर आगे चल रही है तो कांग्रेस 38 सीटों पर. ऐसे में शिवसेना आदित्य ठाकरे की ताजपोशी के लिए एनसीपी-कांग्रेस से हाथ मिला सकती है.
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एनसीपी कर सकती है कांग्रेस को विवश
अगर एक बार फिर पिछले कुछ समय पर गौर किया जाए तो शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में कई बार टकराव सामने आया है. दोनों ही ने एक-दूसरे की मजम्मत करने में सार्वजनिक मंच का प्रयोग करने से गुरेज नहीं किया है. इधर एनसीपी का प्रदर्शन कांग्रेस से कहीं बेहतर दिख रहा है. ऐसे में एनसीपी राज्य में कांग्रेस का कोई चेहरा नहीं होने की स्थिति का फायदा उठाते हुए शिवसेना से गठबंधन कर सकते हैं. ऐसे में वह और उनकी पार्टी सत्ता में वापसी करेगी, वहीं शिवसेना का बाला साहेब ठाकरे से किया हुआ वादा भी पूरा हो जाएगा. इस समीकरण को बल देने का काम कर रही है एक पुरानी कहावत जिसके मुताबिक राजनीति में न तो कोई स्थायी शत्रु होता है और ना ही स्थायी मित्र.
HIGHLIGHTS
- शिवसेना आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने के लिए कर सकती है बड़ा फेरबदल.
- एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के साथ जा सकती है यदि बीजेपी नहीं राजी हुई तो.
- एनसीपी राज्य में कांग्रेस का चेहरा नहीं होने पर कर सकती है विवश.