केरल के 'लाल किले' को बचाने के लिए वामपंथी ले रहे 'साम-दाम-दंड-भेद' का सहारा, चौंका सकती है बीजेपी

23 अप्रैल को होने वाले मतदान में सबसे ज्यादा गहमागहमी वाडाकरा, कन्नूर और कासरगोड सीट पर देखने में आ रही है. वायनाड सीट से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उतरने से इन सीटों का महत्व अपने आप ही बढ़ गया है.

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Nihar Saxena
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सांकेतिक चित्र

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राजनीतिक रूप से संवेदनशील केरल का उत्तरी इलाका माकपा नीत सत्तारूढ़ गठबंधन एलडीएफ और कांग्रेस नीत प्रमुख विपक्षी गठबंधन यूडीएफ की 'साम-दाम-दंड-भेद' वाली लड़ाई का गवाह बन रहा है. 23 अप्रैल को होने वाले मतदान में सबसे ज्यादा गहमागहमी वाडाकरा, कन्नूर और कासरगोड सीट पर देखने में आ रही है. वायनाड सीट से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उतरने से इन सीटों का महत्व अपने आप ही बढ़ गया है. हालांकि एलडीएफ और यूडीएफ के बीच सीधे संघर्ष को भारतीय जनता पार्टी ने सबरीमाला मसले का नेतृत्व कर त्रिकोणीय में बदल दिया है. अब सभी की निगाहें इन सीटो समेत बीजेपी के प्रदर्शन पर ही टिकी हैं.

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वाडाकरा
माकपा ने वाडाकरा (Vadakara) सीट से अपने दमदार नेता पी जयराजन को उतारा है. पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस राज्य प्रमुख मुल्लापल्ली रामाचंद्रन ने महज 3,300 वोटों से जीत दर्ज की थी. जयराजन का पार्टी कैडर समेत इलाकाई लोगों पर खास प्रभाव है. इसके बावजूद कांग्रेस ने के मुरलीधरन पर दांव खेला है. मुरलीधरन भूतपूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरन के बेटे हैं. इस सीट पर वाम दलों का ही कब्जा रहा है, जिस पर लाल झंडे ने पहली बार 1980 में परचम फहराया था. हालांकि इस बार माकपा के लिए राह इतनी आसान नहीं है. उसे माकपा से एक दशक पहले अलग होने वाले अपने ही साथी टीपी चंद्रशेखरन की बनाई आरएमपी (रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी से खासी परेशानी हो रही है. करेला वह भी नीम चढ़ा की तर्ज पर कांग्रेस प्रत्याशी मुरलीधरन को आरएमपी का समर्थन प्राप्त है. इसे देखते हुए बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव में 76 हजार वोट पाने वाले वीके संजीवन को यहां से टिकट दिया है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस चुनाव में 'वामी हिंसा' को मुद्दा बनाकर इलाके को इस बुराई से मुक्त करने की बात कर रहे हैं.

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कन्नूर
वाडाकरा के बगल में स्थित कन्नूर (Kannur) 2014 को परिदृश्य को दोहरा सकता है. यहां से निवर्तमान सांसद पीकी श्रीमेथी ही माकपा प्रत्याशी हैं. वह एलडीएफ सरकार के विकास कार्यों को लेकर दोबारा चुने जाने की अपील कर रही हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में महज 6,500 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी के सुधाकरन से यह सीट छीनने वाली श्रीमेथी को हालांकि राजनीतिक हिंसा के आरोपों से दो-चार होना पड़ रहा है. बीजेपी ने यहां से सीके पद्मनाभन को उतारा है. पद्मनाभन के पास इस चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों का सहारा है. क्षेत्र में एक जाना-पहचाना चेहरा होने से पद्मनाभन कन्नूर में 'छिपे रुस्तम' भी साबित हो सकते हैं.

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कासरगोड
केरल के लगभग उत्तरी किनारे पर स्थित कासरगोड (Kasaragod) माकपा का 'लाल किला' (Red Fort) कहलाता है. यहां पिछली बार वाम पार्टी को 1984 में पराजय का सामना करना पड़ा था. यह संसदीय क्षेत्र भी राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात है. कांग्रेस ने पार्टी के वरिष्ठ नेता राजमोहन उन्नीथन को उतारा है, जो फिल्मी चेहरा होने के नाते एक अलग लोकप्रियता रखते हैं. अपने इस 'लाल किले' को बचाने के लिए माकपा ने भूतपूर्व विधायक सतीश चंद्रन पर दांव खेला है. बीजेपी ने रवीश तंत्री को उतारा है, जिनकी छवि हिंदुत्व प्रधान रही है. सबरीमाला (Sabarimala) प्रकरण के बाद तो बीजेपी को लेकर इलाके में चर्चा शुरू हुई, जो अब परवान चढ़ती दिख रही है.

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कह सकते हैं कि एलडीएफ और यूडीएफ के बीच हो रहे सीधे संघर्ष में बीजेपी अपनी राह तलाश कर रही है. यही वजह है कि इस लाल किले को बचाने के लिए वामपंथी हर हथियार चलाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं.

Source : News Nation Bureau

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