मिजोरम विधानसभा चुनाव 2018 में पिछले एक दशक से सत्तारूढ़ कांग्रेस को जबरदस्त हार मिली है. मुख्य विपक्षी दल मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने 20 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है और 6 सीटों पर बढ़त बनाई हुई है. वहीं पूर्वोत्तर में बचे अपने आखिरी गढ़ को भी कांग्रेस ने इस चुनाव में गंवा दिया. 2013 में 34 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस सिर्फ 5 सीटों पर सिमट गई. राज्य में 5 बार मुख्यमंत्री रह चुके ललथनहवला को लगातार तीसरी जीत की उम्मीद थी लेकिन एमएनएफ ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. दो सीटों से चुनाव लड़े ललथनहवला अपने गृह क्षेत्र सरछिप और चम्फाई दक्षिण दोनों जगहों से हार गए.
ललथनहवला को सरछिप सीट से जोराम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा ने 410 वोट और चम्फाई दक्षिण सीट से मिजो नेशनल फ्रंट के टी जे ललनुंतलुआंगा से 1,049 वोट से हार गए. मिजोरम में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक सीट जीतकर राज्य में अपना खाता खोल लिया. बीजेपी के बुद्ध धन चकमा ने तुइचवांग सीट से जीत हासिल की. यह सीट चकमा जनजातीय बहुल है.
पिछले 2 सालों तक उत्तर-पूर्व में कांग्रेस पार्टी का दबदबा कायम था लेकिन उसके लिए एक आखिरी राज्य बचा था. 11 लाख की आबादी वाले इस छोटे राज्य में हार के बाद उत्तर-पूर्व से कांग्रेस पूरी तरह बाहर हो गई है. कांग्रेस 2008 से यहां सत्तारूढ़ पार्टी है. इससे पहले 1998 से लगातार 10 साल तक मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार थी.
मिजोरम में कांग्रेस की हार के कुछ बड़े कारण
शराब पर पूर्ण प्रतिबंध को हटाना- सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने राज्य से मिजोरम शराब (प्रतिबंध और नियंत्रण) अधिनियम के तहत पूरी तरह से हटा दिया जिसके कारण राज्य में शराब से जुड़े सड़क दुर्घटना में बढ़ोतरी हुई. राज्य सरकार के इस फैसले से जनता में आक्रोश जरूर पनपा था. विपक्षी दल एमएनएफ ने इस मुद्दे को चुनाव को उठाते हुए दोबारा प्रतिबंध लगाने का वादा किया था.
एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर- मुख्यमंत्री ललथनहवला के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार 10 सालों से सरकार में थी. जिसके कारण राज्य में सत्ता विरोधी लहर चली. राज्य में कांग्रेस सरकार की आधारभूत संरचनाओं के विकास की स्थिति से लोग संतुष्ट नहीं थे. साथ भूमि सुधार जैसे मांगों पर सरकार घिर गई थी.
मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार पर आरोप- राज्य में 5 बार मुख्यमंत्री रह चुके ललथनहवला पर भ्रष्टाचार के दो आरोप लगे थे. जिसमें एक मामले में पुलिस ने थनहवला के खिलाफ चार्जशीट भी फाइल की थी. जिसके कारण मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचा था.
कांग्रेस के अंदर फूट- सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस के अंदर फूट काफी बढ़ गई थी जिसके कारण सितंबर से 5 नेताओं ने पद से इस्तीफा दे दिया था. नवंबर के शुरुआत में विधानसभा के अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हिफेई ने इस्तीफा देकर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. नेताओं के इस्तीफे के कारण पार्टी के प्रति लोगों का विश्वास हिला.
परिवारवाद का आरोप- मुख्यमंत्री ललथनहवला पर परिवारवाद का आरोप भी चुनाव में हार की बड़ी वजह रही. सीएम के भाई ललथनजारा आइजोल की एक सीट और उनके दामाद के भाई भी चुनाव में उतरे. इसके अलावा मंत्रालय और विभागों में कांग्रेस नेताओं ने अपने परिवार के लोगों को भरा. विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा था.
पूर्वोत्तर से कांग्रेस का हुआ है सफाया
पिछले दो सालों में असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के बाद अब मिजोरम में भी कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है. गौरतलब है कि मेघालय में सबसे ज्यादा 20 सीटें लाने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई थी. 2 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) (20 सीटें) और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी.
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मिजोरम केंद्रशासित प्रदेश से 1987 में भारत का 23वां राज्य बना था. 1972 में असम से अलग होकर बने मिजोरम में बीजेपी आज तक सत्ता में नहीं आ पाई है. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी ने एक सीट जीतकर मिजोरम में अपना खाता खोल लिया.
जानिए पिछले दो विधानसभा का हाल
2013 विधानसभा चुनाव: पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 40 में से 34 सीटें हासिल की थी. इसी चुनाव में 10 विधानसभा सीटों पर भारत में पहली बार वीवीपीएटी (वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीनों का उपयोग हुआ था.
कांग्रेस को कुल 44.6 फीसदी वोट मिले थे वहीं 5 सीटें जीतने वाली मिजो नेशनल फ्रंट को 28.7 फीसदी वोट हासिल हुई थी. पिछले चुनाव में बीजेपी की मौजूदगी न के बराबर थी और सिर्फ 0.4 फीसदी वोट मिली थी. राज्य की एक सीट मिजोरम पीपल्स कांफ्रेंस के पास गई थी.
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2008 विधानसभा चुनाव: राज्य में 5 बार मुख्यमंत्री रह चुके ललथनहवला के नेतृत्व में कांग्रेस ने 10 साल के बाद दोबारा वापसी की थी. कांग्रेस को कुल 32 सीटें मिली थी वहीं मिजो नेशनल फ्रंट 3 सीटों पर सिमट गई थी.
इसके अलावा मिजोरम पीपल्स कांफ्रेंस और जोराम नेशनलिस्ट पार्टी के पास दो-दो सीटें और मारालैंड डेमोक्रेटिक पार्टी को 1 सीट मिली थी. इससे पहले 1998 और 2003 के विधानसभा चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार बनी थी.
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Source : News Nation Bureau