चुनाव परिणामों को गौर से देखा जाए तो आरजेडी का वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने सेंध लगाई है. माना जा रहा है कि आरजेडी अगर अपने वोटबैंक को समेटने में कामयाब होता तो उजियारपुर में एनडीए प्रत्याशी नित्यानंद राय 2.77 लाख के मतों से नहीं जीतते. इसके अलावा बेगसूराय, सीवान, मधुबनी सीटों पर भी राजग उम्मीदवारों की जीत का अंतर कम होता.
आरजेडी को अपनी रणनीति में बदलाव करनी होगी
पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि बिहार में जब त्रिकोणात्मक मुकाबले होते थे, तब भी आरजेडी के हिस्से 30 से 31 प्रतिशत वोट आते थे. इस चुनाव में जब आरजेडी और महागठबंधन में आमने-सामने का मुकाबला था, तब भी आरजेडी को इतने ही वोट मिले.
इसे भी पढ़ें: बीजेपी के प्रचंड बहुमत के बाद पाकिस्तान के बदले सुर!, इमरान खान ने फोन पर पीएम मोदी को दी बधाई
उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद को बिहार में जमीन से राजनीति का क्षत्रप बनाने की कहानी के पीछे एकमात्र गठजोड़ जातिवाद का रहा है, लेकिन अब रणनीति में बदलाव आवश्यक है.
उनका कहना है, 'इस चुनाव में RJD का वोट बैंक दरका है. RJD को अब ना केवल जातिवाद की राजनीति से उपर उठकर सभी जातियों को साथ लेकर चलने की रणनीति बनानी होगी, बल्कि राजनीति में नकारात्मक अभियान को भी छोड़कर जनता के बीच जाना होगा.'
आरजेडी में अनुभवी नेता हाशिए पर चले गए
इधर, राजनीतिक विश्लेषक मनोज चौरसिया कहते हैं कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद उनके पुत्र तेजस्वी का पार्टी पर वर्चस्व हो गया, जबकि कई अनुभवी नेता हाशिये पर चले गए. उनका कहना है कि इस समय आरजेडी के लिए आत्ममंथन का समय है.
उन्होंने कहा, 'RJD को शून्य से आगे बढ़ना होगा और एक विजन के साथ जनता के बीच जाना होगा. इसके अलावे परिवारवाद छोड़कर अनुभवी नेता को भी पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी देनी होगी, जिससे लोगों को लालू प्रसाद की कमी का एहसास ना हो.'
हार से सबक मिली, होगा मंथन
RJD ने भी इस हार से सबक सीख बदलाव के संकेत दिए हैं. RJD के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि इस हार से सबक मिला है. इस हार को लेकर मंथन किया जाएगा तथा हार क्यों हुई है और रणनीति में चूक की पहचान कर उसमें सुधार करने की कोशिश की जाएगी.
उन्होंने कहा, 'हार हुई है, लेकिन विचारधारा मरी नहीं है. हमलोग खड़ा होंगे और फिर से लड़ेंगे.'
राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर हालांकि इससे सहमत नहीं दिखते. उन्होंने कहा, 'आरजेडी जो गंवई गीत सीखा है, वही गाएगा. इसमें बदलाव की उम्मीद कम है. मेरे विचार से आरजेडी की राजनीति अपने प्रतिद्वंद्वी की गलती का इंतजार कर उसका लाभ लेने की होगी.'
उन्होंने यह भी कहा कि आरजेडी का प्रतिद्वंदी स्वच्छ छवि का है, जबकि आरजेडी की छवि किसी से छिपी नहीं है. जब मतदाता के सामने स्वच्छ छवि का विकल्प मौजूद है, तो कोई आरजेडी की ओर क्यों जाएगा?
किशोर हालांकि यह भी कहते हैं कि आरजेडी अगर रणनीति में बदलाव भी करता है तो लोग इसे कितना पसंद करेंगे यह देखने की बात होगी. उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसकी उम्मीद नहीं है.
और पढ़ें: जबलपुर में 15 साल से चल रहा था मानव तस्करी धंधा, चंगुल से छूटकर भागी लड़की ने खोला राज
आरजेडी के अलावा इन्हें भी करना पड़ा हार का सामना
इस चुनाव में लालू प्रसाद की आरजेडी पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) सहित अन्य कई दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरी. ईवीएम ने ऐसा चमत्कार किया कि ये तीनों नेता भी पूरे कुशवाहा, दलित, सहनी और निषाद समाज का समर्थन हासिल नहीं कर सके. यही कारण है कि इन तीनों दलों के अध्यक्ष को भी हार को सामना करना पड़ा.
इस लोकसभा चुनाव में बिहार में आरजेडी ने 39 सीटों पर सफलता हासिल की है, जबकि एक सीट (किशनगंज) पर कांग्रेस को जीत मिली है. महागठबंधन में शामिल आरजेडी का खाता तक नहीं खुला. आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार की 243 विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ 18 सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी आगे रहे.
बहरहाल, इस चुनाव में आरजेडी का सूपड़ा साफ हो गया. अब आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को नए सिरे से सोचना होगा.
Source : IANS