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'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का नारा गया बेकार, खतरे में प्रियंका का सियासी भविष्य

कांग्रेस ने 'अत्याचार' के शिकार लोगों को टिकट देकर इसे एक गैर-गंभीर मुद्दे में बदल दिया. इस कदम ने अस्थायी रूप से भले ही पार्टी के लिए प्रशंसा अर्जित की, लेकिन कोई भी 'पीड़ित' सार्वजनिक समर्थन और वोट हासिल नहीं कर सका.

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Nihar Saxena
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Priyanka Gandhi

उत्तर प्रदेश चुनावी समर में भाई की तरह बहन भी रही निष्प्रभावी. ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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जोरदार अभियान, भारी भीड़, आकर्षक नारे और करिश्माई नेतृत्व. इसके बावजूद कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन किया है. 2017 में जीती सात सीटों की तुलना में इस बार पार्टी केवल दो सीटों पर जीती. पार्टी को अपने एक समय के गढ़ रायबरेली और अमेठी में हार का सामना करना पड़ा है, जहां पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती है. जब प्रियंका ने टिकटों में महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, तो कई राजनीतिक पंडितों ने सोचा कि यह कांग्रेस के लिए गेम-चेंजर होगा.

विक्टिम कार्ड भी नहीं आया काम
हालांकि पार्टी ने 'अत्याचार' के शिकार लोगों को टिकट देकर इसे एक गैर-गंभीर मुद्दे में बदल दिया. इस कदम ने अस्थायी रूप से भले ही पार्टी के लिए प्रशंसा अर्जित की, लेकिन कोई भी 'पीड़ित' सार्वजनिक समर्थन और वोट हासिल नहीं कर सका. वोट की लड़ाई भावनाओं की लड़ाई से बिल्कुल अलग है और इस चुनाव ने इसे साबित कर दिया है. प्रियंका जब उन्होंने उम्मीदवारों के रूप में पीड़ितों को चुना, शायद नब्बे के दशक में फूलन देवी की सफलता की कहानी को दोहराने की कोशिश कर रही थीं. गैंगरेप की शिकार हुई फूलन पर भी बेहमई में 21 ठाकुरों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था.

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सेंगर के उन्नाव में प्रभाव ने किया हार को मजबूर
तत्कालीन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के लोकसभा चुनाव के लिए फूलन को मैदान में उतारने के फैसले ने प्रशंसा से ज्यादा विवाद पैदा किया लेकिन फूलन सांसद बनीं. प्रियंका ने 2017 में उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता (रेप सर्वाइवर) की मां आशा सिंह को मैदान में उतारा, मगर यह 'विक्टिम कार्ड' उनके कोई काम नहीं आया. पूर्व भाजपा विधायक, कुलदीप सिंह सेंगर, जिन्हें 2019 में मामले में दोषी ठहराया गया था, का उन्नाव में काफी प्रभाव है और यहां तक कि सहानुभूति भी है, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि उन्हें गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था.

सीएए प्रदर्शनकारी सदफ जफर भी हारी
चार बार विधायक का पद संभालने वाले सेंगर के परिवार ने आशा सिंह को टिकट देने का कड़ा विरोध किया था, जो अब अपनी बेटी के साथ दिल्ली में रहती हैं. टिकट मिलने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, 'हमारे परिवार में कोई नहीं है. मैं अपने बहनोई और बलात्कार की सभी पीड़ितों के लिए न्याय पाने के लिए यह चुनाव लड़ रही हूं.' आशा सिंह ने अपने अभियान को राजनीतिक के बजाय व्यक्तिगत लड़ाई में बदल दिया और वह चुनाव हार गईं. कांग्रेस विक्टिम कार्ड की एक अन्य खिलाड़ी सदफ जफर हैं, जो कथित तौर पर पेट पर लात खाने के बाद राज्य में सीएए विरोधी आंदोलन का चेहरा बन गईं थीं. उन्होंने लखनऊ सेंट्रल सीट से चुनाव लड़ा और हार गईं.

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रितु-पूनम बगैर टक्कर दिए हारी
कांग्रेस ने लखीमपुर की मोहम्मदी सीट से रितु सिंह को मैदान में उतारा. रितु सिंह उस समय सुर्खियों में आई थीं, जब पिछले साल पंचायत चुनाव के दौरान पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर उनकी साड़ी खींच ली थी. राज्य में आशा कार्यकर्ताओं की नेता पूनम पांडे - जिन पर खाकी पहने पुरुषों यानी पुलिस द्वारा कथित तौर पर हमला किया गया था, जब उन्होंने राज्य में आशा वर्कर्स की समस्याओं को उठाने के लिए शाहजहांपुर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने की कोशिश की थी को शाहजहांपुर से मैदान में उतारा गया था. रितु सिंह और पूनम पांडे दोनों विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों को कोई टक्कर दिए बिना ही बुरी तरह से हार गईं.

संख्या देखी गई गुणवत्ता नहीं
एक अन्य 'पीड़ित' उम्मीदवार उम्भा के आदिवासी कार्यकर्ता राम राज गोंड हैं, जिन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के ओबरा में नरसंहार के पीड़ितों के लिए लड़ाई लड़ी थी. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, 'ये प्रयोग विफल हो गया, क्योंकि इन पीड़ितों को राजनीतिक लड़ाई लड़ने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था. एनजीओ आपको न्याय के लिए लड़ने और सुर्खियां बटोरने में मदद कर सकते हैं, लेकिन वे आपको चुनाव में जीत नहीं दिला सकते. अगर प्रियंका महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देना चाहती थीं तो उन्हें कम से कम एक साल पहले इन महिला उम्मीदवारों की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए थी.' पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि जब टिकटों की घोषणा की जा रही थी, तो महिलाओं को 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था, न कि उम्मीदवारों की गुणवत्ता पर.

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कांग्रेस का वोट फीसद 2.4 पर आया
प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन अब कांग्रेस में एक नेता के रूप में उनके भविष्य को प्रभावित करने वाला है. लगातार विफलता यह दर्शा रही है कि अब प्रियंका का राजनीतिक भविष्य खतरे में है. उनके कार्यकाल में पार्टी ने पहले ही कई नेताओं को निष्कासित कर दिया है, जबकि नेतृत्व को दोषी ठहराते हुए एक बड़ी संख्या में नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ दिया है. पार्टी का वोट शेयर लगातार गिर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में यह लगभग 6.25 प्रतिशत था, जबकि इस चुनाव में यह घटकर 2.4 प्रतिशत रह गया है. पार्टी की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तमकुहीराज सीट से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है.

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HIGHLIGHTS

  • उत्तर प्रदेश में शर्मनाक हार ने कांग्रेस को धकेला बहुत पीछे
  • प्रियंका गांधी वाड्रा का राजनीतिक कैरियर भी लगा दांव पर
  • कथित ज्यादितियों काकी शिकार को बनाया गया था प्रत्याशी

Source : News Nation Bureau

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