2019 के चुनावी महाकुंभ की रणभेरी बज चुकी है. इसी के साथ बिछ गई है सियासी संभावनाओं की बिसात. इसमें शह और मात के लिए एक दिग्गजों की आजमाइश अभी से शुरू हो गई है. पर सत्ता के सिंहासन का हकदार कौन होगा, ये वो तय करेगा जो बनेगा 2019 का किंगमेकर.करीब दो दशकों के बाद शायद ये पहला मौका है, जब लोकसभा की लड़ाई इतने दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुकी है कि किंग से ज्यादा किंगमेकर का किरदार इतना अहम हो गया है. इसकी वजह है वो लोकसभा की त्रिशंकु तस्वीर, जिसकी ओर चुनावी सर्वे इशारा कर रहे हैं. यानी इस बार किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत के आसार कम ही दिख रहे हैं.
सियासी शतरंज के सितारे
सवाल है कि अगर एनडीए, यूपीए, थर्ड फ्रंट या फेडरल फ्रंट में से किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो देश का सियासी मुकद्दर क्या होगा? फिर कौन बनाएगा सरकार और कौन होगा सरकार का सारथी. ये समझने से पहले लोकसभा के मौजूदा समीकरण पर एक नजर डाल लेते हैं.
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'कमल' के साथ कौन-कौन ?
लोकसभा में फिलहाल सबसे ज्यादा 336 सीटें एनडीए के पास हैं. इसमें बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 282 सीटें हैं. शिवसेना 18 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है. इनके अलावा एलजेपी की 6 सीटें, अकाली दल की 4 सीटें, जेडीयू और अपना दल की 2-2 सीटें और पीएमके की 1 सीट शामिल है. संभावना है कि एआईएडीएमके पार्टी भी इस चुनाव जंग में एनडीए के साथ होगी, जिसके पास फिलहाल लोकसभा में बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा 37 सीटें हैं.
'हाथ' को किसका साथ ?
अब लोकसभा में यूपीए की तस्वीर पर भी नजर डाल लीजिए. यूपीए के पास मौजूदा लोकसभा में कुल 59 सीटें हैं. इनमें सबसे ज्यादा 44 सीटें कांग्रेस की हैं. दूसरे नंबर पर एनसीपी है जिसके पास 6 सीटें है. फिर 4 सीटों के साथ आरजेडी का नंबर आता है, जबकि जेडीएस के पास हैं 2 सीटें. इनके अलावा एम के स्टालिन की पार्टी डीएमके, वाइको की पार्टी एमडीएमके और उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस भी यूपीए का हिस्सा हैं, पर फिलहाल लोकसभा में इनका स्कोर है जीरो.
फेडरल फ्रंट का फसाना
अब तीसरे मोर्चे यानी फेडरल फ्रंट की बात भी कर लेते हैं, जिस में 6 पार्टियां शामिल हैं. फेडरल फ्रंट के पास लोकसभा में कुल 55 सीटें हैं. इनमें सबसे ज्यादा 34 सीटें टीएमसी की हैं. उसके बाद 16 सीटों के साथ टीडीपी दूसरे नंबर पर है. तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी है जिसके पास 5 सीटें हैं. इनके अलावा मायावती की बीएसपी, अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी और प्रफुल्ल महंता की एजीपी भी फेडरल फ्रंट में शामिल हैं पर मौजूदा लोकसभा में इनकी हिस्सेदारी भी जीरो है.
तुरुप के '7 पत्ते'
अब उन पार्टियों की बात करते हैं जो फिलहाल तो किसी भी फ्रंट या मोर्चे में शामिल नहीं हैं, पर लोकसभा चुनाव के आते आते या उसके बाद पोस्ट पोल अलायंस में इनका किरदार सबसे अहम हो सकता है. इनमें 20 सीटों वाली बीजेडी, 11 सीटों वाली टीआरएस, 9 सीटों वाली सीपीएम, 6 सीटों वाली वाईएसआर कांग्रेस, 4 सीटों वाली आम आदमी पार्टी, 3 सीटों वाली पीडीपी और 2 सीटों वाले आईएनएलडी के नाम खास हैं.
किस गठबंधन का अभिनंदन ?
इनके अलावा भी कई छोटी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जो लोकसभा चुनाव में बड़ा फर्क पैदा कर सकती हैं, पर फिलहाल दिल्ली के सिंहासन का संघर्ष इन्हीं पार्टियों के ईर्द गिर्द घूमता दिख रहा है. अब सवाल ये है कि इनमें से कौन सी पार्टी या किस गठबंधन का होगा चुनावी अभिनंदन?
मोदी है तो मुमकिन है !
