कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़ी पार्टी के तौर पर उभर रही है हालांकि फिलहाल पूर्ण बहुमत से दूर है।
वहीं कांग्रेस के लिए हार के बाबवजूद जेडीएस के साथ जाकर सरकार बनाने का विकल्प बचा है।
इन सबके बावजूद 2013 विधानसभा चुनाव में 122 सीट पाने वाली कांग्रेस के लिए बड़ा सवाल यही है कि आख़िर उनकी हार के पीछे की वजह क्या है?
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी रही पार्टी कैडर को मजबूत करने की दिशा में कोई क़दम नहीं उठाना। हालांकि कांग्रेस के लिए यह सिर्फ़ कर्नाटक की बात नहीं है लेकिन सवाल यह है कि 5 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद आख़िर स्थानीय नेतृत्व ने इस दिशा में प्रयास क्यों नहीं किया।
वहीं बीजेपी की बात करें तो उन्होंने राज्य में सत्ता से दूर रहने के बावजूद पार्टी कैडर को मजबूत करने पर पूरा ध्यान दिया जैसा कि उन्होंने इससे पहले बाकि के राज्यों में चुनाव से पहले किया था।
वहीं चुनाव से ठीक पहले सीएम सिद्धारमैया द्वारा लिंगायतों को अलग धर्म का दर्ज़ा देने की सिफ़ारिश भी कांग्रेस के लिए चुनाव में ज़्यादा कमाल नहीं कर सकी। उल्टे बीजेपी इसे हिंदू को बांटने की कोशिश बताते हुए भुना ले गए।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रैली के दौरान देश के लोगों के मन में पीएम मोदी के ख़िलाफ़ आक्रोश को राजनीतिक तौर पर भुनाने की कोशिश की लेकिन पीएम ने उन सभी मुद्दों पर अपनी ख़ामोशी से चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों से दूर रखा।
माना यह भी जा रहा है कि कांग्रेस राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना नहीं कर पाई।
बीजेपी द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेल जा चुके बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद का प्रत्याशी बनाने के बावजूद कांग्रेस कर्नाटक में इसे मुद्दा नहीं बना पाई। इतना ही नहीं सिद्धारमैया सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान तीन साल तक येदियुरप्पा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जिससे लोगों में बीजेपी के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा नहीं बन पाया।
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Source : News Nation Bureau