उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: बिसाहड़ा में विकास नहीं, अखलाक है मुद्दा

राजधानी दिल्ली से सटे दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक की मौत के 16 महीने बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। यहां के ज्यादातर लोगों में अखिलेश सरकार के प्रति आक्रोश है। ग्रामीण विधानसभा चुनाव में राज्य सरकार को खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे रहे हैं।

author-image
Abhishek Parashar
एडिट
New Update
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: बिसाहड़ा में विकास नहीं, अखलाक है मुद्दा

मृतक अखलाक के परिजन (फाइल फोटो)

Advertisment

राजधानी दिल्ली से सटे दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक की मौत के 16 महीने बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। यहां के ज्यादातर लोगों में अखिलेश सरकार के प्रति आक्रोश है। ग्रामीण विधानसभा चुनाव में राज्य सरकार को खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे रहे हैं।

ग्रामीणों में अखलाक की मौत का दुख तो है, लेकिन इस मामले में एकतरफा कार्रवाई कर निर्दोष युवाओं को जेल भेजे जाने का रोष भी है। गोमांस खाने के आरोप में अखलाक की पीट-पीटकर और सिलाई मशीन से सिर कुचलकर की गई हत्या के मामले में 18 में से 14 अभियुक्त अभी भी जेल में बंद हैं। 28 सितंबर, 2015 की इस घटना के बाद लीलावती (57) के दोनों बेटों को पुलिस घर से उठाकर ले गई। लीलावती के घर पर जब आईएएनएस संवाददाता पहुंची तो लीलावती उस रात को बयां करती हुई फफक कर रो पड़ी।

उन्होंने कहा, 'रात में लगभग 80 पुलिस वालों ने घर को घेर लिया। पुलिस सीढ़ी लगाकर घर में दाखिल हुई और सो रहे दोनों बेटों को उठाकर ले गई। कुछ नहीं बताया कि क्यों ले जा रही है? मैं अभी भी बेटों के लौटने का इंतजार कर रही हूं।'

और पढ़ें: यूपी चुनाव: पहले चरण के मतदान में क्या होगा अहम, मुद्दा या जातीय समीकरण

लीलावती कहती हैं, 'मेरे दोनों बेटों की कमाई से ही घर चलता था, घर में अब कोई कमाने वाला नहीं है। राहुल, केजरीवाल अखलाक के घर तो आए, लेकिन यहां कोई नहीं आया।'
चुनाव में किस पार्टी को वोट देंगी? इस सवाल के जवाब में लीलावती कहती हैं, 'मुझे वोट से कोई लेना-देना नहीं है। मेरी तो बस यही मांग है कि मेरे बेटों को छोड़ दिया जाए। दोषियों को सजा मिले और हमारे नुकसान की भरपाई हो। मुझे नहीं पता कि मैं उन्हें अब कभी देख पाऊंगी या नहीं।'

बिसाहड़ा गांव में 10,000 की आबादी है, जिसमें से 70 फीसदी लोग उच्चवर्गीय राजपूत समुदाय से हैं। यहां कुल आबादी में मुसलमानों की भागीदारी 15 फीसदी है, जबकि बाकी 15 फीसदी निम्नवर्गीय हैं।

अखलाक कांड में गिरफ्तार 18 अभियुक्तों में से एक रवि की संदिग्ध परिस्थिति में मौत के मामले ने भी काफी तूल पकड़ा था। रवि के चाचा संजय सिंह राणा ने आईएएनएस को बताया, 'मैंने ही सितंबर 2015 को गाय काटे जाने की जानकारी पुलिस को फोन कर दी थी। हमें दुख है कि उग्र भीड़ के गुस्से का शिकार अखलाक को बनना पड़ा लेकिन किसी के हाथ में कोई चाकू, दरांती या अन्य औजार नहीं था। मतलब, भीड़ उसे मारने के इरादे से घर पर नहीं पहुंची थी।'

उन्होंने आगे बताया, 'अखलाक के परिवार की ओर से 10 लोगों के नाम पुलिस को दिए गए, पुलिस 18 लोगों को उठाकर ले गई। समाजवादी पार्टी ने छह महीने के बाद दमनचक्र शुरू किया। पार्टी ने हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत फैलाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की।'

अखलाक मामले में संजय सिंह का बेटा विशाल भी जेल में है। वह कहते हैं, '1857 के बाद देशभर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे हुए, लेकिन इतिहास गवाह है कि इस धरती पर कभी हिंदू-मुसलमान के बीच दंगा नहीं हुआ था। लेकिन इस घटना ने गौरवशाली इतिहास पर पानी फेर दिया। एक बच्चे की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई, लेकिन परिवार के पास उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक नहीं है। इस मामले में कहां तक कार्यवाही हुई, हमें कुछ नहीं बताया गया।'