पांच साल पहले नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने आम चुनाव में जो इतिहास रचा उसने इतिहास को भी हैरान कर दिया. 1984 में राजीव गांधी सरकार की ताजपोशी के पूरे 30 साल बाद पहली बार किसी पार्टी ने अकेले अपने दम पर बहुमत की वैतरणी पार की थी. लेकिन इतिहास हर बार खुद को दोहराए ये जरूरी नहीं. देश के हिंदी बेल्ट में लगातार मिलती हार को देखते हुए इस बार मोदी का वो ऐतिहासिक मैजिक मुमकिन नहीं दिख रहा. खासकर यूपी में अखिलेश यादव और मायावती की जोड़ी बीजेपी की राह में बड़ी बाधा बन गई है. ऐसे में सवाल है कि अगर बीजेपी को इस बार बहुमत नहीं मिला तो उसके लिए सत्ता में वापसी की क्या संभावना है. चलिए ऐसी तीन संभावनाएं आपके सामने रखते हैं.
पहली संभावना- अबकी बार 250 के पार
ऐसा माना जा रहा है कि मोदी की कम होते मैजिक के बीच पुलवामा आतंकी हमला और उसके बाद पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक ने बीजेपी के लिए बूस्टर का काम किया है, जिसे पीएम मोदी समेत बीजेपी के तमाम आला नेता भुनाने की भरसक कोशिश भी कर रहे हैं. नारा है- मोदी है तो मुमकिन है. इस लिहाज से ये मुमकिन है कि बीजेपी शायद एक बार फिर 250 का आंकड़ा पार करने में कामयाब हो जाए. ऐसे में मोदी का दोबारा पीएम बनना तय है. पर चुनावी मीटर पर असल संभावनाएं कुछ और ही इशारा करती हैं. ज्यादातर चुनावी सर्वे का कहना है कि बीजेपी इस बार बमुश्किल 200 का आंकड़ा पार कर पाएगी. तो फिर दूसरी संभावना क्या हो सकती है?
दूसरी संभावना- अबकी बार 200 के पार
दूसरी संभावना के मुताबिक, अगर बीजेपी ने 200 का आंकड़ा पार कर लिया. अगर वो किसी तरह 220 से 230 सीटों तक भी पहुंचने में कामयाब रही तो भी मोदी के पीएम बनने का चांस सबसे ज्यादा होगा. शिवसेना, एआईएडीएमके, जेडीयू, एलजेपी और अकाली दल की ताकत उन्हें एक बार फिर सिंहासन तक पहुंचा सकती है. पर 200 से कम सीटें होने पर संघ के प्रिय गडकरी जैसे दावेदार सामने आ सकते हैं.
तीसरी संभावना- अबकी बार 150 के पार
अगर एनडीए के खिलाफ इस बार विपक्ष पूरी एकजुटता से चुनाव लड़ा तो बीजेपी की सीटें 150 से 180 के बीच सिमट सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो सरकार बनाने की होड़ में तो एनडीए बना रहेगा पर तब सहयोगी पार्टियां का बारगेन बढ़ सकता है. साथ ही ऐसी सूरत में बहुमत के आंकड़े के लिए बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआर जैसी पार्टियों के किंगमेकर बनने की संभावना भी बढ़ जाएगी. लेकिन अगर बीजेपी की सीटें डेढ़ सौ से भी कम हुईं तो फिर कांग्रेस या थर्ड फ्रंट की सत्ता में दावेदारी बढ़ जाएगी. ऐसी सूरत में बीजेपी के पास विपक्ष में जाने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा.
कांग्रेस करेगी करिश्मा!
कुछ महीनों पहले तक मोदी के कद के आगे राहुल गांधी की चुनौती को कम करके आंकने वाले चुनावी पंडितों का नजरिया मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बदलकर रख दिया. एक तरफ किसानों के लिए कर्जमाफी का ऐलान तो दूसरी ओर राफेल जैसे मुद्दों की बदौलत राहुल गांधी ने मोदी के तिलिस्म को तोड़ते हुए खुद को विपक्ष का सबसे मजबूत दावेदार साबित कर दिया.
प्रियंका का पराक्रम बोलेगा
विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित राहुल ने लोकसभा की लड़ाई में यूपी की बागडोर बहन प्रियंका के हाथ में सौंपकर तुरुप का वो इक्का फेंका है जिसने यूपी में पहले से ही महागठबंधन की मुश्किल झेल रही बीजेपी के लिए चुनौती और बड़ी कर दी है. तो फिर सवाल है कि क्या राहुल और प्रियंका की जोड़ी इस बार कांग्रेस को सत्ता की दहलीज तक पहुंचा पाएगी? चुनाव पूर्व सर्वे के मुताबिक कांग्रेस के लिए भी तीन संभानवाएं दिख रही हैं.
