सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनावी बॉन्ड के संबंध में सभी आरोपों को खारिज कर दिया और पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों के लिए एक अप्रैल से चुनावी बॉन्ड के जारी करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज की ओर से दायर अर्जी को खारिज करते हुए बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग को ठुकरा दिया. याचिका में पांच राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी.
न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यम के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया. इससे पहले अदालत ने बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए बॉन्ड के दुरुपयोग को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
अदालत ने कहा कि 2018 से इलेक्ट्रोल बॉन्ड की स्कीम लागू है. इसके बाद 2018, 2019 और 2020 में भी इसकी बिक्री होती रही. फिलहाल इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय मौजूद हैं, इसलिए इस पर रोक लगाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता.
वहीं एजीओ की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने अपनी दलील में कहा है कि बॉन्ड का गलत उपयोग हो रहा है. इसका उपयोग शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में कर रही हैं. बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है. चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं ले सकता है. उन्होंने इसे राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका करार दिया.
भूषण ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और साथ ही चुनाव आयोग द्वारा लिखित विभिन्न पत्रों का हवाला भी दिया और कहा कि इन्होंने भी योजना के बारे में सवाल उठाए थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि आरबीआई सैद्धांतिक रूप से इस योजना का विरोध कर रहा है.
अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया कि इस योजना का मकसद चुनावों में बेहिसाब धन को रोकना है और इस योजना के तहत दानदाता केवल बैंकिंग चैनलों के माध्यम से काम करने के लिए बाध्य हैं.
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट ने को चुनावी बॉन्ड के संबंध में सभी आरोपों को खारिज कर दिया
- अदालत ने कहा कि 2018 से इलेक्ट्रोल बॉन्ड की स्कीम लागू है
- फिलहाल इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय मौजूद हैं