और पढ़ें: तमिलनाडु: AIADMK में घमासान जारी, राज्यपाल ने शशिकला को सरकार बनाने के लिए नहीं आमंत्रित किए जाने की रिपोर्ट को किया खारिज

उन्होंने कहा, 'अखिलेश सरकार ने मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए एकतरफा कार्रवाई की है, भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं, लेकिन इस चुनाव में राज्य सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।'

एक अन्य ग्रामीण टीकम सिंह ने बताया, 'ग्रामीणों में अखिलेश, राहुल गांधी और केजरीवाल के खिलाफ गुस्सा है। अखलाक की मौत के बाद राहुल गांधी और केजरीवाल गांव आए, लेकिन जेल में संदिग्ध परिस्थिति में मारे गए रवि के परिवार से नहीं मिले। इससे पता चलता है कि उन्हें सिर्फ मुस्लिम मतदाताओं की चिंता है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह की बुधवार को हुई रैली भी इस बात का संकेत है कि हम कांग्रेस या सपा को वोट नहीं करने जा रहे।'

अखलाक मामले में निर्दोष लोगों को निशाना बनाने के मुद्दे पर एक अन्य ग्रामीण राजेश सिंह ने कहा, 'राजनाथ सिंह कहीं भी रैली कर सकते थे, लेकिन उन्होंने बिसाहड़ा को ही चुना, इसका मतलब समझा जा सकता है।'

आमतौर पर हर चुनाव में विकास का मुद्दा छाया रहता है। क्षेत्र में सड़कें, बिजली, पानी और अन्य आधारभूत सुविधाओं को लेकर मतदान की रणनीति बनाई जाती है, लेकिन बिसाहड़ा में विकास कोई मुद्दा नहीं है।

अखलाक की मौत को दुखद बताते हुए एक ग्रामीण ने बताया, 'हमें विकास नहीं चाहिए, हमें बिजली, पानी, सड़कें नहीं बल्कि इंसाफ चाहिए। हमारे निर्दोष बच्चों को जेल से रिहा किया जाए। इस दाग से उनका करियर चौपट हो गया है।'

मृतक रवि का चाचा संजय सिंह कहते हैं, 'इस घटना को 16 महीने हो गए हैं लेकिन सरकार की लापरवाही की वजह से अभी तक उन पर आरोप तय भी नहीं हुए हैं, किस तरह की कार्रवाई राज्य सरकार ने कही है। न्यायालय में सिद्ध हो चुका है कि गोहत्या हुई, लेकिन गोहत्यारे अभी भी पुलिस की अभिरक्षा में आजाद घूम रहे हैं। गोहत्या में सजा का प्रावधान है तो जान मोहम्मद (अखलाक का भाई) पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उच्च न्यायालय ने जान मोहम्मद को हत्यारा माना है, लेकिन राज्य सरकार के इशारे पर एकतरफा कार्रवाई हो रही है।'

बिसाहड़ा गांव के मुसलमानों में एक अजीब सा डर है। ज्यादातर मुसलमान इस मुद्दे पर बोलने को तैयार ही नहीं हुए, लेकिन एक ग्रामीण इकबाल खातून ने आईएएनएस को बताया, 'अखलाक के साथ जो हुआ, वह गलत था लेकिन मीडिया ने इस मामले को अलग ही रंग दे दिया। एक अखलाक की वजह से पूरे गांव को बदनाम कर दिया। इसे अब अखलाक के गांव के नाम से पहचाना जाता है।'

और पढ़ें: यूपी चुनाव 2017: बागपत में वोट देने आई महिलाओं का गुलाब देकर हुआ स्वागत

बिसाहड़ा में अखलाक हत्याकांड के बाद सियासी रंग बदल चुका है। ज्यादतर ग्रामीण सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से खफा हैं, कांग्रेस का सपा से गठबंधन होने पर यहां का मतदाता कांग्रेस को वोट नहीं देने की बात कर रहा है, तो ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ही विकल्प बचते हैं।

बहरहाल, यहां 11 फरवरी को मतदान होने जा रहा है, लेकिन जब 11 मार्च को मतगणना होगी, तभी पता चलेगा कि इस कांड का फायदा उन्हें मिला या नहीं, जिन्होंने यह कुकृत्य करवाया।

और पढ़ें:UP चुनाव 2017: बिसाहड़ा गांव में पोलिंग बूथ पर सुबह-सुबह वोटिंग के लिए उमड़े लोग

HIGHLIGHTS

  • राजधानी दिल्ली से सटे दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक सबसे बड़ा मुद्दा है
  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के तहत दादरी में मतदान हो रहा है
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है

Source : IANS

UP Polls bishada Akhlaqs Death
Advertisment
Advertisment
Advertisment