उत्तेजना और दावों-प्रतिदावों से भरपूर पश्चिम बंगाल (West Bengal) विधानसभा चुनाव में सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) प्रचंड जीत दर्ज करने में सफल रही हैं. तृणमूल कांग्रेस राज्य की सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज होने जा रही है. हालांकि ममता बनर्जी खुद नाक का प्रश्न बनी नंदीग्राम की सीट से हार गई हैं. उन्हें उन्हीं के खास सिपाहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी ने उतार-चढ़ाव भरे मुकाबले में मामूली अंतर से हराया है. इस पर ममता बनर्जी ने अदालत की शरण लेने की बात की है. रोचक बात यह है कि टीएमसी सुप्रीमो भले ही चुनाव हार गई हों, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की राह में उन्हें कोई परेशानी नहीं है.
संविधान में है यह प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत वह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकती हैं. अनुच्छेद 164 (4) कहता है, 'एक मंत्री जो लगातार छह महीने तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उसे पद छोड़ना पड़ेगा.' इसका मतलब यह है कि ममता बनर्जी को छह महीने के भीतर किसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर आना होगा. 2011 में भी जब ममता बनर्जी ने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब वह संसद सदस्य थीं. उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था. कुछ महीनों के बाद वह भबानीपुर से चुनी गई थीं.
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कांग्रेस ने अभी से दिखाया बीजेपी को आईना
कांग्रेस नेता और कानूनी विशेषज्ञ अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'कानूनी रूप से और नैतिक रूप से किसी को भी ममता बनर्जी के सीएम बनने और छह महीने के भीतर चुने जाने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यदि कोई भी इसे मुद्दा बनाता है, तो यह उसके भारतीय संविधान के ज्ञान की कमी को दर्शाएगा.' गौरतलब है कि बंगाल में टीएमसी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. इस जीत ने ममता बनर्जी को यह एक गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस समूह में राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया है. पूरे चुनाव में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी राष्ट्रीय नेताओं को चुनौती देती दिखी. ममता बनर्जी ने खुद को 'बंगाल की बेटी' के रूप में पेश किया और सत्ता विरोधी माहौल को कम करने में सफल रहीं.
HIGHLIGHTS
- नंदीग्राम में हार से सीएम बनने की राह में नहीं पड़ेगा रोड़ा
- पहले भी ममता सीएम बनने के बाद भबानीपुर से चुनी गईं
- संविधान में पद संभालने के बाद दिया गया छह माह का समय