अपने पारंपरिक गढ़ हैदराबाद में सात विधानसभा सीटों तक सीमित रहने वाली पार्टी एआईएमआईएम अब उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर नजरें गड़ाए हुई है. पार्टी ने पिछले आठ वर्षो में एक लंबा सफर तय किया है. भारत के सबसे बड़े राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव न केवल भाजपा, समाजवादी पार्टी और अन्य प्रमुख खिलाड़ियों के लिए महत्वपूर्ण होंगे, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी के लिए पाठ्यक्रम तय करेंगे. सभी गैर-भाजपा दलों की आलोचना से बेफिक्र, जो उन्हें वोट-कटुआ कहते हैं, ओवैसी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में किंगमेकर के रूप में उभरने के लिए तैयार हैं.
तीखे हमले कर रहे हैं यूपी में ओवैसी
52 वर्षीय आवैसी हाल के दिनों में देश में सबसे अधिक पहचाने जाने वाले मुस्लिम नेता के रूप में उभरे हैं. भारी भीड़ को आकर्षित करने वाली रैलियों को संबोधित करने के लिए उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर यात्रा कर रहे हैं. उत्कृष्ट वक्ता के रूप में जाने जाने वाले हैदराबाद के सांसद को भाजपा से लेकर सपा तक के अपने सभी विरोधियों पर निशाना साधते हुए और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा नेता अखिलेश यादव पर जुबानी टिप्पणी करते हुए सुना जाता है.
फिलहाल यूपी में परिचित नाम बन कर उभरे
दो दिन पहले शरणपुर में एक रैली में ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में 'योगी राज' के बारे में कहा कि 'राज का मतलब 'रिश्वत' (भ्रष्टाचार), 'अपराध' और 'जातिवाद' है. ओवैसी ने रैली में जोरदार जयकारों के बीच कहा, 'हम किसी का कर्ज बाकी नहीं रखते.' राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ओवैसी आसानी से हिंदी पट्टी में अपने लक्षित दर्शकों तक पहुंचने में सफल रहे हैं. उनका संदेश स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश के 19 प्रतिशत मुसलमानों को अपनी राजनीतिक ताकत, नेतृत्व और भागीदारी की आवश्यकता है, ताकि उन्हें उनका उचित अधिकार मिल सके और समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव और दमन का अंत हो.
पहले भी लड़ा था चुनाव, मिली थी करारी हार
यह पहली बार नहीं है, जब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक भाग्य का परीक्षण कर रही है. 2017 में पार्टी ने 403 में से 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी. उसने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, उन पर उसे करीब दो लाख वोट मिले और उसके केवल चार उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा सके. कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ओवैसी के राजनीतिक कद की दशा-दिशा तय करेंगे.
HIGHLIGHTS
- 2017 में भी 38 सीटों पर लड़ा था चुनाव, मिली थी हार
- केवल चार उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा सके थे
- इस बार 100 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का किया फैसला