पहली संभावना - 150 का आंकड़ा पार
चुनावी पंडितों की मानें तो कांग्रेस के लिए इस बार भी सबसे बड़ा सहारा दक्षिण भारत ही होगा जहां बीजेपी की मौजूदगी कमजोर है. कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके और एमडीएमके और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ कांग्रेस का गठबंधन 60 से 70 सीटें बटोर सकता है. इसके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस मजबूत दिख रही है. उत्तर प्रदेश में भी संभावना ज्यादा है. उत्तर के राज्य मसलन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा और पंजाब में भी कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है. अगर इनमें पूर्वोत्तर की सीटों को जोड़ दें तो मुमकिन है कि कांग्रेस 150 का आंकड़ा पार कर जाए. ऐसे में थर्ड फ्रंड और एनडीए विरोधी दलों की मदद से राहुल पीएम पद के सबसे मजबूत दावेदार हो सकते हैं.
दूसरी संभावना - 100 का आंकड़ा पार
अगर कांग्रेस इस बार 110 से 130 सीटों तक पहुंचने में भी कामयाब रही तो भी वो बीजेपी के बाद लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी होगी. ऐसे में जोड़-तोड़ की राजनीति चरम पर पहुंच सकती है. संभव है कि कांग्रेस गठबंधन सरकार बनाने की पहल करे जिसमें उसे टीडीपी, आरजेडी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, टीडीपी और लेफ्ट का समर्थन भी आसानी से मिल जाए. पर ममता, माया और अखिलेश का समर्थन पाने के लिए कांग्रेस को भी बारगेन के लिए झुकना पड़ सकता है.
तीसरी संभावना - शतक नहीं तो सिंहासन नहीं
अगर कांग्रेस की सीटें 75 से 100 के बीच रहीं तो उसके लिए सत्ता की संभावना करीब करीब खत्म हो जाएगी. ऐसे में स्वाभाविक है कि एनडीए और तीसरे फ्रंट का किरदार सबसे अहम हो जाएगा. तब कांग्रेस के पास वेट एंड वाच के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं होगा, क्योंकि अगर बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई तो कांग्रेस का विपक्ष में जाना तय हो जाएगा. अगर थर्ड फ्रंट की संभावना बनी तो कांग्रेस के पास एक ही रास्ता होगा, बाहर से समर्थन.
थर्ड फ्रंट का थर्मामीटर
दिल्ली के दंगल में अब तक तीन बार ऐसा हुआ है जब गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी यानी तीसरे मोर्चे की सरकार ने सत्ता का सिंहासन अपने नाम किया है. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी, 1989 में जनता दल और 1996 में थर्ड फ्रंट की सरकार. पर पिछले दो दशकों से केंद्र की कुर्सी बारी बारी से बीजेपी वाले एनडीए और कांग्रेस वाले यूपीए के ही नाम रही ही. बावजूद इसके इस बार के चुनावी समीकरण कहते हैं कि फेडरल फ्रंट या तीसरा मोर्चा एक बार फिर सत्ता के शिखर तक पहुंच सकता है. फेडरल फ्रंट यानी महागठबंधन में मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू और प्रफुल्ल कुमार महंता जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों का चेहरा है. अगर ये गठजोड़ 200 के आंकड़े के करीब पहुंचा तो केंद्र में एक बार फिर गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी सरकार तय हो सकती है.
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फेडरल फ्रंट का दिल्ली फॉर्मूला
दो सौ का फिगर हासिल करने पर फेडरल फ्रंट से ममता बनर्जी या मायावती के पीएम बनने की संभावना बन सकती है. इनमें मायावती के नाम पर दलित हित की बात करने वाली दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों और लेफ्ट का समर्थन भी मिल सकता है. पर अगर ये आंकड़ा डेढ़ सौ के करीब रहा तो पीएम पद के कई दावेदार पैदा हो सकते हैं. अगर महागठबंधन की सीटें डेढ़ सौ से भी कम रही तो इसका मतलब ये होगा कि बीजेपी या कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी. अगर कांग्रेस की बढ़ीं तो उसकी अगुवाई में गठबंधन सरकार की संभावना ज्यादा होगी.
वज़ीर पर भारी प्यादे
कांग्रेस और बीजेपी दोनों के सत्ता से दूर रहने की सूरत में सबसे बड़ी मुश्किल होगी पीएम पद के चुनाव में. तब हर क्षेत्रीय क्षत्रप खुद को सत्ता के शीर्ष पर देखना चाहेगा. ऐसे में दावेदारों में से किसी एक के नाम पर सहमति मुश्किल हो सकती है. साफ है इस बार किंग से ज्यादा अहमियत होगी किंगमेकर की. पीएम की कुर्सी से भी ज्यादा अहम होंगे पीएम को तय करने वाले चेहरे. वज़ीर तो अहम होगा पर उससे भी ताकतवर होंगे वो प्यादे जो उसकी शह और मात का फैसला करेंगे.
Source : NITU KUMARI