मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले का ग्राम आमला की अजब कहानी है. 200 घर और 1300 की आबादी वाला एक गांव इस विधानसभा चुनाव में दो विधायकों को चुनेगा. 2013 में अस्तित्व में आया आमला गांव 2014 के लोकसभा चुनाव में दो सांसद चुन चुका है. गली के इस पार के लोग एक विधानसभा के लिए वोट डालते हैं तो उस पार के लोग दूसरी विधानसभा के लिए.
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गांव का कुछ हिस्सा आगर तहसील में, कुछ सुसनेर, कुछ नलखेडा में तो कुछ बडोद तहसील में पड़ता है. एक ही गांव में रहने के बाद भी दो भाई अलग-अलग तहसील में रहते है. उनके विधायक और सांसद भी अलग-अलग हैं. दरअसल इस गांव में दो विधानसभा क्षेत्र अगर और सुसनेर की सीमा लगती है. इसके आलावा अमला दो संसदीय क्षेत्र देवास-शाजापुर और राजगढ़ में आता है.
गांव के विकास का जिम्मा दो सरपंचों पर
गांव दो पंचायतों में बंटा है. गांव का एक हिस्सा ग्राम पंचायत आमला में है, तो दूसरा हिस्सा आमला चौराहा 4 किमी दूर ग्राम पंचायत सेमलखेडी में जुड़ा है. गांव के विकास का जिम्मा दो सरपंचो पर है . दोनों सरपंच अलग-अलग पार्टियों से जुड़े हैं. सबसे बड़ी परेशानी गांव वालों को तब होती है जब उनको अपने घर और खेत के लिए अलग-अलग तहसीलो में जाना पड़ता है. वहीं, किसी भी शासकीय योजना के लाभ के लिए उन्हें अलग-अलग सांसद और विधायकों से मनुहार करना होती है.
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गांव में राजगढ संसदीय क्षेत्र के रोडमल नागर और देवास शाजापुर संसदीय क्षेत्र के मनोहर उंटवाल सांसद हैं. आगर विधायक गोपाल परमार और सुसनेर विधायक मुरलीधर पाटीदार यहां के चुने हुए विधायक है. इस बार विधानसभा चुनाव में इस छोटे से ग्राम के मतदाता दो विधायकों के लिए मतदान करेंगे.
चार जनप्रतिनिधि और विकास के नाम पर कुछ नहीं
चार जनप्रतिनिधि होने के बाद भी गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं है. लोगों का अधिकतर समय एक तहसील से दूसरे तहसील के चक्कर जाया होता है. आमला से तहसील सुसनेर की दूरी है 11 किलोमीटर, आगर तहसील की 20, नलखेड़ा की 15 तो बडोद तहसील लगभग 50 किलोमीटर दूर है.
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ग्रामीणों के लिए दिक्कत है कि उनके पड़ोसी के सरकारी कार्य कई बार गांव में ही हो जाते हैं, लेकिन उनका तहसील क्षेत्र अलग होने पर उन्हें कई
किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. इसी गांव में रहने वाले सैमलखेडी पंचायत के अधीन वाले ग्रामीणों की मानें तो उनके घर के सामने के लोगों के सारे काम आसानी से हो रहे है, उनके घरो के सामने सीसी रोड बन रहे है, नलजल योजना का लाभ उन्हें मिल रहा है, छोटे-छोटे शासकीय काम ग्राम में ही हो रहे हैं, परन्तु उन्हे छोटे-छोटे कामों के लिए 4 किलोमीटर दूर सेमलखेडी जाना पड़ता है.
विशेषता बनी उपेक्षा
आमला गांव भागों में विभाजित होने की विशेषता ही इसकी उपेक्षा का कारण बनी हुई है. वर्ष 2013 में शिवराज सरकार ने आगर मालवा को जिला बनाया उस समय भी जो जिले का परिसीमन किया गया वहां भी इस प्रमुख समस्या को ध्यान मे नहीं रखा. दो विधायक, दो सांसद, चार तहसीलदार, चार थानेदार, दो सरंपच, दो जनपद सीईओ, चार पटवारी को पाकर ग्रामीण शुरू में बहुत खुश थे, लेकिन इनकी ख़ुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. ग्रामीण इन सबके बीच उलझ कर रह गए है. इस गांव में एक भी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है.
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Source : News Nation Bureau